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रेप पीड़िता की मौत पर मृत्युदंड-चिदंबरम

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हमें फॉलो करें बलात्कार
नई दिल्ली , गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013 (19:06 IST)
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बलात्कार पीड़िता के जख्मी होने और फिर मौत होने या कोमा जैसी स्थिति में पहुंचने के मामलों में बलात्कारी को सजा-ए-मौत सुनाई जा सकती है। बलात्कार निरोधक कानूनों को अधिक कठोर बनाने के लिए लाए गए अध्यादेश में यह प्रावधान किया गया है।

आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश 2013 में अलगाव के दौरान किसी व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी के साथ की गई यौन हिंसा के लिए भी दंड बढ़ाया गया है और अब इस अपराध के लिए सात साल तक की कैद हो सकती है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने रविवार को ही इस अध्यादेश को मंजूरी दी है।

अध्यादेश की जानकारी देते हुए वित्तमंत्री पी चिदंबरम और सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने बताया कि धारा-376 (बलात्कार) की उपधारा-1 या उपधारा-2 के तहत दंडनीय अपराध करने वाले व्यक्ति, जिसके अपराध के फलस्वरूप कोई जख्मी होता है और बाद में उसकी मौत हो जाती है या फिर वह कोमा जैसी स्थिति में पहुंचता है तो उसे कड़े कारावास की सजा होगी।

यह सजा 20 साल से कम नहीं होगी, लेकिन इसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है यानी उसके स्वाभाविक जीवन के शेष बचे हिस्से के दौरान उसे कारावास में ही रहना होगा या फिर उसे सजा-ए-मौत हो सकती है।

ऐसे मामलों में जहां किसी व्यक्ति के साथ एक या अधिक लोग यौन हिंसा करते हैं तो हर अपराधी को कम से कम 20 साल के कड़े कारावास की सजा हो सकती है। इसे बढ़ाकर आजीवन कारावास भी किया जा सकता है यानी उसके शेष बचे जीवन के हिस्से के दौरान उसे जेल में रहना होगा और पीड़िता को मुआवजा भी देना होगा।

अध्यादेश के मुताबिक तेजाब फेंकने से यदि किसी को स्थाई या अस्थाई नुकसान पहुंचता है या वह गंभीर रूप से जख्मी होता है तो ऐसे अपराध के लिए अपराधी को कम से कम दस साल और अधिकतम उम्र कैद की सजा हो सकती है। इसके अलावा इस अपराध के लिए उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है, जो अधिकतम दस लाख रुपए हो सकता है।

इस मुद्दे पर आज मीडिया संबंधी मंत्री समूह की बैठक में चर्चा हुई, जिसके अध्यक्ष चिदंबरम हैं। यौन हिंसा का अपराध बार-बार करने वाले को आजवीन कारावास होगा। इसका मतलब है कि उसे स्वाभाविक जीवन का शेष हिस्सा जेल में गुजारना पड़ सकता है या फिर उसे मौत की सजा हो सकती है।

यदि कोई पुलिस अधिकारी या सरकारी कर्मचारी या सशस्त्र सेनाओं का कोई कर्मी यौन हिंसा का दोषी पाया जाता है तो उसे कम से कम दस साल के सश्रम कारावास की सजा मिलेगी। इस सजा को आजीवन कारावास में तब्दील भी किया जा सकता है। इस अपराध के लिए जुर्माने का भी प्रावधान है।

किसी का पीछा करना, गलत नीयत से घूरना या महिलाओं के प्रति अन्य किस्म के अपराधों के लिए भी दंडात्मक प्रावधान किए गए हैं। अवांछित शारीरिक संपर्क, यौन अनुग्रह या मांग या इस इरादे से किसी की ओर बढ़ना भी अपराध की श्रेणी में रखा गया है और इसके लिए पांच साल की कैद या जुर्माना या दोनों का प्रावधान किया गया है।

अश्लील टिप्पणी या अश्लील फिल्म दिखाना, मौखिक या गैर मौखिक रूप से कोई यौन दुराचरण करने की स्थिति में सजा का प्रावधान है, जिसे बढ़ाकर एक साल किया जा सकता है या जुर्माना भी हो सकता है या फिर दोनों का प्रावधान है।

गलत नीयत से किसी को घूरने की स्थिति में कम से कम एक साल की कैद का प्रावधान है जिसे तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है। ऐसे मामलों में पहली बार अपराध के लिए जुर्माना किया जाएगा। दूसरी बार या इसके बाद कई बार इस तरह का अपराध करने की स्थिति में सात साल का कारावास हो सकता है और जुर्माना लगाया जाएगा।

पीछा करने के लिए कम से कम एक साल के कारावास का प्रावधान है, जिसे बढ़ाकर तीन साल किया जा सकता है और ऐसे मामलों में दोषी को जुर्माना भी देना होगा। नाबालिग की तस्करी में यदि कोई व्यक्ति एक से अधिक बार दोषी पाया जाता है तो ऐसे अपराध के लिए कम से कम 14 साल और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा होगी।

मानव तस्करी कर लाए गए किसी बच्चे को रोजगार देने वाले को कम से कम पांच साल की सजा का प्रावधान किया गया है। इसे बढ़ाकर सात साल किया जा सकता है और इसमें जुर्माने का भी प्रावधान है। एक से अधिक व्यक्ति की तस्करी करने वाले को कम से कम दस साल का कारावास हो सकता है, जिसे बढ़ाकर आजीवन कारावास किया जा सकता है।

इस अपराध के लिए जुर्माने का भी प्रावधान होगा। मानव तस्करी में लिप्त होने के दोषी पाए गए सरकारी कर्मचारी या पुलिस अधिकारी के लिए अध्यादेश में आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है। (भाषा)

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