एक दिन एक अरबी व्यक्ति विजयनगर आया, उसके पास एक ऊंट था। लोगों की भारी भीड़ ऊंट को देखने के लिए इकट्ठी हो गई, क्योंकि उनके लिए वह एक अजूबा था। उन्होंने ऊंट के बारे में सुना था, पर कभी ऊंट देखा नहीं था। राजा एवं तेनाली भी ऊंट नामक इस अजीबो-गरीब जानवर को देखने आए।
दोनों एकसाथ खड़े हुए ऊंट को देख रहे थे। राजा बोले, तेनाली, निःसंदेह ऊंट एक विचित्र जानवर है। इसकी लंबी गर्दन तथा कमर पर दो कूबड़ हैं। मैं हैरान हूं कि भगवान ने ऐसा विचित्र तथा बदसूरत प्राणी पृथ्वी पर क्यों भेजा?'
राजा कृष्णदेव राय की इस बात पर तेनाली को जवाब देने का अवसर मिला और वह सदैव की तरह आज भी अपने उत्तर के साथ तैयार था।
वह बोला, 'महाराज, शायद... शायद... क्या बल्कि अवश्य ही यह ऊंट अपने पूर्व जन्म में कोई राजा रहा होगा और शायद इसने भी कभी किसी को उपहारस्वरूप नगर देने का वचन दिया होगा और फिर बाद में भूल गया होगा अतः दंड के रूप में ईश्वर ने इसे इस प्रकार का रूप दिया होगा।'
पहले तो राजा को यह तेनाली की एक बुद्धिपूर्ण काल्पनिक कहानी लगी, परंतु कुछ समय पश्चात ही उन्हे तेनाली को दिया हुआ अपना वचन याद आ गया।