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भाई की सूनी कलाई

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- विशाल मिश्रा

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राखी ‍का दिन आया। भाई को बहन की याद आई। बहन को भाई की याद आई। भाई की याद तो बहन समेत माता-पिता समाज सभी को है। लेकिन शायद बहन के लिए यह बात समान रूप से लागू नहीं होती। उसे जन्म देने वाली माँ भी कहीं न कहीं समझौता कर लेती है। जबकि खुद भी एक माँ है और जिसने उसे जन्म दिया वह भी माँ (कन्या) ही थी। आज कितनी माँ होंगी जोकि दिल से चाहती हैं हमारे गर्भ से कन्या रत्न पैदा हो। या होने के बाद उसी भाँति खुश हों जितना कि पुत्र के होने पर।

या चाहेंगे भी तो कब जबकि पहले से 1 या 2 छोरे हैं हाँ अब बेटी हो जाए। जन्म से पहले तो सुनना भी गंवारा नहीं होता कि बेटी होगी। सौ फीसदी बेटा ही होगा। गर्भ में ही पता लगाकर उस कन्या पर छूरियाँ चलाते तनिक भी माथे पर सिकन नहीं पड़ती। क्यों? वारिस चाहिए, वंश चलाने के लिए लड़का चाहिए। क्या चिता को बेटा आग लगाएगा तभी आपको मोक्ष की प्राप्ति होगी।
नाम रोशन करेगा तो बेटा ही, बेटी नहीं कर सकती?

आज किसी भी क्षेत्र में लड़कियाँ लड़कों से पीछे नहीं। इंजीनियर हों, डॉक्टर हों, पायलट हों, राजनेता, बिजनेस एडवाइजर, विपणन अधिकारी, लेखक, अर्थशास्त्री। हर क्षेत्र में लड़कियाँ लड़कों से कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं। सोनिया गाँधी, इंदिरा नूई, स्व. कल्पना चावला, लता मंगेशकर, स्व. अमृता प्रीतम, तस्लीमा नसरीन, मेधा पाटकर, मेनका गाँधी आदि का तो कहना ही क्या। आपका यही अपराध ऐसी ही किसी प्रतिभा को दुनिया में आने से रोक रहा हो।

भ्रूण हत्या के लिए कानून बनाने की बात कही जाती है। कठोर दंड की बात कही जाती है। अरे आपकी अपनी संतान है, आपके कलेजे का टुकड़ा है उसे आपसे बचाने के लिए कैसा कानून? जब आप ही नहीं चाहते अपनी औलाद को बचाना तो कौन रोक सकेगा आपको ऐसा करने से। इन बच्चों के हत्यारे (कुख्यात 'डॉक्टर') भी राजी हो जाएँगे आपके साथ।

इसी कारण वर्ष दर वर्ष देश के सभी राज्यों में महिला-पुरुष अनुपात में अंतर की खाई बढ़ती जा रही है। यदि इस स्थिति पर रोक नहीं लगी तो कौन बाँधेगा भाइयों की सूनी कलाइयों पर राखी।

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