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साँचे में ढलकर आ रहे हैं 'नवोदित' अमिताभ!

हमें फॉलो करें साँचे में ढलकर आ रहे हैं 'नवोदित' अमिताभ!
- सुमंत मिश्र

हिंदी के शीर्षस्थ कवियों में से एक डॉ. हरिवंश राय बच्चन और उनके बेटे अमिताभ बच्चन को लेकर बहुत कुछ लिखा, कहा गया है। दोनों के बीच आपसी समझ के समीकरण और पिता-पुत्र के रिश्ते को आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया जाता रहा है लेकिन अभिनेता अमिताभ बच्चन की नई फिल्म "पा" में पिता-पुत्र के रिश्तों को एक नई पहचान-सी मिल रही है। इस फिल्म में अमिताभ पुत्र बने हैं और उनके पिता की भूमिका निभा रहे हैं अभिषेक बच्चन। फिल्मी दुनिया में यह पहला उदाहरण है जब बेटा अपने ही पिता के पिता की भूमिका निभा रहा है। निश्चित रूप से यह स्थिति चुनौतीपूर्ण है। खुद अमिताभ "पा" में अपने किरदार को एक चुनौती के रूप में लेते हैं और बताते हैं कि उम्र के इस मोड़ पर इस तरह का किरदार निभाना सचमुच एक चुनौती भरा काम था। "पा" के किरदार को लेकर अमिताभ बच्चन से हुई बातचीत के प्रमुख अंश प्रस्तुत हैं :

आज उम्र के 68 वें मोड़ पर इस तरह के किरदार को आप किस रूप में लेते हैं?
जब बाल्की ने मुझे "पा" की कहानी सुनाई तो सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि मैं 13 साल के बच्चे का रूप कैसे धरूँगा, लेकिन उस काम के लिए बाल्की ने पूरा रिसर्च किया था और मैं उससे संतुष्ट भी हुआ। सबसे ज्यादा आश्चर्य उस समय हुआ जब बाल्की ने बताया कि फिल्म में मेरे पिता का किरदार अभिषेक निभाएँगे। वैसे "पा" मूल रूप से पिता-पुत्र के आपसी रिश्तों की कहानी है। फिर मैंने इसको एक चुनौती के रूप में स्वीकार कर लिया। वैसे भी हर कलाकार के लिए उसका काम चुनौती ही होता है। जिस दिन चुनौती खत्म हो जाएगी, उसके जीवन में निराशा आ जाएगी। हमारे अंदर का कलाकार तभी तक जीवित रहेगा जब तक वह इस तरह की चुनौती को स्वीकार करता रहेगा।

तेरह साल का बच्चा, वह भी एक विलक्षण बीमारी प्रोगेरिया से ग्रसित! उसके लिए आपने क्या तैयारी की और कैसे?
हाँ, परदे पर यह काम काफी मुश्किल भरा था। फिर भी मुझे यह रूप देने में सबसे ज्यादा किसी को श्रेय जाता है तो वह है लॉस एंजिल्स के मेकअप मैन और ऑस्कर विजेता क्रिस्टन कीफल और डॉमिनिक को। बच्चे की शक्ल कैसी होगी और इसे कैसे परदे पर पेश किया जाएगा, इसके लिए लंदन में पूरी एक टीम बनी और उस समय मैं लंदन में ही शूटिंग कर रहा था। पहले उस बच्चे का प्लास्टर ऑफ पेरिस से ढाँचा बनाया गया और बाद में उस किरदार को शक्ल दी गई। फिर इसे अंतिम रूप दिया गया। हाँ, भारत में कोलकाता में एक परिवार है जो इस बीमारी से ग्रसित है। मैं जल्द ही उस परिवार से मिलने जा रहा हूँ। इस बीमारी के बारे में मैंने पढ़ा और काफी जानकारी जो बाल्की ने जुटाई थी, उससे भी काफी मदद मिली। इस बालक का कद छोटा है, चेहरा व सिर साधारण से ज्यादा बड़ा है, एकदम गंजा है और पूरे शरीर पर बाल नहीं हैं। 13 साल की उम्र में वह 60 साल का लगता है।

