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हमारे नए दोस्त मम्मी-पापा

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माता-पिता और बच्चों के बीच का रिश्ता हर परिभाषा से परे होता है। पहले ज़माने में इक्का-दुक्का बच्चे ही माता-पिता के साथ मित्रवत व्यवहार की अपेक्षा रख पाते होंगे। भारतीय परिप्रेक्ष्य में तो यह और भी कठिन था, क्योंकि यहाँ तो माँ अपने बच्चों के नाम लेने की बजाय उन्हें भईया, जीजी आदि संबोधनों से पुकारती थी, वहीं सबके सामने अपने बच्चे को दुलारना पिता के लिए शर्मिंदगी का कारण तक बन सकता था।

खैर... समय के साथ हर चीज़ बदलती है सो यह रिश्ता भी और खुलेपन के साथ सामने आया। अब माता-पिता बच्चों को न केवल खुला आसमान देने की क्षमता रखते हैं, बल्कि उनके अच्छे मित्र भी होते हैं। हाँ यह जरूर है कि समय की कमी यहाँ भी अड़ंगे डालती है, पर हर माता-पिता की कोशिश यही होती है कि वे अपने बच्चे के साथ दोस्ताना व्यवहार रखें। इसी मामले पर हमने युवाओं से बातचीत की और जाना कि वे इस बारे में क्या जानते हैं।

बीएससी में पढ़ने वाले परेश पटेल (भोपाल) कहते हैं - पैरेंट्स का ठेठ माता-पिता वाला रवैया कुछ बातों तक ठीक है, लेकिन जब इसकी अति हो जाती है तो बच्चे माता-पिता से कटने लगते हैं। मेरे मम्मी-पापा ने हम दोनों भाई-बहनों के साथ हमेशा फ्रेंड्स वाला रिलेशन रखा है। वे हम पर चीजें थोपने की बजाय हमें खुद प्रयोग करने का मौका देते हैं और इसमें कोई कठिनाई आए तो हम खुलकर उनका मार्गदर्शन ले सकते हैं।

यही नहीं, चूँकि वे दोनों हमसे ज्यादा एक्सपीरियंस रखते हैं। इसलिए कई बार वे किसी चीज़ के लिए स्पष्ट मना कर देते हैं, लेकिन हमेशा वे इसका कारण जरूर बताते हैं। इससे हर चीज़ हमारे सामने क्लियर हो जाती है तथा हम उन्हें समझ पाते हैं। सभी महत्वपूर्ण मसलों पर हम एक-दूसरे से खुलकर चर्चा करते हैं और जरूरत पड़ने पर राय भी देते हैं।

'मेरी मम्मी मेरी बेस्ट फ्रेंड हैं। मैं उनसे हर एक बात बाँटती हूँ।' कहती हैं - एलएलबी की छात्रा अनामिका श्रीवास्तव। अनामिका के अनुसार उन्होंने अपनी माँ से काफी कुछ सीखा है। इसमें कड़ी मेहनत, संघर्ष और लगन के पाठ के साथ ही समझदारी का सबक भी शामिल है। उनकी मम्मी ने न केवल उन्हें विपरीत परिस्थितियों से लड़ना सिखाया, बल्कि हर समय उनकी ऊर्जा बनकर साथ खड़ी रहीं और यही सब गुण एक सच्चे दोस्त के भी होते हैं।

इसलिए माँ उनके लिए 'आइडल' हैं। अनामिका कहती हैं- बच्चों के साथ पैरेंट्स का रिश्ता यदि दोस्तों वाला हो तो बच्चे सहज वातावरण में बड़े हो पाते हैं। मैं अपने आस-पास कई बार देखती हूँ कि माता-पिता बच्चों पर अपनी इच्छाएँ लादते हैं। वे चाहते हैं कि जो वे नहीं कर पाए वो उनके बच्चे करें। ऐसे में यदि माता-पिता और बच्चों के बीच मित्रवत व्यवहार रहे तो बच्चे खुलकर अपने मन की बात उनके सामने रख सकते हैं।

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