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ग्रामीणों से चल रहा है बीपीओ

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जुबैर अहमद, बीबीसी संवाददाता, मुंबई , रविवार, 26 जुलाई 2009 (22:08 IST)
बैंगलुरु से सौ किलोमीटर दूर बागेपल्ली गाँव भारत के किसी भी गाँव से अलग नहीं है। हरे-भरे खेत, लहलहाती फसलें और टूटी-फूटी तंग सड़कें, लेकिन बागेपल्ली उन कुछ गिने चुने गाँव में से एक है, जहाँ बीपीओ यानी 'बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग' का एक केंद्र है।

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BBC
बागेपल्ली भारत के बीपीओ उद्योग की एक नई पेशकश है। इस बीपीओ केंद्र को चलाती है 'रूरल सोर्स' नाम की कंपनी। इसके सीईओ मुरली वेलांगती कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों में बीपीओ उम्मीद से ज्यादा सफल अनुभव है।

बागेपल्ली के इस ग्रामीण बीपीओ की स्थापना एक साल पहले हुई थी और यह कहना गलत न होगा कि भारत में ग्रामीण बीपीओ का इतिहास भी इतना ही पुराना है।

इस कंपनी की इमारत के अन्दर 40-50 नौजवान लड़के और लड़कियाँ काम करते हैं। वेलांगती बताते है कि ये लोग तीन भारतीय बीमा कंपनियों के दस्तावेजों को प्रोसेस कर रहे हैं।

इस बीपीओ के कर्मचारियों के बारे में वे कहते हैं ये लोग बागेपल्ली के आसपास के गाँवों से हैं। इनमें से अधिकतर अपने घरों के अकेले कमाने वाले हैं।

इन लड़के और लड़कियों के टीम लीडर हैं अरुण शेनॉय। जब उनसे पूछा कि यहाँ के लड़के और लड़कियाँ शहरों के बीपीओ केन्द्रों के लड़के-लड़कियों से कितने अलग हैं तो शेनॉय ने कहा सच यह है कि ये लोग शहर के लोगों से बहुत बेहतर हैं। अंतर सिर्फ़ इतना है कि ये लोग सीखने में शहर वालों से थोड़ा समय ज्यादा लेते हैं।

उनका कहना है ये लोग बहुत प्रतिभावान हैं, लेकिन प्रतिभा को निखरने में थोड़ा समय लग जाता है और यही कारण है कि शुरुआत में उनका आत्मविश्वास कम होता है।

दरअसल, गाँव के इन नौजवानों पर दबाव ज्यादा होता है। उन्हें पता है कि गाँव में ज्यादा नौकरियाँ नहीं होतीं, इसलिए इन्हें ज्यादा मेहनत करना पड़ती है।

यही कारण है कि इनमें से कई अपने पुश्तैनी व्यवसाय में भी जुटे रहते हैं। नागराज उनमें से एक हैं। वे सुबह दूध बेचने का धंधा करते हैं और दिनभर इस बीपीओ में काम करते हैं।

बागेपल्ली भारत के बीपीओ उद्योग की एक नई पेशकश है। इस बीपीओ केंद्र को चलाती है 'रूरल सोर्स' नाम की कंपनी। इसके सीईओ मुरली वेलांगती कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों में बीपीओ उम्मीद से ज्यादा सफल अनुभव है।
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गाँव की ओर : ग्रामीण बीपीओ की सफलता को देखते हुए गाँवों के जो नौजवान शहरों के बीपीओ में काम करते थे, वे अब गाँव के बीपीओ में नौकरियाँ करने आ रहे हैं।

सुरेशसिंह पहले बंगलुरु शहर के एक बीपीओ में काम करते थे, लेकिन अपने गाँव बागेपल्ली में बीपीओ खुलने के बाद वे अब इस केंद्र में नौकरी करते हैं और काफी खुश हैं।

उन्हें शहर की जिंदगी रास नहीं आई। वे कहते हैं शहर में बहुत भीड़भाड़ है। ट्रैफिक के कारण जिंदगी कठिन थी, इसलिए मैं यहाँ वापस आ गया हूँ और मुझे यहाँ अच्छा लग रहा है।

...लेकिन ग्रामीण बीपीओ में अब तक कॉल सेंटर नहीं खुले हैं। यानी फोन पर अंग्रेजी में सवालों के जवाब देने की सुविधाओं को इन ग्रामीण बीपीओ केन्द्रों में अब तक नहीं शुरू किया गया है।

ग्रामीण बीपीओ में अंग्रेजी बोलने वाले लड़के-लड़कियों की बहुत कमी है। ग्रामीण बीपीओ में इन दिनों केवल ई-मेल के जरिये पूछे गए सवालों के जवाब देने और दस्तावेजों के प्रोसेस करने की सुविधाएँ हैं।

फायदा : लेकिन ग्रामीण बीपीओ से उद्योग को क्या लाभ होगा? वेलागंती कहते हैं शहरों में बीपीओ केंद्र चलाना महँगा साबित हो रहा है।

भारत के बीपीओ उद्योग को चीन और फिलिपीन्स से भारी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए भारत को एक नया रास्ता निकलना था और खर्च को कम रखना था। ग्रामीण बीपीओ का जन्म इसी सोच का नतीजा है।

वेलांगती की कंपनी में देश के एक बड़े बैंक एचडीएफसी ने 26 प्रतिशत की भागीदारी ले ली है। अब यह कंपनी देश में पाँच सौ ग्रामीण बीपीओ खोलने का इरादा रखती है। यह काम अगले पाँच सालों में पूरा हो सकेगा।

वेलागंती की कंपनी के अलावा फिलहाल चार-पाँच और भी छोटी कंपनियाँ हैं, जो ग्रामीण इलाकों में बीपीओ केंद्र खोल रही हैं। वेलागंती कहते हैं ग्रामीण इलाकों में 75 लाख गैजुएट लोग हैं। ग्रामीण बीपीओ इनमें से 10 लाख को नौकरी दे सकते हैं।

लगता है कि ग्रामीण बीपीओ का व्यावसायिक ढाँचा 12 अरब डॉलर वाले बीपीओ उद्योग को अब भी अपने निकटम प्रतिद्वंद्वियों से काफी आगे रखने की क्षमता रखता है और इस तरह की नई सोच ही भारत के बीपीओ उद्योग की कामयाबी का कारण हैं।

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