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वसंत ऋतु में न खाएँ दही

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- डॉ. संजीव कुमार लाले

दही का भोजन के अंग एवं औषध के रूप में प्रचलन प्राचीनकाल से अनवरत चला आ रहा है। दही का शरीर को पोषण करने के साथ-साथ औषधीय प्रयोग भी है।

दही के गुणकर्मों के अनुसार आयुर्वेद में दही सेवन के तरीके एवं उसका किन व्यक्ति/ रोगी को सेवन निषेध एवं ऋतु अनुसार सेवन विधि का वर्णन विस्तृत रूप में प्राप्त होता है। परंतु वर्तमान समय में दही सेवन के तरीके, समय, प्रयोग आदि को अनदेखा किया जाता रहा। जिससे कफज रोग, जुकाम, कोलेस्ट्राल, मोटापा आदि बढ़ने में मदद मिलती है।

दही के सामान्य कर्म- शरीर के बल को बढ़ाने वाला, कृश एवं दुर्बल व्यक्तियों के लिए उत्तम, ऊष्ण वात विकार को नष्ट करने वाला एवं अनेक कर्म करने वाला होता है उपरोक्त समस्त लाभों को प्राप्त करने हेतु निर्देश दिए गए हैं।

दही का प्रयोग कोलेस्ट्राल बढ़ने पर न करें क्योंकि दही में एक आयुर्वेदोक्त विशेष गुण 'अभिष्यंद' होता है। अभिष्यंद गुण/ कर्म, शरीर के स्रोतों (चेनल्स) धमनी आदि में अवरोध उत्पन्न करता है। अतः यह कोलेस्ट्रोल को और अधिक बढ़ाता है व धमनी में अधिक रुकावट उत्पन्न करता है। अभिष्यंद गुण के कारण ही इसे अतिसार रोग होने पर प्रयोग किया जाता है जिससे अतिसार बंद हो जाता है।
  दही का भोजन के अंग एवं औषध के रूप में प्रचलन प्राचीनकाल से अनवरत चला आ रहा है। दही का शरीर को पोषण करने के साथ-साथ औषधीय प्रयोग भी है। दही के गुणकर्मों के अनुसार आयुर्वेद में दही सेवन के तरीके एवं उसका किन व्यक्ति/रोगी को सेवन निषेध है।      


सामान्य जन में दही के प्रति यह धारणा होती है कि दही शीत होती है परंतु वास्तविकता यह है कि दही 'ऊष्ण' होता है। यह धारण इसलिए व्याप्त है कि दही कफ को बढ़ाता है एवं अभिष्यंदी होने से जुकाम आदि के लक्षण शरीर में उत्पन्न हो जाते हैं। ऊष्ण होने के कारण इसे ऊष्ण ऋतुओं में सेवन नहीं करना बताया है परंतु प्रायः सर्वजन इसका प्रयोग ग्रीष्म ऋतु में करते हैं।

यदि ग्रीष्म ऋतु में प्रयोग करना भी है तो उसमें शक्कर आदि पदार्थ या आयुर्वेद में बताए पदार्थों को डालकर सेवन करना चाहिए या संस्कार करके प्रयोग करना चाहिए। संस्कार करने से दही या औषध आदि के गुण परिवर्तित हो जाते हैं। 'लस्सी' इसका श्रेष्ठ उदाहरण है एवं ग्रीष्म ऋतु में सेवन योग्य है। दही का प्रयोग हेमंत, शिशिर एवं वर्षा ऋतु में करना चाहिए।

आगामी बसंत ऋतु में दही का सेवन न करें क्योंकि बसंत ऋतु में कफ का स्वाभाविक प्रकोप होता है एवं दही कफ को बढ़ाता है। अतः कफ रोग से व्यक्ति ग्रसित हो जाते हैं।

दही में अधिक कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन होता है एवं गुण-कर्मों के आधार पर यह अमृत तुल्य है परंतु अमृत का भी युक्ति से प्रयोग न करने पर वह विषतुल्य मारक हो जाता है एवं युक्तिपूर्वक विष का प्रयोग भी अमृत तुल्य गुणकारी होता है अतः दही का प्रयोग उसके बताए गए प्रयोग निर्देशों के आधार पर करें।

निम्न परिस्थितियों में दही का सेवन कदापि न करें।
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ए. रोगानुसार
* पित्त विकार एवं कफ विकार
* रक्त विकार
* शोथ (सूजन)
* मेदोरोग (मोटापा)
* कोलेस्ट्रोल वृद्धि होने पर
  दही में अधिक कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन होता है एवं गुण-कर्मों के आधार पर यह अमृत तुल्य है परंतु अमृत का भी युक्ति से प्रयोग न करने पर वह विषतुल्य मारक हो जाता है एवं युक्तिपूर्वक विष का प्रयोग भी अमृत तुल्य गुणकारी होता है      


बी. ऋतु / समयानुसार

* रात्रि (रात) में
* बसंत एवं शरद ऋतु में
* ग्रीष्म ऋतु में

सी. व्यवहार/ प्रयोगानुसार

* दही में नमक डालकर सेवन न करें।
* दही को गर्म करके सेवन न करें।

दही का सेवन निम्न औषध के साथ मिलाकर करें।

* मूँग का सूप
* आँवले का रस
* शर्करा (शक्कर)
*गुड़ या मधु शहद
* घृत (घी) या राई
* कालीमिर्च
* त्रिकटु (सोंठ + कालीमिर्च + पिप्पली)

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