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मंत्र जप के प्रकार

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जप तीन तरह का होता है, वाचिक, उपांशु और मानसिक।

जिस मंत्र का जप करते समय दूसरा सुन ले उसको वाचिक जप कहते हैं।
जो मंत्र हृदय में जपा जाता है, उसे उपांशु जप कहते हैं।
जिसका मौन रहकर जप करें, उसे मानसिक जप कहते हैं।

जप माल
वशीकरण में मूँगा, बेज, हीरा, प्रबल, मणिरत्न, आकर्षण में हाथी दाँत की माला बना लें, मारण में मनुष्य की गधे के दाँत की माला होनी चाहिए। शंख या मणि की माला धर्म कार्य में काम लें, कमल गट्टा की माला से सर्व कामना व अर्थ सिद्धि हो उससे जाप करें, रुद्राक्ष की माला से किए हुए मंत्र का जाप संपूर्ण फल देने वाला है। मोती मूँगा की माला से सरस्वती के अर्थ जाप करें। कुछ कर्मों में सर्प की हड्डियों का भी प्रयोग होता है।

माला गूँथने का तरीक
शांति, पुष्टि कर्म में पद्म सूत के डोरे से माला को गूँथें, आकर्षण उच्चाटन में घोड़े की पूँछ से गूँथें, मारण में मनुष्य के केश और अन्य कर्मों में कपास के सूत की गूँथी माला शुद्ध होती है। सत्ताईस दिनों की माला समस्त सिद्धियों को प्रदान करती है। अभिचार व मारण में 15 दाने की माला होनी चाहिए और तांत्रिक पण्डितों ने कहा है कि 108 दाने की माला तो सब कार्यों में शुभ है।

आसन का प्रका
वशीकरण में मेंढ़े के चर्म का आसन होना चाहिए। आकर्षण में मृग, उच्चाटन में ऊँट, मारण में ऊनी कम्बल और अन्य कर्म में कुशा का आसन श्रेष्ठ है। पूर्व को मुख, पश्चिम को पीठ, ईशान को दक्षिण हस्त आग्नेय को बायाँ हाथ, वायव्य को दाहिना पग, नैऋत्य को वाम पग करके आसन पर बैठना चाहिए।

हवन सामग्री का प्रकार
शान्ति कर्म में तिल, शुद्ध धृत और समिधा आम, पुष्टि कर्म में शुद्ध घी, बेलपत्र, धूप, समिधा ढाक लक्ष्मी प्राप्ति के लिए धूप, खीर मेवा इत्यादि का हवन करें। समिधा चन्दन व पीपल का आकर्षण व मारण में तेल और सरसों का हवन करें, वशीकरण में सरसों और राई का हवन सामान्य है। शुभ कर्म में जौ, तिल, चावल व अन्य कार्यों में देवदारू और शुद्ध घी सर्व मेवा का हवन श्रेष्ठ है। सफेद चन्दन, आम, बड़, छोंकरा पीपल की लकड़ी होनी चाहिए।

अधिष्ठात्री देवियाँ
शांति कर्म की अधिष्ठात्री देवी रति है, वशीकरण की देवी सरस्वती है, स्तम्भन की लक्ष्मी, ज्येष्ठा, उच्चाटन की दुर्गा और मारण की देवी भद्र काली है। जो कर्म करना हो, उसके आरंभ में उसकी पूजा करें।

साधना की दिशा
शान्ति कर्म ईशान दिशा में, वशीकरण उत्तर से, स्तम्भन पूर्व में, विद्वेषण नेऋत्य में करना चाहिए, इसका तात्पर्य यह है कि जो प्रयोग करना हो उसी दिशा में मुख करके बैठें।

साधना का समय
दिन के तृतीय पहर में शान्ति कर्म करें और दोपहर काल के प्रहर वशीकरण और दोपहर में उच्चाटन करें और सायंकाल में मारण करें।

साधना की ऋतु
सूर्योदय से लेकर प्रत्येक रात-दिन में दस-दस घड़ी में बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, हेमन्त, शिशिर ऋतु भोग पाया करती हैं। कोई-कोई तांत्रिक यह कहते हैं कि दोपहर से पहले-पहले बसंत, मध्य में ग्रीष्म, दोपहर पीछे वर्षा सांध्य के समय शिशिर, आधी रात पर शरद और प्रातः काल में हेमन्त ऋतु भोगता है। हेमन्त ऋतु में शान्ति कर्म, बसंत में वशीकरण, शिशिर में स्तम्भ ग्रीष्म में विद्वेषण, वर्षा में उच्चाटन और ऋतु में मारण कर्म करना उचित है।

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