महाशिवरात्रि का त्योहार मनाए जाने के कई कारण हैं, जानते हैं कुछ प्रमुख कारण-

ईशान संहिता अनुसार फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले शिवलिंग रूप में प्रकट हुए थे।

फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी में चंद्रमा सूर्य के करीब होता है। उसी समय जीवन रूपी चंद्रमा का शिव रूपी सूर्य के साथ योग-मिलन होता है।

माना जाता है कि सृष्टि की शुरुआत में इसी दिन आधी रात में भगवान शिव का निराकार से साकार रूप में अवतरण हुआ था।

मान्यता अनुसार इसी दिन प्रदोषकाल में शिवजी ने तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से भस्म कर दिया था।

इस दिन भगवान शंकर की शादी भी हुई थी। इसलिए रात में शंकरजी की बारात निकाली जाती है।

महाशिवरात्रि व्रत की कथा चित्रभानु नामक एक शिकारी से जुड़ी है जो अनजाने में ही शिवजी की पूजा करके उनकी कृपा का पात्र बन जाता है।

हलाहल विष को पीकर शिवजी नीलकंठ कहलाए। विषपान की इस रात्रि की याद में भी महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।

इसी रात्रि को भगवान शंकर ने सृष्टि उत्पत्ति की इच्छा से स्वयं को ज्योतिर्लिंग में परिवर्तित किया था।

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