आपके लिए इसके मेकअप का अनुभव कैसा रहा?
बहुत ही चुनौती भरा काम था यह। पूरे मेकअप में पांच से छः घंटे लगते थे। मेरे पूरे शरीर को सिलिकॉन में ढाल दिया जाता था जिसमें जगह जगह पर आठ-नौ पुर्जे लगे होते थे। यहाँ तक कि साँस लेने के लिए और सुनने के लिए नाक और कान के पास छोटा-सा छिद्र कर दिया जाता था। मेकअप के दौरान मैं हिल भी नहीं सकता था। यहाँ तक कि उस दौरान मैं न तो कुछ खा सकता था, न पी सकता था। फिर सात से आठ घंटे शूटिंग और उसके बाद मेकअप उतारने में 2 घंटे लगते थे। बहुत ही तकलीफ होती थी लेकिन उसका परिणाम प्रेरित करने वाला था और इसी प्रेरणा ने मुझे ताकत दी। हाँ, दाँत भी इसमें अलग तरह के हैं और इन दाँतों को लगाने में भी बहुत तकलीफ होती थी।

बच्चे के रूप में आपने अपने बचपन की बातों को भी रखा या फिर किसी ने आपकी मदद की?
हाँ, बहुत-सी बचपन की घटनाओं को इसमें पिरोने की कोशिश जरूर की है लेकिन उम्र के इस मोड़ पर बहुत-सी बातें याद नहीं हैं लेकिन इसमें ऑरो का जो किरदार है, वह बहुत ही स्मार्ट बच्चा है और आज के युग के बच्चों की तरह है। इस काम में मेरे नाती व नातिन नव्या नवेली ने मेरी काफी मदद की। इस बच्चे ने आज के दौर के कपड़े पहने हैं। वह एकदम आज के माहौल का बच्चा है और एक आम बच्चे की तरह ही है।

अभिषेक के पुत्र के रूप में आप अपने को किस रूप में देखते हैं?
अभिषेक को इस किरदार में पेश करना बाल्की के दिमाग की सोच थी और उन्होंने पाया कि अभिषेक परदे पर मेरे पिता के किरदार को सही ढंग से निभा सकेंगे। उनका यह भी मानना था कि अभिषेक में यह क्षमता है। कलाकार के रूप में हम दोनों ने अपने-अपने किरदार निभाए हैं और यहाँ पर यह बात कि वास्तविक जिंदगी में मैं अभिषेक का पिता हूँ और वे मेरे बेटे हैं, कोई मायने नहीं रखती।

पहली बार हिंदी फिल्म में किसी अभिनेता का एकदम नया चेहरा होगा। परदे पर आपका चेहरा नहीं होगा जबकि कलाकार अपने चेहरे से पहचाना जाता है और दर्शक भी उसी चेहरे के दीवाने होते हैं!
हाँ, मैंने भी सुना है कि आज तक किसी अभिनेता ने यह काम नहीं किया है। यही कारण है कि फिल्म के प्रचार में मेरा परिचय एक नवोदित कलाकार के रूप में दिया गया है।

"पा" के निर्माण से भी आप और आपकी कंपनी जुड़ी है?
हाँ, एबी कॉर्प के बैनर तले यह फिल्म बनी है और आज के दौर में जब फिल्में 40 से 50 करोड़ की लागत से बन रही हैं, ऐसे में हमने "पा" का बजट 15 करोड़ रखा था और हमें यह बताते हुए खुशी भी हो रही है कि हमने 14 करोड़ 75 लाख में फिल्म पूरी कर ली, जबकि बजट का काफी पैसा मेकअप में खर्च हुआ। वैसे मैंने और अभिषेक, जो कि निर्माण के काम से जुड़े हुए थे, ने यह तय कर रखा था कि ओवर बजट होने पर फिल्म का निर्माण रोक देंगे।

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