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'फिल्में न बनाता तो बास्केटबॉल खेलता'

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'जब वी मैट' की जोरदार सफलता के बाद निर्देशक इम्तियाज अली लेकर आ रहे हैं एक और रोमांटिक फिल्म 'लव आज कल'। इस फिल्म से अभिनेता सैफ अली खान बतौर निर्माता फिल्मी दुनिया में कदम रख रहे हैं।

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सैफ अली खान के साथ दिखाई देंगी बॉलीवुड में कम समय में ही अपने लिए खास जगह बनाने वाली अभिनेत्री दीपिका पादुकोण। फिल्म की खास बात ये भी है कि असल जिंदगी की जोड़ी- ऋषि कपूर और नीतू सिंह एक लंबे समय के बाद बड़े परदे पर एक साथ नजर आएँगे। निर्देशक इम्तियाज अली ने मुंबई में मधु से बीबीसी एफएम के लिए बातचीत की और अपने अब तक के सफर के बारे में कुछ यादें बाँटीं।

* इम्तियाज आप जब दिल्ली में थे तो निर्देशन के साथ-साथ आप अभिनय भी करते थे, तो अब सिर्फ निर्देशन ही क्यूँ?
- मेरे अन्दर जो अभिनय का कीड़ा था वो निकल चुका है, क्यूँकि अभिनय तो मैं बचपन से ही करता था, स्कूल में जो नाटक हुआ करते थे मैं हमेशा उनका हिस्सा था। मैंने जब हिंदू कॉलेज में दाखिला लिया तो उससे पहले ही मैंने कई नाटकों का निर्देशन करने के साथ साथ उनमें अभिनय कर चुका था।

लेकिन शुरू से ही मेरा रुझान अभिनय से ज्यादा निर्देशन की ओर रहा है और कॉलेज में दाखिला लेने के बाद अभिनय कम हो गया और निर्देशन की तरफ मैं कदम बढ़ाता चला गया और मुंबई आने पर मैंने निश्चय कर लिया कि मैं अभिनय नहीं बल्कि निर्देशन ही करना चाहता हूँ।

* तो मुंबई में काम कैसे मिला?
- मैं जब मुंबई आया तो मुझे पता था कि फिल्म इंडस्ट्री में काम मिलना बहुत मुश्किल होगा। तो मैंने 'एडवरटाइजिंग' में डिप्लोमा किया, लेकिन मेरा असल संघर्ष उसके बाद ही शुरू हुआ। मुझे लगभग दो साल लग गए नौकरी ढूँढने में और फिर मुझे एक टीवी चैनल में 1500 रुपए की नौकरी मिली।

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फिर कुछ नौकरियाँ बदलने के बाद मुझे मौका मिला एक टीवी सीरियल पुरुष क्षेत्र के निर्देशन का। जब से मैंने टेलिविजन के लिए लिखना शुरू किया तभी से ही से मैं फिल्मों के लिए बहुत सी कहानियाँ लिखा करता था। इस सिलसिले में कई लोगों से मिलता था और अपनी कहानियाँ सुनाता था लेकिन कई कोशिशों के बावजूद कोई फिल्म नहीं बन पाई। फिर इस तरह कोशिश करते-करते कुछ साल बाद मुझे मेरी पहली 'फिल्म सोचा न था' बनाने का मौका मिला।

* आपकी फिल्मों में कोई न कोई किस्सा रेलगाड़ी के इर्द-गिर्द जरूर होता है, इसकी कोई खास वजह?
- बचपन से लेकर आज तक मैंने बहुत रेल यात्राएँ की है और मुझे इसमें बेहद मजा भी आता है। मेरा मानना है कि अगर आप इस देश के बारे में जानना चाहते हैं तो इससे बढ़िया तरीका और कोई नहीं है क्योंकि आप अलग-अलग तरह के लोगों से मिलते हैं और ऐसे क्षणभंगुर रिश्ते बनते हैं जो इंसान को बहुत कुछ सिखाते हैं।

मेरी इन यात्राओं के दौरान ऐसे बहुत से मजेदार किस्से रहे हैं और इसलिए चाहते या न चाहते हुए भी मेरी फिल्मों में रेल का कोई न कोई जिक्र जरूर हो जाता है।

* इम्तियाज अगर आप फिल्मी दुनिया का हिस्सा न होते तो क्या कर रहे होते?
- मैं शायद बॉस्केटबॉल खेलता क्योंकि जब मैं जमशेदपुर में रहता था तो ये खेल बहुत दिल से खेलता था।

* इम्तियाज आप अपने खाली वक्त में क्या करना पसंद करतें हैं?
- वैसे मुझे घूमने का बेहद शौक है। अलग-अलग जगह देखना, उस जगह की सभ्यता, संस्कृति और संगीत को करीब से जाने की कोशिश करना, साथ ही विभिन्न प्रकार के व्यंजनों को खाना मुझे अच्छा लगता है। घूमने-फिरने के अलवा में अलग-अलग तरह की चाय पीना भी बेहद पसंद करता हूँ।

* इम्तियाज अपने कॉलेज के दिनों के बारे में भी कुछ बताइए?
- में हिंदू कॉलेज में था और कॉलेज के होस्टल के कमरा नंबर 91 के बारे में मैंने कई अजीब बातें सुनी थी, जैसे की जो भी छात्र इस कमरे में रहता है वो परीक्षा में असफल हो जाता है या फिर उसके साथ जरूर कुछ न कुछ बुरा होता है इसलिए इस कमरे में कोई रहना नहीं चाहता।

मैंने और मेरे दो दोस्तों ने ये कमरा ले लिया। और दिलचस्प बात ये कि मैं कॉलेज में अव्वल आया और मेरा दोस्त तो पूरे विश्वविद्यालय में अव्वल रहा। और सिर्फ पढ़ाई ही क्यूँ मैंने तो थियेटर में में खूब नाम कमाया। मजे की बात ये कि उसके बाद से कमरा नंबर 91 की माँग सबसे ज्यादा हो गई। उस कमरे पर जो कलंक लगा था हम दोस्तों ने मिलकर वो धो डाला।

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