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'शनि' का विशेष संयोग

अब अगले वर्ष बनेगा प्रदोष का संयोग

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शनिवार को प्रदोष काल का विशेष संयोग बन रहा है। इस विक्रम संवत 2068 में क्रोधी नाम संवत्सर के अंतर्गत केवल एक ही शनि प्रदोष है। ऐसा तिथियों का क्षय होने के कारण हुआ है।

ज्योतिषियों के अनुसार वैशाख मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली शनि प्रदोष का विशेष महत्व है, वहीं शनिवार को प्रदोष का संयोग भी वर्ष में एक ही बार आ रहा है। इसलिए व्रत, शिव अर्चना व दान आदि करने से अक्षय फल की प्राप्ति होगी।

ज्योतिषाचार्य पं. अमर डिब्बेवाला के अनुसार तिथि क्षय होने के कारण प्रदोष दिवस तथा पंचांग का प्रभाव अंतर परिलक्षित होता है। वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की प्रदोष शनिवार को है। इस दृष्टि से यह शनि प्रदोष कहलाती है।

पंचांग में तिथियों की गणना अनुक्रम में तिथि के क्षय होने के कारण इस प्रकार की स्थिति बनती है। इस बार शनि प्रदोष 2 घटी एक पल अर्थात 6 घंटे 46 मिनट उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के साथ है। तत्पश्चात चतुर्दशी तिथि का आरंभ हो जाएगा। प्रायः यह स्थिति ज्योतिषीय गणित के आधार पर बनती या बिगड़ती है।

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इसलिए विशेष महत्व-
ज्योतिषाचार्य के अनुसार वैशाख मास का महत्व तो है ही मास में आने वाली विक्रम संवत की एकमात्र शनि प्रदोष के दिन शनि का अस्त नक्षत्र में शाम 7.55 बजे प्रवेश भी हो रहा है। चूंकि शनि ग्रह का अस्त नक्षत्र में परिभ्रमण श्रेष्ठ माना जाता है।

इस दृष्टि से जिन्हें साढ़ेसाती या शनि कमजोर है, ऐसे जातकों को शनि प्रदोष का व्रत रखकर शनि की वस्तुओं का दान, शनि मूर्ति पर तिल्ली तेल का अभिषेक, भोजन दान के साथ रात्रि काल में शनि स्त्रोत, शनि वज्र पिंजर कवच का पाठ करना चाहिए। जिन्हें शनि पीड़ा अधिक है, उन्हें महाकाल शनि मृत्युंजय स्त्रोत का पाठ लाभकारी है।

ज्योतिषाचार्य पं. आनंदशंकर व्यास के मतानुसार प्रदोष काल में शिव की अर्चना का विशेष महत्व है। व्रत, कथा श्रवण से भी ग्रह दोष समाप्त होते हैं। प्रदोष काल शाम 6.50 से रात 8.2 बजे तक है।

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