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सूर्य उपासना का महापर्व छठपूजा

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हर साल की तरह इस वर्ष भी सूर्य उपासना का महापर्व छठपूजा भक्तिभाव के साथ मनाया जाएगा। सुख, समृद्धि और पुत्र की कामना को लेकर किए जाने वाले इस व्रत की शुरुआत 30 अक्टूबर से नहाई खाई के साथ हो गई। इस दिन व्रती महिलाओं ने अपने-आपको शुद्ध करने के बाद बिना लहसुन-प्याज के लौकी की सब्जी, दाल और चावल बनाकर प्रसाद ग्रहण किया। इसे कद्दूभात भी कहा जाता है। इसी के साथ व्रत की शुरुआत होती है।

30 अक्टूबर नहाई-खाई और घाट पूजा के बाद दूसरे दिन यानी कि 31 अक्टूबर को व्रतियों द्वारा खरना किया जाएगा। इसमें व्रती महिलाएं एक कमरे की साफ सफाई करने के बाद इसमें अपने आपकों बंद कर लेती है। कमरे में छठमाता का प्रतीक बनाकर भक्तिभाव के साथ पूजा अर्चना करती है। पूजा समाप्त होते ही कमरे में अपने लिए भोग बनाकर उसे ग्रहण करेंगी।

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इस भोग को ग्रहण करने के बाद व्रतियों के 24 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है। व्रतियों के 24 घंटे के निर्जला उपवास के दौरान एक नवंबर की शाम पहला अर्ध्य दिया जाएगा। लिहाजा इस दिन घाटों पर मेले जैसा माहौल रहेगा। यह अर्ध्य छठघाट में डूबते सूर्य को वैदिक मंत्रोच्चार के साथ ही देने की परंपरा है।

इसके दूसरे दिन सूर्योदय से पहले व्रति महिलाएं एक बार फिर से घाट पहुंचेंगी और उगते हुए सूर्य को अर्ध्य देकर व्रत समाप्त करेंगी।

पहला अर्घ्य 1 नवंबर को दिया जाएगा।

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