-शैली बक्षी
एक उजला-सा टुकड़ा धूप का
ठिठका रहा दहलीज पर
बडी देर तक
इंतजार करता रहा
बंद किवाड़ के खुलने का
तलाशता रहा कोई झरोखा या सूराख
आखिर टूटी खिड़की से दाखिल हो ही गया,
दबे पांव और रोशन हो गया
जैसे अंधेरा एक कोना
मिट गए गिले-शिकवे
छट गया मन का कुहासा
आतुर हाथों ने खोल दिए दिल के बंद कपाट
उजास ने सजा दिए वंदनवार
और जीवन धूप-सा खिल उठा.....