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सुंदरवन के मुहाने पर...

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सुशील कुमार झा, बीबीसी संवाददाता, सुंदरवन से , बुधवार, 7 नवंबर 2007 (19:01 IST)
BBCBBC
गलाचीपा से रात में चले तो हम नदी में थे, लेकिन अगले दिन की सुबह उठे तो पता चला कि हम समुद्र में आ चुके हैं। पूछने पर बताया गया कि हम बंगाल की खाड़ी में है।

यहाँ से सुंदरवन का इलाका शुरू हो जाता है। नाम पंजीकृत कराने के लिए हम सुपति बन कार्यालय में रुके जहाँ बहुत जंगलों में जाने की अनुमति नहीं थी।

आसपास घना जंगल था और उनमें से एक पेड़ पर सैकड़ों चमगादड़ लटके हुए थे। उनका पीला-पीला पेट साफ दिख रहा था एक साथ इतने उलटे लटके हुए चमगादड़ दिन में मैंने कभी नहीं देखे थे।

एक नदी के कितने नाम : मैं चमगादड़ देख ही रहा था कि पैरों के पास से साँप गुजरा। मैंने ध्यान ही नहीं दिया, लेकिन मेरे साथ खड़े वन अधिकारी ने कहा कि पीछे हो जाइए, आप बाल-बाल बचे हैं। ये तो शुरुआत थी सुंदरवन की। आगे पता नहीं क्या-क्या देखने को मिलेगा।

न जाने कितने कीड़े : जब नौका आगे की ओर चली तो पानी के किनारे हिरण और मगरमच्छ भी दिखे। बताया गया कि ये मगरमच्छ धूप सेंक रहे हैं।

नष्ट होती नस्लें : कटका अभ्यारण्य सुंदरवन के उन इलाकों में से है जहाँ का रास्ता छोटी-छोटी नहरों से होकर गुज़रता है। यहाँ बड़ी तादाद में मिलते हैं सुंदरी पेड़ जिनके नाम पर ही इन वनों का नाम सुंदरवन पड़ा है। इसके अलावा यहाँ पर देवा, केवड़ा, तर्मजा, आमलोपी और गोरान ऐसी नस्लें हैं, जो सुंदरवन में पाई जाती हैं।

यहाँ के वनों की एक खास बात यह है कि यहाँ वही पेड़ पनपते या बच सकते हैं, जो मीठे और खारे पानी के मिश्रण में रह सकते हों। पर जलवायु परिवर्तन के कारण मीठे और खारे पानी का मिश्रण गड़बड़ा रहा है और पेड़ मर रहे हैं। 90 के दशक में चक्रवात से रेत आने के कारण भी कई पेड़ नष्ट हो गए।

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