नर्मदा नदी की महिमा

नर्मदा को रेवा भी कहते हैं। स्कंद पुराण में रेवाखंड नाम से एक अलग अध्याय है। पुराणों में इस नदी की महिमा का हर जगह वर्णन है। इसका जल भूख मिटा देता है।

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गंगा कनखल में और सरस्वती कुरुक्षेत्र में पवित्र है, किंतु गांव हो या वन नर्मदा हर जगह पुण्य प्रदायिका महासरिता है।

सरस्वती में 3 दिन, यमुना में 7 दिन तथा गंगा में 1 दिन स्नान करने से मनुष्य पावन होता है लेकिन नर्मदा के दर्शन मात्र से व्यक्ति पवित्र हो जाता है।

गंगा ज्ञान, यमुना भक्ति, गोदावरी ऐश्वर्य, कृष्णा कामना, ब्रह्मपुत्रा तेज, सरस्वती विवेक लेकिन नर्मदा वैराग्य प्रदान करने संसार में आई है।

मत्स्य पुराणानुसार यमुना का जल एक सप्ताह में, सरस्वती का तीन दिन में, गंगा जल उसी दिन और नर्मदा का जल उसी क्षण पवित्र कर देता है।

सभी नदियों में नर्मदा कुंवारी और तपस्विनी नदी है। इसलिए इसके तट पर तपस्या करने से संतों को तुरंत लाभ होता है।

स्कंद पुराण के रेवाखंड में ऋषि मार्कंडेय ने लिखा है कि नर्मदा के तट पर भगवान नारायण के सभी अवतारों ने आकर मां की स्तुति की है।

आदि गुरु शंकराचार्य जी ने नर्मदाष्टक में माता को सर्वतीर्थ नायकं से संबोधित किया है। अर्थात माता को सभी तीर्थों का अग्रज कहा गया है।

संसार में एकमात्र मां नर्मदा नदी ही है जिसकी परिक्रमा देवता, सिद्ध, नाग, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, मानव आदि सभी करते हैं।

सभी नदियां पश्चिम से होकर पूर्व में बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। वहीं नर्मदा पूर्व से पश्चिम की ओर बहकर अरब सागर में जाकर गिरती है।

नर्मदा नदी के हर पत्थर में शिव का वास है। नर्मदा नदी से जुड़े बाण लिंगों की उत्पत्ति भगवान शिव के एक दिव्य बाण से हुई थी।

नर्मदा पाताल की नदी है। यही एकमात्र नदी है जिसका नाभि स्थल नेमावर में स्थित है जहां से पाताल जाया जा सकता है।

राजा-हिरण्य तेजा ने 14 हजार दिव्य वर्षों की तपस्या से शिव को प्रसन्न कर नर्मदा को पृथ्वी पर आने के लिए वर मांगा था।

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