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लगान ने थियेटर को स्टेडियम में बदला!

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आमिर खान द्वारा निर्मित और आशुतोष गोवारीकर द्वारा निर्देशित फिल्म 'लगान' एक पीरियड-फिल्म है। इस फिल्म ने यह साबित कर दिया कि यदि आपमें अच्छी कहानी कहने की क्षमता है तो तमाम भौगोलिक और भाषायी सीमाएँ अपने आप समाप्त हो जाती हैं।

3 घंटे 42 मिनट लंबी इस फिल्म को स्विट्‍जरलैंड में हजारों दर्शकों ने तल्लीन होकर देखा। फिल्म 'लगान' उन्हें इतनी पसंद आई कि लोकार्नो फिल्म फेस्टिवल में इसे आडिएंस-अवॉर्ड दे दिया। अब तक लगान विश्व के प्रतिष्ठाजनक फिल्म समारोह शिकागो (अमेरिका), टोरंटो (कनाडा), पूसन (दक्षिण कोरिया), दमिश्क (सीरिया) और बर्जेन (नार्वे) में दिखाई जा चुकी है। भले ही इसे ऑस्कर अवॉर्ड न मिला हो, विदेशी फिल्म की श्रेणी में प्रथम पाँच में इसका नामांकन होना किसी ऑस्कर से कम नहीं है।

लगान में मनुष्य की जीत को कल्पनाशीलता, संवेदनशीलता और कुशलतापूर्वक प्रस्तुत किया गया। यही वजह है कि जिन थियेटरों में लगान चल रही थी, वे कुछ समय के लिए स्टेडियम में बदल गए।

आशुतोष गोवारीकर और आमिर बचपन के दोस्त रहे हैं। खार जिमखाना में साथ टेनिस खेला करते थे। एक बड़े बजट की एक्शन फिल्म सहित वे दो फ्‍लॉप फिल्में निर्देशित कर चुके थे। कुछ बरस पहले आशुतोष ने आमिर को लगान की कहानी सुनाई थी, तो उन्होंने आउटराइट-रिजेक्ट कर दिया था। सन् 1893 में लगान चुकाने से बचने के लिए गाँव वालों का क्रिकेट खेलना ऐसी कहानी नहीं थी, जिसके लिए दर्शक टिकट लेकर तीन घंटे सिनेमा हॉल के अँधेरे में बैठें।

आशुतोष लगातार आमिर के पीछे पड़े रहे। दूसरी बार कहानी सुनने में आमिर उत्साह से भर गए और उन्होंने भुवन की मुख्‍य भूमिका करने का फैसला किया। लगान में आमिर के अलावा सेलेबल-स्टार कास्ट में कोई नहीं था।

लगान के‍ निर्माता की खोज शुरू हुई। पच्चीस करोड़ रुपए एक ब्रिटिश राज के गाँव के लिए लगाने का जोखिम कौन सिरफिरा उठाना चाहेगा? आमिर ने फिल्म निर्माण नहीं करने की जो प्रतिज्ञा की थी, उसे तोड़कर लगान के लिए पहली बार निर्माता बने।

लगान ने यह भी साबित किया कि एक सफल फिल्म बनाने के लिए साहस के साथ अनुशासन की जरूरत होती है। गुजरात में चंपानेर गाँव (भुज) को लगान की शूटिंग के लिए तैयार किया गया।

छह महीने तक तेज धूप, हवा, गर्मी, बारिश के दौरान फिल्म की शूटिंग की गई। आशुतोष को पीठ के दर्द ने परेशान किया, तो खटिया पर लेटे-लेटे उन्होंने निर्देशन किया। इस दौरान आमिर की पत्नी रीना ने बहुत मदद की।

लगान प्रदर्शन के बाद सत्यजीत भटकल ने डायरीनुमा शैली में 'द स्पिरिट ऑफ लगान' नाम से फिल्म निर्माण की पूरी प्रक्रिया को पुस्तक का आकार दिया है। दो सौ पचास रुपए की यह पुस्तक लगन, परिश्रम, अ‍नुशासन और समर्पण की कहानी दिलचस्प अंदाज में कहती है।

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