Festival Posters

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

वृंदावन की विधवाएं चाहती हैं 'बदलाव'

Advertiesment
हमें फॉलो करें विधवा
नई दिल्ली , सोमवार, 18 मार्च 2013 (18:10 IST)
नई दिल्ली। आजादी के 65 साल बाद और विधवाओं को जीने का मूलभूत अधिकार दिलाने वाले सती प्रथा उन्मूलन अधिनियम 1829 के 184 वर्ष गुजर जाने पर भी देश में विधवाओं की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया है।

वृंदावन के आश्रमों में भजन गाने और सड़कों पर भीख मांगने वाली इन महिलाओं को आज एक और राजा राममोहन राय का इंतजार है। उच्चतम न्यायालय ने भी इनकी स्थिति पर संज्ञान लिया और 2012 में इनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति का अध्ययन करने के लिए एक दल गठित किया। केंद्र सरकार ने भी हाल ही में राष्ट्रीय महिला आयोग को वृंदावन की विधवाओं की स्थिति का अध्ययन करने का निर्देश दिया है।

स्वयंसेवी संस्थान ‘गिल्ड ऑफ सर्विसेज’ के सर्वेक्षण के मुताबिक, वृंदावन में विधवाओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इनमें से कुछ तो घरवालों के दुत्कारे जाने के कारण यहां पहुंचीं जबकि कुछ को दो वक्त की रोटी के लिए अपनों के आगे हाथ फैलाना पड़ा तो वे इस जिल्लत से बचने के लिए वृंदावन पहुंच गईं।

संस्थान की अध्यक्ष एवं राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष डॉ. मोहिनी गिरि ने कहा कि एक तरफ तो हम देश में महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं दूसरी तरफ देश में विधवाओं की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है, उन्हें मौलिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।

गैर सरकारी संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक, वृंदावन की सड़कों पर 15 हजार से अधिक विधवाएं दयनीय स्थिति में जीने को मजबूर हैं। यहां के ग्रामीण इलाकों में स्थिति और भी बदतर है।

रिपोर्ट के मुताबिक, राधाकुंड, गोवर्धन और बरसाना में इन विधवाओं की स्थिति काफी खराब है। इन्हें पेंशन और राशन कार्ड तक मयस्सर नहीं है। वृंदावन में विधवाओं के लिए छह बड़े आश्रय स्थल हैं जहां दो हजार से अधिक विधवाएं रहती हैं। इन आश्रय स्थलों में रहने वाली विधवाओं को तीन घंटे सुबह और 3 घंटे शाम को भजन में शामिल होना पड़ता है जिसके बाद उन्हें छह से आठ रुपए रोजाना और खाना दिया जाता है।

भारत में भीख मांगने पर पाबंदी है लेकिन बड़ी संख्या में विधवाएं भीख मांग कर गुजर-बसर करती हैं। कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं हालांकि इन विधवाओं के लिए व्यावसायिक एवं अन्य कार्यक्रम चला रही हैं, लेकिन इन तमाम प्रयासों के बावजूद इनकी स्थिति में कोई खास सुधार नजर नहीं आ रही है।

‘स्पीरिचुअलिटी पावर्टी एंड चैरिटी ब्रिंग विडो टू वृंदावन’ नामक रिपोर्ट के मुताबिक, तमाम कवायदों के बावजूद देश की आजादी के छह दशक से अधिक समय गुजर जाने पर भी वृंदावन में विधवाओं की स्थिति खराब हुई है।

वृंदावन की सामाजिक कार्यकर्ता स्वप्ना मजूमदार ने कहा कि विधवाएं आज भी सांस्कृतिक छुआछूत की शिकार हैं। उन्हें कोई सम्मान नहीं दिया जाता और वे मौलिक अधिकारों से वंचित हैं। (भाषा)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi