Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

कहाँ हैं ऐसे शिक्षक?

हमें फॉलो करें कहाँ हैं ऐसे शिक्षक?
- नेहा मित्तल

ND
भारी वर्षा के दिन थे, कमरे की छत से बूँदें टपक रही थीं। चटाई पर बैठे बच्चे अपने शिक्षक की बात ध्यान से सुन रहे थे। कक्षा में कुल दस बच्चे थे। गरीबी एवं घर की जिम्मेदारी जल्द उठाने के लिए अधिकांश बच्चे कम उम्र में ही स्कूल छोड़ रहे हैं। परंतु एक शिक्षक के कारण इन बच्चों की जिंदगी बदल गई है।

शिक्षक बड़े शहर में हाई स्कूल के अध्यापक होते हुए भी अपनी नौकरी छोड़कर इस गाँव में पढ़ाने लगे थे। हर बच्चे को वे पढ़ाते, रात दिन एक कर गाँव के गरीब बच्चों को उच्च शिक्षा तक पहुँचने के लिए उन्हें प्रेरित किया था। आज वे बच्चे विभिन्न क्षेत्रों में कदम रख चुके थे।

गाँव से निकलकर इन नौजवानों ने संघर्ष और दृढ़ निश्चय से दुनिया को अपनी मुठ्ठी में कर लिया था। इसका सारा श्रेय उस अध्यापक को जाता है जिसने, नि:संकोच होकर गाँव के बच्चों को पढ़ाने की ठान ली थी।

अरिंदम बासू स्कूल के शिक्षक ने कहा कि हमारे समय में शिक्षक जीवन के मूल्यों को अधिक महत्व देते थे। घर में यदि हम पढ़ नहीं पाते थे तो अध्यापक के घर जाकर हम पढ़ा करते थे। कठिन से कठिन पाठ को वे सरलता से समझाते थे। कम उम्र से ही हमें अनुशासन का अर्थ समझाते थे।
  दिल्ली के विश्वविद्यालय शिक्षक विद्‍युत चक्रवर्ती का कहना है कि ‘अध्यापकों में आज उतनी निष्ठा नहीं है, न ही विद्यार्थियों के प्रति लगाव है। कारण है कि शिक्षकों में मूल्यों में परिवर्तन आ गया है।      


कभी-कभी पढ़ते हुए हम अध्यापक के घर पर भोजन कर सो जाते थे। शुल्क भरने के लिए पैसे नहीं थे। अध्यापक महीने की आय से निकालकर पैसे देते थे। आज जो भी मैं हूँ अपने अध्यापकों के वजह से हूँ।

हो रहे बदलाव के साथ-साथ अध्यापकों के पढ़ाने के अंदाज में भी परिवर्तन आ गया है। अधिक धन कमाने की इच्छा में अध्यापक आज कुँजी पुस्तकों से पढ़ाते हैं ताकि परीक्षा के समय विद्यार्थी जैसे-तैसे सफलता हासिल कर सकें।

न ही उतनी आग्रहता से पढ़ाते हैं और न ही मन से........ विद्यार्थियों में भी अध्यापकों के प्रति आदर, श्रद्धा नहीं रह गई है। कक्षा के बाद घर पर अधिकतर अध्यापक बच्चों को पढ़ाते हैं जिससे उन्हें अधिक पैसा मिलता है

शिक्षा प्रणाली में शिक्षा के प्रति अध्यापकों के इस बदलाव का क्या कारण है? दिल्ली के विश्वविद्यालय शिक्षक विद्‍युत चक्रवर्ती का कहना है कि ‘अध्यापकों में आज उतनी निष्ठा नहीं है, न ही विद्यार्थियों के प्रति लगाव है। कारण है कि शिक्षकों में मूल्यों में परिवर्तन आ गया है। पहले शिक्षक विद्या‍र्थियों के लिए सुख सम्पत्ति, सब कुछ त्याग कर देते थे

आज यह प्रणाली अधिक धन कमाने का स्रोत है। आज छात्रों के समक्ष कोई ऐसे शिक्षक नहीं जिनसे वे प्रेरित हो सकते हैं। राजनीति के रंगमंच में अब अध्यापक एवं विद्यार्थी भाग लेने लगे हैं। विश्वविद्यालयों में छा‍त्र संगठन होने के कारण शिक्षा प्रणाली दूषित हो गई है। इन पर अंकुश लगाए जाने की जरूरत है।

शायद इसके लिए जिम्मेदार है भारतीय समाज जोकि पश्चिम देशों का अनुकरण कर अपने सांस्कृतिक मूल्यों को भूलते जा रहे हैं। परंतु सामाजिक मूल्यों में बदलाव के बावजूद आज कई ऐसे शिक्षक हैं जो बच्चों को निष्ठा, त्याग, सहनशीलता से पढ़ा रहे हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi