Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

ग्लोबलाइजेशन के दौर में 'गीता प्रेस'

हमें फॉलो करें ग्लोबलाइजेशन के दौर में 'गीता प्रेस'
, रविवार, 10 जून 2007 (01:01 IST)
पूर्वी उत्तरप्रदेश का
BBC
गोरखपुर शहर गोरखनाथ मंदिर और ठेके-माफिया की राजनीति के अलावा भी एक वजह से बहुत प्रसिद्घ है। वो है यहाँ का मशहूर प्रकाशन संस्थान गीता प्रेस। गोरखपुर के गीता प्रेस के बारे में कम-से-कम उत्तर भारत में तो हर आदमी कुछ न कुछ जरूर जानता होगा।


धर्म-कर्म और दर्शन में रुचि रखने वाले हर व्यक्ति के यहाँ मिलने वाली श्रीमद् भगवतगीता और रामचरितमानस पर गीता प्रेस प्रकाशन की मुहर मिल ही जाएगी।

गीता प्रेस की स्थापना 1923 में हुई थी और इसके संस्थापक जयदयाल गोयनका का एक ही उद्देश्य था भगवद् गीता का प्रचार।

लेकिन आज गीता प्रेस की रामचरितमानस सबसे अधिक बिकती है। यहाँ के कुल प्रकाशन का 35-40 प्रतिशत हिस्सा रामचरितमानस का है। रामचरितमानस को नौ भाषाओं में प्रकाशित किया जाता है।

गीता प्रेस से छपने वाली किताबों के दाम इतने सस्ते होते हैं कि कोई भी सोचने पर मजबूर हो जाए कि इतनी मोटी, जिल्द चढ़ी किताब इतने सस्ते में कैसे बिक सकती है।

गीता प्रेस के प्रोडक्शन मैनेजर लालमणि तिवारी कहते हैं कि गीता प्रेस की स्थापना किसी व्यावसायिक उद्देश्य से नहीं हुई थी। गीता प्रेस की स्थापना का मुख्य उद्देश्य सस्ती, सचित्र, शुद्घ, सजल्दि और सुंदर पुस्तकें छापने के लिए किया गया था।

उन्होंने बताया कि हमने कुछ ऐसे संसाधन बना रखे हैं, जहाँ से होने वाले फायदे से हम गीता प्रेस में प्रकाशन का काम करते हैं। ऋषिकेश में आयुर्वेदिक औषधालय है। कानपुर और गोरखपुर में कपड़ों का काम होता है।

धरोहर : गीता प्रेस में आज आधुनिकतम मशीनों पर लगभग 200 लोग काम करते हैं। अभी तक इस वित्त वर्ष में 3700 टन कागज की छपाई की जा चुकी है और कम दाम के बावजूद 24 करोड़ रुपए की बिक्री की जा चुकी है।

गीता प्रेस की एक बड़ी धरोहर है भगवान राम और कृष्ण के जीवन से जुड़े चित्र। इन चित्रों की अमूल्य धरोहर को सहेज कर रखने की कोशिश की जा रही है।

लालमणि तिवारी का कहना है कि प्रेस की तरफ से इन धरोहरों को सहेज कर रखने के लिए चित्रों के डिजिटल बैकअप तैयार किए जा रहे हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi