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भारत का सितारा विदेश में चमका

पूर्व का सूरज चमका पश्चिम में

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लार्ड पॉल को मिला 'पंजाब रत्न' का सम्मान

PTI
तू चाहे तो हवाओं के रुख को मोड़ दे
तू चाहे तो टूटे रिश्तों को जोड़ दे।
मत थाम निराशा का दामन
जरा इनकी लकीरों को पहचान तो ....

जिंदगी किसे किस मोड़ पर ले आती है। इसके बारे कोई पूर्वानुमान नहीं किया जा सकता है। कब किसकी किस्मत का सितारा चमक जाए और उसके सपनों को पर लग जाए, यह कहना मुश्किल है।

भारतीय मूल के लार्ड स्वराज पॉल ने भी परदेस में अपनी एक अलग पहचान बनाते हुए भारत का नाम रोशन किया है। किसी को उम्मीद नहीं थी कि जालंधर के बर्तन व्यवसायी का बेटा एक दिन दुनिया के अमीरों की फेहरिस्त में शामिल हो जाएगा।

सन् 1931 में पंजाब के जालंधर में जन्मे स्वराज ने पंजाब यूनिवर्सिटी से शिक्षा ग्रहण कर अमेरिका के एमआईटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की। उसके बाद वे आम भारतीय की तरह स्वदेश लौट आए और अपने पिता के कारोबार (एपी जय ग्रुप) में हाथ बँटाने लगे।

कहते हैं किस्मत आदमी को कहाँ से कहाँ ले जाती है। विदेश से स्वदेश लौटे स्वराज के साथ भी यही हुआ। अपनी पुत्री अंबिका के ब्लड कैंसर के इलाज के लिए उन्हें ब्रिटेन जाना पड़ा। कई विशेषज्ञों के इलाज व दुआओं के बाद भी अंबिका नहीं बच पाई।

यहीं से स्वराज की जिंदगी में एक नया मोड़ आया और उन्होंने ब्रिटेन का रुख किया। अपने पिता के व्यवसाय का बँटवारा होने के बाद स्वराज ने अपनी कंपनी का नाम बदलकर कापेरो रख लिया।

1.5 अरब पाउंड की यह कंपनी आज ब्रिटेन की बड़ी कंपनियों में शुमार है तथा इस कंपनी का चेयरमैन लार्ड स्वराज पॉल दुनिया के धनी व्यक्तियों की सूची में।

दुनियाभर में नाम कमाने वाले लार्ड स्वराज पॉल को 'पद्मभूषण' और इंडियन मर्चेंट चेंबर द्वारा 'भारत गौरव' के खिताब से नवाजा जा चुका है। इसी के साथ ही हाल ही में इन्हें 'पंजाब रत्न' सम्मान प्रदान किया गया है।

आज कई भारतीय विदेशों की ओर रुख कर रहे हैं और वहाँ की आर्थिक प्रगति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन रहे हैं। विदेशों में भारतीय इंजीनियरों की सर्वाधिक माँग रहती है। शायद यह हम भारतीयों की कर्मठता, लगन व मेहनत का प्रतिफल है।

हममें वो प्रतिभा है कि हम जहाँ भी जाते हैं अपनी अलग पहचान बनाते हैं। जब विदेशों में हमारा नाम है तो क्यों न हम अपने देश की प्रगति में हाथ बँटाएँ और भारत को विकसित देशों की श्रेणी में ले जाएँ।

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