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भागवत ने सामाजिक एकता पर दिया बल

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, सोमवार, 4 जनवरी 2016 (08:33 IST)
पुणे। भारत को हिन्दू समुदाय की पारंपरिक मातृभूमि बताते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को ऐसी सामजिक एकता पर बल दिया जिसमें चरित्र को महत्व दिया जाए।
उन्होंने पुणे के समीप आरएसएस रैली को संबोधित करते हुए कहा, 'भले ही भाषाएं भिन्न हों, धर्म भिन्न हों, संप्रदाय भिन्न हों, सभी की संस्कृति समान है। संपूर्ण विश्व इसे हिन्दू संस्कृति के रूप में स्वीकार करता है। परिणामस्वरूप हमारे समुदाय की पहचान हिन्दू समुदाय के रूप में है। यह हिन्दू समुदाय की पारंपरिक मातृभूमि है।' भागवत ने समाज में एकता की आवश्यकता पर बल दिया जिससे भारत एक राष्ट्र के रूप में सशक्त बनेगा।
 
उन्होंने कहा, 'डॉ. (बीआर) अंबेडकर ने कहा था कि संविधान के जरिए हम राजनीतिक समानता को प्राप्त करते हैं किन्तु यह राजनीतिक एकता तब तक स्थायी नहीं हो सकती जब तक हम सामाजिक एवं आर्थिक एकता हासिल नहीं कर लें।' संघ प्रमुख ने कहा, 'हमारे देश का ऐसा इतिहास रहा है कि हमारा कोई भी प्रतिद्वंद्वी अपने बूते नहीं बल्कि हमारे बीच मतभेद के कारण जीता था।' 
 
उन्होंने यह भी कहा कि 'जब तक हम अपने मतभेद नहीं भूलेंगे तब तक संविधान हमारी रक्षा करने में संभव नहीं हो पाएगा। इसीलिए उन्होंने ऐसा समाज बनाने पर बल दिया था जो संपन्न हो और अपने लोगों के प्रति सद्भाव रखता हो।' उन्होंने शिवशक्ति समागम को संबोधित करते हुए यह बात कही जो आरएसएस का सबसे बडा आयोजन माना जाता है।
 
भागवत ने जापान में रवीन्द्रनाथ टैगोर की मिसाल दी जहां उनके भाषण पर मामूली प्रतिक्रिया आयी क्योंकि वे एक गुलाम देश से थे। उन्होंने कहा, 'सत्य का सम्मान नहीं हुआ क्योंकि जिस देश में सत्य कहा गया उसे कमजोर माना जाता था। वह गुलाम था। स्वतंत्रता हासिल करने के बाद सत्य का थोड़ा मूल्य बढ़ा। युद्ध जीतने के बाद यह थोड़ा और बढ़ा। यह फिर बढ़ा जब हम एक परमाणु राष्ट्र बन गए।' 
 
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि इस्राइल गर्वोन्नत भाव से अपने संकल्प के कारण खड़ा है। उन्होंने यह भी कहा, 'जो समाज अपने लोगों की चिंता करता है, उनके प्रति स्नेह रखता है, भले ही उसके पास संसाधनों का अभाव हो, आकार में छोटा हो, वह अपने लक्ष्य हासिल करने में समर्थ होता है।' उन्होंने कहा कि असमानता एवं भेदभाव की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए क्योंकि एक विभाजित समाज के रूप में हम विफल हो जाएंगे। (भाषा)

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