इस दिन मां गौरी के 10 रूपों की पूजा करते हैं- गौरी, उमा, लतिका, सुभागा, भगमालिनी, मनोकामना, भवानी, कामदा, सौभाग्यवर्धिनी और अम्बिका।

चैत्र कृष्ण एकादशी के दिन घर पर लकड़ी की टोकरी में जवारे बोएं। इन जवारों को गौरी और शिव का रूप मानते हैं।

जवारे विसर्जन तक व्रती महिला 1 समय भोजन करती हैं। विसर्जन तक प्रतिदिन दोनों समय गौरीजी की पूजा करके उन्हें भोग लगाएं।

गौरीजी को सुहाग की वस्तुएं, जैसे कांच की चूड़ियां, सिंदूर, महावर, मेहंदी, टीका, बिंदी, कंघी, शीशा, काजल आदि अर्पित करें।

सुहाग की सामग्री को चंदन, अक्षत, धूप-दीप, नैवेद्यादि से विधिपूर्वक पूजन कर गौरी को अर्पण करें, इसके पश्चात गौरी जी को भोग लगाएं।

भोग के बाद गौरी जी की कथा सुनें और फिर चढ़ाए हुए सिंदूर से विवाहित स्त्रियां अपनी मांग भरें।

कुंआरी कन्याएं भी इन दिनों गौरी जी को प्रणाम करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।

तत्पश्चात चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) को गौरी जी को किसी नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर उन्हें स्नान कराएं।

चैत्र शुक्ल तृतीया को भी गौरी-शिव को स्नान कराकर, उन्हें सुंदर वस्त्र, आभूषण आदि पहनाकर डोल या पालने में बिठाएं।

शाम को शोभायात्रा के रूप में गौरी-शिव को नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर विसर्जित करें और व्रत छोड़ें। इस व्रत को करने से सुख-सौभाग्य, समृद्धि, संतान तथा ऐश्वर्य में वृद्धि होती है।

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