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कश्‍मीर में इस माह खुलेगा 'ट्यूलिप गार्डन'

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सुरेश एस डुग्गर

श्रीनगर। अगर आप कश्मीर आने की तैयारी में हैं तो कार्यक्रम जल्दी बना लें क्योंकि एशिया के सबसे बड़े ट्यूलिप गार्डन को इस माह के अंत में आम जनता के लिए खोल दिया जाएगा। जल्दी की बात इसलिए हो रही है क्योंकि 60 से अधिक प्रजातियों के 15 लाख के करीब फूलों का दीदार करने से कहीं आप चूक न जाएं और इस बार मौसम में बदलाव के कारण यह एक माह पहले खोला जा रहा है।
विश्व प्रसिद्ध डल झील के किनारे जबरवान पहाड़ी की तलहटी में आबाद इस ट्यूलिप गार्डन में फूल खिलना शुरू हो गए हैं। गौरतलब है कि 12 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले गार्डन में लोग इस वर्ष साठ से अधिक प्रजातियों के 15 लाख ट्यूलिप का दीदार करेंगे। गार्डन को एक नया लुक भी देने के प्रयास किए गए हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा पर्यटक इस गार्डन की तरफ आकर्षित हो सकें।
 
बागवानी विभाग के निदेशक ने कहा कि इस बार मौसम में बदलाव के कारण ट्यूलिप के पूरे फूल खिलना शुरू हो चुके हैं। कुछ किस्में पूरी तरह से खिल चुकी हैं, जबकि कुछ अगले एक दो दिन तक खिल जाएंगी। तापमान भी बिलकुल अनुकूल है। वे कहते थे कि अगर मौसम ने इसी तरह साथ निभाया तो इस महीने में 20 तारीख के आसपास से गार्डन को आम पब्लिक के लिए खोल देंगे। इस बार फूलों की कुछ और नई किस्में उगाई हैं जिनमें स्टरांग गोल्ड, टूरिजमा, पर्पल फ्लेग आदि है। बीते साल गार्डन में केवल चार टेरिस गार्डन थे, लेकिन इस साल हमने दो और टेरिस गार्डन तैयार किए हैं। गौरतलब है कि बीते दो वर्षों में करीब 10 लाख पर्यटकों ने गार्डन की सैर की थी। इससे लाखों रुपए का राजस्व कमाया था।
 
डल झील का इतिहास तो सदियों पुराना है, पर ट्यूलिप गार्डन का मात्र 8 साल पुराना। मात्र 8 साल में ही यह उद्यान अपनी पहचान को कश्मीर के साथ यूं जोड़ लेगा कोई सोच भी नहीं सकता था। डल झील के सामने के इलाके में सिराजबाग में बने ट्यूलिप गार्डन में ट्यूलिप की 60 से अधिक किस्में आने-जाने वालों को अपनी ओर आकर्षित किए बिना नहीं रहती हैं। यह आकर्षण ही तो है कि लोग बाग की सैर को रखी गई फीस देने में भी आनाकानी नहीं करते। जयपुर से आई सुनिता कहती थीं कि किसी बाग को देखने का यह चार्ज ज्यादा है, पर भीतर एक बार घूमने के बाद लगता है यह तो कुछ भी नहीं है।
 
सिराजबाग हरवान-शालीमार और निशात चश्माशाही के बीच की जमीन पर करीब 700 कनाल एरिया में फैला हुआ है। यह तीन चरणों का प्रोजेक्ट है जिसके तहत अगले चरण में इसे 1360 और 460 कनाल भूमि और साथ में जोड़ी जानी है। शुरू-शुरू में इसे शिराजी बाग के नाम से पुकारा जाता था। असल में महाराजा के समय उद्यान विभाग के मुखिया के नाम पर ही इसका नामकरण कर दिया गया था, पर अब यह शिराज बाग के स्थान पर ट्यूलिप गार्डन के नाम से अधिक जाना जाने लगा है।
 
जब्रवान पहाड़ियों की तलहटी में स्थित ट्यूलिप गार्डन में खिलने वाले सफेद, पीले, नीले, लाल और गुलाबी रंग के ट्यूलिप के फूल आज नीदरलैंड में खिलने वाले फूलों का मुकाबला कर रहे हैं। फूल प्रेमियों के लिए ये नीदरलैंड का ही माहौल कश्मीर में इसलिए पैदा करते हैं क्योंकि भारतभर में सिर्फ कश्मीर ही एकमात्र ऐसा स्थान है जहां पर मार्च से लेकर मई के अंत तक तीन महीनों के दौरान ये अपनी छटा बिखेरते हैं। 
 
रोचक बात यह है कि पिछले साल ट्यूलिप गार्डन के आकर्षण में बंधकर आने वालों की भीड़ से चकित होकर कश्मीर के किसानों ने भी अब ट्यूलिप के फूलों की खेती में हाथ डाल लिया है। वे इस कोशिश में कामयाब भी हो रहे हैं कि जिन केसर क्यारियों में बारूद की गंध 26 सालों से महक रही हो वहां अब ट्यूलिप की खुशबू भी हो चाहे वह कम अवधि के लिए ही क्यों न हो।
 
यह सच है कि अभी तक कश्मीर में डल झील और मुगल गार्डन (शालीमार बाग, निशात और चश्माशाही) ही आने वालों के आकर्षण का केंद्र थे और कश्मीर को दुनियाभर के लोग इसलिए जानते थे, लेकिन अब वक्त ने करवट ली तो ट्यूलिप गार्डन के कारण कश्मीर की पहचान बनती जा रही है। चाहे इसके लिए डल झील पर मंडराते खतरे से उत्पन्न परिस्थिति कह लीजिए या फिर मुगल उद्यानों की देखभाल न कर पाने के लिए पैदा हुए हालात के कारण कश्मीर अब ट्यूलिप गार्डन के लिए जाना जाने लगा है।

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