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विदेशी पर्यटकों को लुभाते हैं असम के मुखौटे

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यूं तो भारत की विभिन्न संस्कृतियों में वैष्णव पंथ से संबंधित मुखौटों का एक महत्वपूर्ण स्थान है लेकिन असम राज्य के जोरहाट जिले में स्थित सबसे बड़े नदी द्वीप माजुली में निर्मित किए जाने वाले मुखौटों का अपना एक अलग महत्व है।

वैष्णव परंपरा से जुड़े ये मुखौटे स्थानीय कच्ची सामग्री के प्रयोग तथा स्थानीय संस्कृति के प्रभाव के कारण भारतीयों के अलावा विदेशी पर्यटकों को भी बहुत आकर्षित करते हैं।

माजुली के मुखौटे निर्माण की यह परंपरा आज भारत सहित पूरे विश्व में ख्याति पा रही है। यह अनूठी कला वहां के लोगों की कमाई का एक स्त्रोत भी बनती जा रही है। यह बात गोहाटी विश्वविद्यालय असम के मानव विज्ञान विभाग के प्रो.बिरिन्ची के. मेधी ने कही।

वे 'असम के एक नदी द्वीप के वैष्णव मुखौटों की आभा' विषय पर गत दिवस भोपाल के मानव संग्रहालय में आयोजित लोकरुचि व्याख्यानमाला को संबोधित कर रहे थे।

व्याख्यान में उन्होंने बताया कि सोलहवीं शताब्दी में श्रीमंत शंकर देव के आगमन के साथ ही असम में वैष्णव पंथ के प्रचार-प्रसार की पुनः शुरुआत हुई। उन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी के विशाल द्वीप माजुली को अपनी कर्मभूमि बनाया तथा अपने उपदेशों के माध्यम से भक्तों के साथ वैष्णव पंथ का प्रचार-प्रसार किया।

श्रीमंत ने रामायण, महाभारत और पुराणों की कथाओं को नाट्य रूप में परिवर्तित किया जिसे भावना के नाम से जाना जाता है। भावना के प्रदर्शन के लिए विभिन्न पात्रों के लिए उन्होंने मुखौटों का विकास किया। इन मुखौटों में असम की स्थानीय सामग्री के उपयोग ने उन्हें एक विशेष पहचान दी। यहां आए प्रतिभागियों को विश्व धरोहर स्थल भीम बैठका के भ्रमण पर ले जाया गया।

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