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मेरी वे पत्र-बहनें

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अखिलेश श्रीराम बिल्लौर
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दो रोज पूर्व घर पर स्वास्थ्य खराब होने पर आराम कर रहा था। राखी का त्योहार नजदीक होने के कारण आकाशवाणी पर हेलो फरमाइश कार्यक्रम में एक श्रोता ने फिल्म चंबल की कसम का गाना सुनना चाहा। जब गाना प्रसारित हुआ तो मैं भाव-विभोर हो गया। एक बहन अपने भाई को याद करती है। वह चंद्रमा से भाई तक अपना संदेश पहुँचाने की गुहार करती है। गाने की पंक्तियाँ कुछ इस तरह हैं-
चंदा रे, मेरे भैया से कहना बहना याद करे...


यह गाना सुनकर मुझे उन बहनों की याद आ गई जिन्हें मैंने पहले कभी देखा नहीं। दूर रहती हैं। कभी उनके पास जाने का अवसर नहीं आया। जब मैं नहीं गया तो उन बेचारियों से क्या उम्मीद करूँ कि वे दोनों भी आ जाएँ। इन बहनों का मेरे साथ केवल पत्र का रिश्ता है। हाँ, हमने कभी एक-दूसरे को देखा नहीं केवल पत्र द्वारा ही एक-दूसरे की भावनाएँ व्यक्त करते हैं

‘नईदुनिय’ के जरिए बना रिश्ता : हमारा रिश्ता बने करीब 8 साल हो गए। हुआ यूँ कि मेरे पत्र नईदुनिया जैसे प्रतिष्ठित अखबार में छपते रहते थे। इन्हीं में से एक पत्र मेरी इन बहनों को इतना अच्छा लगा कि मेरी प्रशंसा भरा पत्र इन्होंने बजाए अखबार के कार्यालय में भेजने के मेरे पास भेज दिया। उस पत्र में इन दोनों का नाम नहीं था, न ही मेरे बारे में कुछ संबोधन किया गया। बस मेरी प्रशंसा में बहुत कुछ लिखा गया था।
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उस पत्र की गहराई से जाँच करने पर मैंने पाया कि यह किसी लड़की के द्वारा ही लिखा गया है। बस फिर क्या था उन्हें बहन संबोधित कर मैंने धन्यवाद पत्र भेज दिया। इस वाकये को भूलकर मैं अपने कार्य में व्यस्त हो गया। 15 दिन बाद मेरे पास उनका फिर पत्र आया। अबकि बार मेरे छपे पत्र की तारीफ नहीं थी, बल्कि मेरे लिखे धन्यवाद पत्र की तारीफ थी। मुझे अपनत्व भरा स्नेह दिया गया था। भैया लिखकर मुझे संबोधित किया गया था। मैं बहुत प्रसन्न हो गया। मैंने भी उन्हें जवाबी पत्र भेज दिया।

कुछ दिन बाद ही राखी का त्योहार आया और मेरे आश्चर्य का उस समय ठिकाना नहीं रहा जब मैं ऑफिस से रात को घर पहुँचा तो पत्नी ने मेरे सामने राखी वाला पत्र रख दिया, कहा- ये आपकी पत्र-बहनों ने भेजा है। बड़ी सुंदर सी दो राखियाँ उन्होंने भेजी थीं। मेरे पास उनकी प्रशंसा के लिए शब्द नहीं थे। मैंने इस बारे में अपने पूरे परिवार को बताया। मेरी सभी बहनों ने मुझे वह राखी पहले बाँधी जो पत्र-बहनों ने भेजी थी।
मेरी कोई सगी बहन नहीं है। मैं अपनी चचेरी-ममेरी बहनों से ही राखी बँधवाता था। मुझसे जितना बन पड़ता है, उतना रिश्ता निभाता चला आया हूँ। शायद ईश्वर ने मुझ पर और उपकार करके दो पत्र बहनें दी हैं। उन प्यारी बहनों को प्रणाम। क्योंकि वे आज भी मुझे पत्र लिखती हैं और प्रतिवर्ष रक्षाबंधन पर राखी भेजती हैं।

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