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कैदियों के बच्चों को नई जिंदगी देती एक 'यशोदा'

- मैथ्यू बेनेस्टर

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, शनिवार, 6 अप्रैल 2013 (13:44 IST)
BBC
कुछ लोग उन्हें नेपाल की यशोदा कहते हैं। बस फर्क इतना है कि पुष्पा बासनेट जेल में पैदा हुए सिर्फ एक कृष्ण की नहीं 46 बच्चों की देखरेख व पालन पोषण करने वाली मां हैं। पुष्पा काठमांडो में रहती हैं और उनके ‘परिवार’ में छह महीने से 18 साल की उम्र के 46 बच्चे रहते हैं।

इन सभी बच्चों में एक बात समान है कि सबकी मां जेल में हैं। पुष्पा कहती हैं कि इनमें से एक बच्चा तो ऐसा भी है जिसके पिता भी जेल में ही हैं।

यह बच्चे इस घर मं सिर्फ काठमांडू जेल से ही नहीं आए। नेपाल के दूर-दराज के इलाकों से भी अपनी मां के साथ जेल में बंद बच्चों को पुष्पा ने सहारा दिया है। पुष्पा के घर में इन बच्चों को पढ़ने का कमरा, लाइब्रेरी जैसी सुविधाएं हासिल हैं जिनके बारे में जेल में रहते उन्हें शायद पता भी नहीं था।

शुरुआत कैसे हुई? : पुष्पा बताती हैं कि वो काठमांडू के सैंट जेवियर्स कॉलेज से सामाजिक कार्य में स्नातक की पढ़ाई कर रही थीं। इसी दौरान उन्हें एक जेल को अंदर से देखने का मौका मिला।

उनके अनुसार, 'वहां मैंने छोटे-छोटे बच्चों को देखा। मैंने सोचा कि मैं कितनी खुशकिस्मत हूं कि ऐसे घर में पली जहां सारी सुविधाएं मिली और दूसरी तरफ़ ये बच्चे हैं जो सिर्फ इसलिए जेल में हैं क्योंकि इनकी मां कैद में है। मैंने सोचा कि मैं इन बच्चों की ज़िंदगी बेहतर बनाने के लिए जरूर कुछ करूंगी।'

इसके बाद पुष्पा ने इन बच्चों की मदद के लिए एक संस्था बनाई। वह कहती हैं, 'लेकिन असली चुनौती इन बच्चों को जेल से बाहर लाना था, क्योंकि यह जेल के अंदर ही पैदा हुए थे और उन्होंने कभी बाहर की दुनिया नहीं देखी थी।'

मां कैसे मानीं? : बच्चों की मदद के लिए संस्था तो बन गई, लेकिन मां को यह विश्वास दिला पाना कि वे बच्चों को बाहर भेज दें काफी मुश्किल रहा।

पुष्पा कहती हैं, 'मैं जेल में जाकर बच्चों की मां के सामने यह प्रस्ताव रखती थी कि मैं उनके बच्चों की देखभाल करूंगी। लेकिन वह मुझ पर विश्वास नहीं कर पा रही थीं क्योंकि मैं उनके लिए अनजान थी।'

ऐसे में जेलर ने पुष्पा की मदद की। उन्होंने कैदी मांओं को समझाया और पुष्पा ने एक डे-केयर शुरू किया। सुबह बच्चे जेल से बाहर आ जाते, दिन भर पढ़ते-खेलते और फिर रात को वापस जेल में अपनी मांओं के पास चले जाते।

बच्चे तो इससे खुश थे ही, यहां तक कि उनके मां-बाप भी धीरे-धीरे मानने लगे कि यह उनके बच्चों के भविष्य के लिए अच्छा है।

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BBC
ममता की चुनौती : आज भी जब कोई बच्चा पहली बार ‘पुष्पा के घर’ आता है तो शुरुआत में थोड़ी दिक्कत होती है। वह बताती हैं, 'हाल ही में एक बच्चा सोलोखुंबू से हमारे यहां आया। यहां आकर उसने बहुत से बच्चों को देखा तो रोने लगा और कहने लगा कि मुझे जेल वापस जाने दो और अपनी मां के साथ रहने दो।'

एक हफ्ते बाद बच्चा माहौल में घुल-मिल गया। फिर जब उसकी मां का फोन आया तो उसने कहा कि वह जेल वापस नहीं जाना चाहता, वह यहीं रहना चाहता है। जब बच्चों की मां जेल से छूट जाती हैं तो वो अपने परिवार के पास चले जाते हैं।

पुष्पा कहती हैं, 'शुरू-शुरू में जब कोई बच्चा जाता था तो मैं हर बार रोया करती थी। अब भी मैं उन्हें विदा करने के लिए नहीं आती।' हालांकि वह मानती हैं कि सबसे पहला प्यार और अधिकार मां-बाप का ही होता है।

जब वो जेल से बाहर आते हैं तो दोनों एक-दूसरे को देखकर बहुत खुश होते हैं और यह देखकर अच्छा लगता है। लेकिन एक चिंता पुष्पा को हमेशा रहती है और वह है इन बच्चों की पढ़ाई की। वह चाहतीं हैं कि उनके घर से जाने वाले बच्चे हमेशा अच्छी तालीम हासिल करें और अभी इसके लिए वो सिर्फ दुआ कर सकती हैं।

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