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क्या इंडिगो भारत सरकार को ब्लैकमेल कर रहा है? जानिए पुतिन ने ऐसी स्थिति में क्या किया था?

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वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, शनिवार, 6 दिसंबर 2025 (18:32 IST)
आज की कॉर्पोरेट दुनिया में बड़ी कंपनियां और अरबपति अक्सर सरकारों पर दबाव डालने की कोशिश करती हैं। लेकिन क्या भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो सरकार को ब्लैकमेल करने की कोशिश कर रही है? हालिया घटनाक्रमों से यह सवाल उठ रहा है, जहां इंडिगो ने पायलटों के आराम संबंधी नए नियमों के खिलाफ उड़ानें रद्द करके सरकार पर दबाव बनाया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 2009 में ऐसी ही स्थिति से कैसे निपटा था?

इंडिगो का विवाद: ब्लैकमेल या व्यावसायिक मजबूरी?
भारत की नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) ने पायलटों की थकान कम करने के लिए नए नियम लागू करने की योजना बनाई थी। इन नियमों के तहत पायलटों को ज्यादा आराम का समय देना अनिवार्य होता, जो उड़ान सुरक्षा के लिए जरूरी है। लेकिन इंडिगो, जो भारत की 60% से ज्यादा घरेलू उड़ानों को संचालित करती है, ने इन नियमों का विरोध किया। कंपनी का कहना था कि इससे हजारों उड़ानें प्रभावित होंगी और यात्रियों को परेशानी होगी।

क्‍या यह ब्‍लैकमेल है : हालांकि, आलोचकों का आरोप है कि यह ब्लैकमेल की तरह लगता है। DGCA ने इन नियमों को लागू करने की समयसीमा कई बार बढ़ाई, लेकिन इंडिगो ने अचानक बड़ी संख्या में उड़ानें रद्द कर दीं। हवाई अड्डों पर अफरा-तफरी मच गई – यात्री परेशान हो रहे थे, दूसरी विमान कंपनियों ने किराया बेतहाशा बढ़ा दिया और पूरा सिस्टम ठप हो गया। सरकार ने आखिरकार नियमों की समयसीमा फिर से बढ़ा दी।

सवाल यह है: क्या इंडिगो ने जानबूझकर chaos पैदा करके सरकार को झुकाया? विशेषज्ञों का मानना है कि यह कॉर्पोरेट ब्लैकमेल का क्लासिक उदाहरण है। इंडिगो भारत की सबसे बड़ी विमानन कंपनी है और अगर वह काम रोक दे तो पूरे देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है। लेकिन क्या सरकार को ऐसे दबाव के आगे झुकना चाहिए? या फिर सख्ती दिखानी चाहिए?

पुतिन का मास्टरस्ट्रोक: 2009 का पिकालेवो संकट: ऐसी ही स्थिति से निपटने का एक यादगार उदाहरण है रूस का 2009 का पिकालेवो संकट। उस समय वैश्विक आर्थिक मंदी के दौरान, रूस के पिकालेवो शहर में तीन बड़े कारखाने बंद हो गए थे। इन कारखानों के मालिक– प्रमुख अरबपति ओलेग डेरिपास्का सहित अन्य ओलिगार्क– ने मजदूरों की सैलरी नहीं दी और कारखाने चलाने से इनकार कर दिया। मजदूरों ने सड़कें ब्लॉक कर दीं, जिससे पूरा शहर ठप हो गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री व्लादिमीर पुतिन ने खुद हस्तक्षेप किया। उन्होंने इन अरबपतियों को एक साधारण कमरे में बुलाया– कोई लग्जरी मीटिंग रूम नहीं, बल्कि कारखाने के अंदर ही।

पुतिन ने सख्त लहजे में पूछा: "आपने मजदूरों के देयकों का भुगतान क्यों नहीं किया? अगर आप नहीं करेंगे, तो हमें पता है इसे कैसे सुलझाना है।" फिर, उन्होंने डेरिपास्का को बुलाया और कहा: "यहां आओ, यहां साइन करो।" डेरिपास्का ने दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए, जिसमें कारखाने दोबारा शुरू करने और सैलरी देने का वादा था। जैसे ही वह जाने लगा, पुतिन ने कहा: "क्षमा करें, मेरा पेन लौटाइए।" यह छोटा-सा इशारा बड़ा संदेश देता था – तुम सरकार को अपनी उंगलियों पर नहीं नचा सकते। सही और वैध तरीके से काम करो, हम तुम्हारे आगे नहीं झुकेंगे।

इस घटना के बाद, कारखाने चल पड़े, मजदूरों को पैसा मिला, और ओलिगार्कों को सबक मिला कि सरकार कॉर्पोरेट दबाव के आगे नहीं झुकती। पुतिन का यह कदम आज भी कॉर्पोरेट-सरकार संबंधों पर चर्चा में उदाहरण के रूप में लिया जाता है। भारत सरकार को क्या सीख मिलनी चाहिए?

इंडिगो के मामले में क्या भारत सरकार को पुतिन से प्रेरणा लेनी चाहिए? अगर इंडिगो जैसे बड़े खिलाड़ी दबाव बनाते हैं, तो सरकार को सख्त रुख अपनाना चाहिए– नियमों का पालन सुनिश्चित करना, लेकिन बिना झुके। आखिर, जनता की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था दोनों महत्वपूर्ण हैं। अगर सरकार झुकती रही, तो यह नजीर बन सकती है, जहां बड़ी कंपनियां कानूनों को अपने हिसाब से मोड़ लेंगी। हालांकि, कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि इंडिगो का विरोध व्यावहारिक था, क्योंकि नए नियमों से उड़ानें 20% तक कम हो सकती थीं। लेकिन तरीका गलत था – ब्लैकमेल जैसा। सरकार को संवाद बढ़ाना चाहिए, लेकिन दृढ़ता भी दिखानी चाहिए। आप क्या सोचते हैं? क्या इंडिगो ब्लैकमेल कर रही है, या यह सिर्फ बिजनेस स्ट्रैटेजी है? और क्या भारत को पुतिन जैसा सख्त लीडरशिप चाहिए? कमेंट्स में अपनी राय जरूर बताएं।
Edited By: Navin Rangiyal

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