मुंबई। वर्ष 2016 में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपनी पहले जैसी मजबूती बरकरार नहीं रख पाया। वर्ष समाप्त होते-होते गिरता हुआ एक समय यह 69 रुपए के करीब पहुंच गया था। वर्ष के आखिरी महीनों में विदेशी संस्थागत निवेशकों की भारी निकासी के चलते रुपया लगातार गिरता हुआ नवंबर में एक समय 68.90 के स्तर को छू गया, हालांकि इसके बाद 26 दिसंबर को यह 67.74 रुपए प्रति डॉलर पर रहा।
विदेशी संस्थागत निवेशकों ने वर्ष के आखिरी दौर में भारतीय पूंजी बाजारों से करीब दो अरब डॉलर की पूंजी निकाल ली जिसका डॉलर-रुपए की विनिमय दर पर काफी असर पड़ा। सितंबर में एक समय जहां डॉलर के मुकाबले रुपया 66.25 के मजबूत स्तर पर था, वहीं नवंबर में एक समय यह गिरकर 68.90 रुपए प्रति डॉलर के स्तर तक पहुंच गया। विदेशी संस्थागत निवेशकों की बिकवाली से विदेशी मुद्रा भंडार से निकासी हुई।
पिछले साल के आखिरी दिन डॉलर के मुकाबले रुपया 66.15 पर रहा था, जबकि इस साल 26 दिसंबर 2016 को इसका बंद भाव 67.74 रुपए प्रति डॉलर रहा। इस लिहाज से इसमें करीब 2.40 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।
विदेशी मुद्रा प्रवासी भारतीय (एफसीएनआर) जमाओं की परिपक्वता पर निकासी के बाद नवंबर में बाजार में धारणा काफी धूमिल रही। अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ने के बाद भारत और अमेरिका में दरों का अंतर कम होने से विदेशी मुद्रा की निकासी बढ़ी है।
विदेशी निवेशकों ने ॠण पत्रों के निवेश से 6.47 अरब डॉलर की निकासी की, हालांकि इस दौरान इक्विटी में 4.01 अरब डॉलर का निवेश प्राप्त किया गया। इस प्रकार निवल निकासी दो अरब डॉलर से अधिक रही।
आईएफए ग्लोबल के संस्थापक और सीईओ अभिषेक गोयनका ने बताया कि बाजार में इस तरह की चर्चा है कि डॉलर के मुकाबले रुपया 70 के आंकड़े को पार कर जाएगा। आने वाले दिनों में नोटबंदी का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), औद्योगिक उत्पादन के आंकड़ों पर प्रभाव दिखाई देगा।
उन्होंने कहा कि चीन की अर्थव्यवस्था में लगने वाले झटकों और डॉलर में आने वाली मजबूती आने वाले दिनों में रुपए को नीचे खींचती रहेगी।
अमेरिका की अर्थव्यवस्था में लगातार सुधार की उम्मीद दिखती है। फेडरल रिजर्व ने पिछले एक साल में पहली बार ब्याज दरों में वृद्धि की है। आर्थिक क्षेत्र में सुधार और ब्याज दरों में और वृद्धि के संकेतों से डॉलर को मजबूती मिलने की धारणा मजबूत हुई है।
अमेरिका के हाल में संपन्न राष्ट्रपति पद के चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप की जीत से डॉलर को काफी मजबूती मिली है। उनके प्रशासन द्वारा राजकोषीय खर्च बढ़ाए जाने से मजबूती की उम्मीद बढ़ी है।
चुनावों के बाद से डॉलर जनवरी 2003 के बाद दुनिया के प्रमुख मुद्राओं के समक्ष रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा है। अमेरिकी शेयर बाजार में भी मजबूती आई है। कारोबारियों को उम्मीद है कि ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद ढांचागत क्षेत्र में व्यय बढ़ेगा और करों में कटौती की जाएगी।
दूसरी तरफ ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से हटने का पौंड पर असर पड़ा है। पौंड 15 प्रतिशत लुढ़क गया। उधर, यूरो भी डॉलर के मुकाबले 1.04 से नीचे आ गया जबकि वर्ष की शुरुआत में यह 1.09 पर रहा था। (भाषा)