महानवमी व कुमारी पूजन

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- डॉ. रामकृष्ण डी. तिवार ी
दस वर्ष या उससे कम अवस्था की कन्या को देवी स्वरूप कहा गया है। नवरात्र में हुई साधना का फल इनकी पूजा के अभाव में कठिन है। कुमारी के पूजन से ही इस साधना पर्व की सिद्धि होती है।

दो वर्ष तक की कन्या को कुमार ी, उससे अधिक व तीन वर्ष से कम त्रिमूर्त ि, उससे अधिक व चार वर्ष से कम कल्याण ी, उससे अधिक व पाँच वर्ष से कम रोहिण ी, उससे अधिक व छः वर्ष से कम कालिक ा, उससे अधिक व सात वर्ष से कम चंडिक ा, उससे अधिक व आठ वर्ष से कम शाम्भव ी, उससे अधिक व नौ वर्ष से कम दुर्गा, इससे लेकर दस वर्ष की आयु को सुभद्रा नाम से संबोधित किया गया है।

इस आयु की कुमारी को आमंत्रित करके चरण धुलाकर पवित्र स्थान व आसन पर बैठाकर उनके सामने अपनी कामना का स्मरण या उच्चारण करें। इसके पश्चात अपनी शक्ति व श्रद्धानुसार वस्त्र, अलंकार, पुष्प, माला, सुगंधित तेल, चंदन, सिंदूर, काजल, इत्र इन कन्याओं को देवी स्वरूपमानते हुए अर्पित करें। यदि संभव हो तो उन्हें यह धारण करवाएँ। इसके पश्चात भोजन पूर्ण श्रद्धा व पवित्रता से परोसें।

भोजन पूर्ण होने पर हाथ-मुँह का शुद्धिकरण करवाकर मुख शुद्धि की वस्तुएँ, फल व दक्षिणा देकर उन्हें घर के द्वार तक बिदा करने जाएँ। कन्या भोज में मिष्ठान्ना तो अवश्य चाहिए। भोजन चलते रहने तक धूप व दीपक जलना चाहिए। भोजन की सामग्री स्वयं उपासक को परोसना चाहिए। जूठन व भोजन किए हुए पात्र भी उठाने का प्रयास करना चाहिए। कन्या भोज एक महापूजा है।

इस बात का पूर्ण ध्यान रखकर ही इस कर्म में भावना रखनी चाहिए। आवेश, क्रोध का परित्याग करके ही यह क्रम होना चाहिए। विपरीत परिस्थिति अर्थात कन्या द्वारा जल का ढुलना, पात्रों को गंदा करना, वमन आदि का आना, किसी सामग्री का त्याग करना अथवा किसी सामग्री पर विशेष अनुराग रखकर खाना आदि को भी देवी लीला समझकर यह कर्म करने से देवी अनुष्ठान की पूर्ति होती है।

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