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कश्मीर में घातक साबित हो रहे हैं नॉन लीथल हथियार

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सुरेश एस डुग्गर

श्रीनगर। कश्मीरियों के लिए घातक और गैर-घातक हथियार एक जैसे ही साबित हो रहे हैं। हालांकि कश्मीर में पुलिस फायरिंग में 40 मौतों के बाद कश्मीर में प्रदर्शनकारियों को थामने की खातिर गैर-घातक हथियारों के जोर पर बल दिया जा रहा था, लेकिन ये हथियार भी बराबर के नुकसान पहुंचा रहे हैं। यही कारण था कि वर्ष 2010 के प्रदर्शनों के दौरान इन हथियारों का इस्तेमाल करने वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस अगर इन हथियारों पर चिल्ला रही थी और तब इस पर चिल्लाने वाली पीडीपी के नेता अब खामोशी अख्तियार किए हुए हैं।
परंपरागत बंदूकों के साथ ही कश्मीर में सुरक्षाबलों ने अब कई किस्म के गैर-घातक हथियारों का इस्तेमाल आरंभ तो किया है पर कश्मीरी उनके जख्मों की भी ताव नहीं सहन कर पा रहे हैं। 
ताजा उदाहरण जख्मी होने वाले 1500 लोगों में उन 100 के करीब लोगों का है जिन्हें इन्हीं नॉन लीथल हथियारों ने ऐसा जख्मी किया की उनमें से कइयों की हालत गंभीर बनी हुई है तो कइयों की आंखों की रोशन चले जाने का डर सता रहा है। हालांकि आंखों की रोशनी बचाने की खातिर नई दिल्ली से विशेषज्ञ भी आए हुए हैं पर वे भी इन हथियारों की घातकता से हैरान हो गए हैं।
 
पिछले एक हफ्ते के दौरान कश्मीर के विभिन्न स्थानों पर सुरक्षाबलों ने गैर-घातक हथियारों का ही इस्तेमाल किया। इस दौरान इन गैर-घातक हथियारों से जख्मी हुए करीब 200 लोगों में से 3 दम तोड़ चुके हैं। इस कारण इन गैर-घातक हथियारों की घातकता शक के दायरे में है।
 
घायलों का इलाज करने वाले डॉक्टरों के बकौल, इस दौरान जितने भी जख्मी इलाज के लिए अस्पतालों में लाए गए हैं, उनके नाजुक अंगों पर इन गैर-घातक हथियारों से वार किए गए थे जिस कारण उनकी दशा नाजुक बनी हुई है। यह भी हैरानगी की बात है कि घातक और गैर-घातक हथियारों से जख्मी होने वाले सभी कश्मीरियों में से 90 प्रतिशत के शरीरों पर पेट के ऊपर के हिस्से में सुरक्षाबलों द्वारा गोलियां दागी गई हैं जो चिंता का विषय माना जा रहा है।
 
नॉन लीथल हथियारों का इस्तेमाल सुरक्षाबलों की ओर से वर्ष 2008 में उस समय आरंभ किया गया था जब अमरनाथ जमीन मामले पर जम्मू-कश्मीर पूरे दो महीनों तक जलता रहा था। तब राज्यपाल का शासन था। हालांकि तब अलगाववादी नेताओं ने इस पर चिंता प्रकट की थी।
 
लेकिन वर्ष 2010 के हिंसक प्रदर्शनों में इन नॉन लीथल हथियारों ने जबरदस्त तबाही मचाई तो पीडीपी के नेताओं ने भी काफी हो-हल्ला किया था। तब मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी इसके खिलाफ होने वाले विरोध प्रदर्शनों में सबसे आगे थी पर इस बार नॉन लीथल हथियारों ने और ज्यादा घातकता साबित की तो महबूबा राज भी कश्मीरियों के लिए घातक ही साबित हुआ है।

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