Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

दाइयों की कमी ले रही है शिशुओं की जान

हमें फॉलो करें दाइयों की कमी ले रही है शिशुओं की जान
, शनिवार, 2 अप्रैल 2011 (17:46 IST)
BBC
दुनिया भर में करीब चार लाख 80 हजार महिलाएँ बिना विशेषज्ञों की मदद के बच्चे को जन्म देती हैं। ब्रिटेन की एक चैरिटी संस्था 'सेव द चिल्ड्रेन' के आकलन के अनुसार हर तीन में से एक महिला बिना किसी विशेषज्ञ की मदद के प्रसवपीड़ा से गुजरती है।

संस्था का कहना है कि दुनियाभर में बच्चे पैदा करवाने वाली महिला या दाइयों की संख्या में 350,000 की कमी है और अगर ये कमी पूरी कर ली जाती है तो एक साल में एक लाख बच्चों की जान बचाई जा सकती है।

संस्था का कहना है कि हर दिन 1000 महिलाएँ और 2000 बच्चों की मौत प्रसव के दौरान आने वाली दिक्कतों की वजह से हो जाती है हालांकि इन पर आसानी से काबू पाया जा सकता है।

दाइयों की संख्या में कमी : संस्था ने दुनियाभर के नेताओं से आग्रह किया है कि वे दाइयों और स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाएँ। 'सेव द चिल्ड्रेन' ने दाइयों की संख्या बढा़ने को लेकर अभियान भी शुरू किया है।

उनका कहना है कि ग़रीब देशों में बच्चों की मौत मलेरिया की बजाए पैदाइश के वक्त ऑक्सीजन की कमी के कारण ज्यादा होती है। संस्था का कहना है कि गरीब देशों में प्रसव के दौरान प्रशिक्षित सहायक मिलने की संभावना कम होती है जिसकी वजह से प्रसव के वक्त ही बच्चे की मौत हो जाती है।

अफगानिस्तान में बीबीसी के संवाददाता पॉल वुड के अनुसार काबुल में रह रही 35 साल की रोगुल को समय से पहले आठ बच्चे हुए और सभी बच्चों की मौत हो गई।

रोगुल के पास प्रसव के दौरान मदद करने के लिए एक निरक्षर महिला थी जिसने उससे कहा था कि उसका खून तभी रुकेगा जब वे सात धातुओं से बनी एक चैन पानी के ग्लास में हिलाएँगी। रोगुल का नवाँ बच्चा समय से हुआ, लेकिन वो भी काल का ग्रास बन गया।

उनका कहना था कि जन्म के बाद उनके बच्चे के हाथ-पाँव हरे रंग के हो गए और उसकी मौत हो गई। रोगुल को टेटनस का एक भी टीका नहीं दिया गया था।

प्रशिक्षण की कमी : अपने नौ बच्चे गँवा चुकी रोगुल ने अब दाई का काम सीख लिया है और अब वह तीन गाँवों में गर्भवती महिलाओं को साफ सफाई, संतुलित आहार, बच्चे के जन्म के तुरंत बाद माँ के दूध और अन्य ज़रुरी जानकारियाँ देती है।

रोगुल का कहना है वह इन जानकारियों और मदद से कई जान बचा पाई है और अब वह भी तीन बेटियों और एक बेटे की माँ है। इथियोपिया में 94 फीसदी महिलाएँ बिना किसी प्रशिक्षित सहायता के बच्चों को जन्म देती है तो वहीं ब्रिटेन में ये आँकड़ा एक फीसदी है।

अफगानिस्तान में सबसे ज्यादा शिशु मृत्युदर के मामले सामने आते हैं। वहाँ हर 1000 नवजात शिशुओं में से 52 बच्चों की मौत हो जाती है। रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान में हर 11 महिला में से एक महिला को प्रसव के दौरान आ रही दिक्कतों की वजह से मौत का खतरा रहता है। पाँच में से एक बच्चे की पाँच साल की उम्र होने से पहले ही मौत हो जाती है।

'सेव द चिल्ड्रेन 'के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जस्टिन फोरसिथ का कहना है कि किसी भी माँ को बिना किसी मदद के प्रसव से नहीं गुजरना चाहिए। उनका कहना है, 'उन्हें यह भी नहीं पता होता कि बच्चे को पैदा होने के बाद कैसे उसे साफ कपड़े से पोछा जाए और साँस लेने में मदद करने के लिए किस तरह से उसकी पीठ को रगड़ा जाए। कोई बच्चा मरने के लिए पैदा नहीं होता।'

फोरसिथ ने दुनियाभर के नेताओं से अपनी योजनाओं में स्वास्थ्यकर्मियों को शामिल करने की अपील की है। उनका कहना है कि दुनियाभर के नेताओं ने पिछले साल ही ऐसा करने की शपथ ली थी। लेकिन अब उन्हें इसे समर्थन देने के लिए दान देना होगा और राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखानी होगी।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi