Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

हनुमत कवच

जीवन को सुरक्षा प्रदान करता है हनुमत कवच

हमें फॉलो करें हनुमत कवच
FILE

 

 

प्रतिदिन सुबह-शाम हनुमत कवच जपने से मनुष्य सुखी बना रहता है। उसके सारे शत्रु दूर भाग जाते है। इस हनुमत कवच का पाठ प्रभु श्रीराम ने स्वयं रावण से युद्ध करते समय किया था। यह कवच भगवान राम द्वारा रचा और पढ़ा गया है...

 

हनुमान पूर्वत: पातु दक्षिणे पवनात्मज:।

पातु प्रतीच्यां रक्षोघ्न: पातु सागरपारग:॥1॥

 

उदीच्यामर्ध्वत: पातु केसरीप्रियनन्दन:।

अधस्ताद् विष्णुभक्तस्तु पातु मध्यं च पावनि:॥2॥

 

लङ्काविदाहक: पातु सर्वापद्भ्यो निरन्तरम्।

सुग्रीवसचिव: पातु मस्तकं वायुनन्दन:॥3॥

 

भालं पातु महावीरो भु्रवोर्मध्ये निरन्तरम्।

नेत्रे छायापहारी च पातु न: प्लवगेश्वर:॥4॥

 

कपोलौ कर्णमूले तु पातु श्रीरामकिङ्कर:।

नासाग्रमञ्जनीसूनु पातु वक्त्रं हरीश्वर:।

वाचं रुद्रप्रिय: पातु जिह्वां पिङ्गललोचन:॥5॥

 


webdunia
FILE

पातु देव: फालगुनेष्टश्चिबुकं दैत्यदर्पहा।

पातु कण्ठं च दैत्यारि: स्कन्धौ पातु सुरार्चित:॥6॥

भुजौ पातु महातेजा: करौ च चरणायुध:।

नखान्नखायुध: पातु कुक्षिं पातु कपीश्वर:॥7॥

वक्षो मुद्रापहारी च पातु पार्श्वे भुजायुध:।

लङ्काविभञ्जन: पातु पृष्ठदेशं निरन्तरम्॥8॥

नाभिं च रामदूतस्तु कटिं पात्वनिलात्मज:।

गुह्यं पातु महाप्राज्ञो लिङ्गं पातु शिवप्रिय:॥9॥

ऊरू च जानुनी पातु लङ्काप्रासादभञ्जन:।

जङ्घे पातु कपिश्रेष्ठो गुल्फौ पातु महाबल:।

अचलोद्धारक: पातु पादौ भास्करसन्निभ:॥10॥


webdunia
FILE

अङ्गानयमितसत्त्वाढय: पातु पादाङ्गुलीस्ति।

सव्रङ्गानि महाशूर: पातु रोमाणि चात्मवित्॥11॥

हनुमत्कवचं यस्तु पठेद् विद्वान् विचक्षण:।

स एव पुरुषश्रेष्ठो भुक्तिं च विन्दति॥12॥

त्रिकालमेककालं वा पठेन्मासत्रयं नर:।

सर्वानृरिपून् क्षणााित्वा स पुमान् श्रियमाप्नुयात्॥13॥

मध्यरात्रे जले स्थित्वा सप्तवारं पठेद्यदि।

क्षयाऽपस्मार-कुष्ठादितापत्रय-निवारणम्॥14॥

अश्वत्थमूलेऽर्क वारे स्थित्वा पठति य: पुमान्।

अचलां श्रियमाप्नोति संग्रामे विजयं तथा॥15॥


webdunia
FILE

बुद्धिर्बलं यशो धैर्य निर्भयत्वमरोगताम्।

सुदाढणर्यं वाक्स्फुरत्वं च हनुमत्स्मरणाद्भवेत्॥16॥

मारणं वैरिणां सद्य: शरणं सर्वसम्पदाम्।

शोकस्य हरणे दक्षं वंदे तं रणदारुणम्॥17॥

लिखित्वा पूजयेद्यस्तु सर्वत्र विजयी भवेत्।

य: करे धारयेन्नित्यं स पुमान् श्रियमाप्नुयात्॥18॥

स्थित्वा तु बन्धने यस्तु जपं कारयति द्विजै:।

तत्क्षणान्मुक्तिमाप्नोति निगडात्तु तथेव च॥19




हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi