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मोदी की 'सरकार' और 'हिंदू राष्ट्र' का सपना

- प्रोफेसर ज्योतिर्मय शर्मा (राजनीति विज्ञान, हैदराबाद विश्वविद्यालय)

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भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का नाता पार्टी के अस्तित्व से भी पुराना है। क्योंकि भारतीय जनता पार्टी जिस जनसंघ से बनी है, उसका सीधा जुड़ाव आरएसएस से रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संस्थापक सदस्यों में शामिल माधव सदाशिव गोलवलकर ने अपने जमाने में जनसंघ को आरएसएस का पूर्वपक्ष कहा था।

जनसंघ को उन्होंने आरएसएस के लिए नियुक्ति केंद्र बताया था जिसके मुताबिक अगर कोई जनसंघ में काम करता, तो अंत में वह संघ के लिए और संघ के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए काम कर रहा होता।

उस जमाने में संघ के उद्देश्य राजनीतिक नहीं होते थे। तब वे सामाजिक और सांस्कृतिक थे। जिसके अंदर हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना भी थी। गोलवलकर ने राजनीति को अस्पृश्य माना था। उन्होंने तब कहा था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राजनीति सबसे निम्न माध्यम है।

सोच में बदलाव का इतिहास : एमएस गोलवलकर का मॉडल राजनीति को तिरस्कृत करने का मॉडल था। लेकिन अब उसमें बदलाव आ गया है। हालांकि ये भी सच है कि संघ की सोच में बदलाव का इतिहास भी बेहद पुराना है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जो इतिहास है, उसके मुताबिक संघ और हिंदू महासभा में दरार इसलिए आई थी क्योंकि वीर सावरकर की सोच अलग थी। वे 1929 तक ज्यादा प्रभावी हो गए थे।

इसके बाद 1938-1939 तक वे उसके अध्यक्ष भी बने। उनका मानना था कि बिना राजनीति को महत्व दिए हिंदू राष्ट्र संभव नहीं है। राजनीति को निम्न मानना गलत है। इसी बात पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू महासभा के बीच दरार पड़ी।

संघ के मौजूदा सर संघचालक मोहन भागवत का मॉडल, हिंदू महासभा और वीर सावरकर के हिंदुत्व के मॉडल पर आधारित है, उसको अपनाता है। जबकि गोलवलकर का मॉडल उसको खारिज करता है।

गोलवलकर का मॉडल संन्यास का मार्ग था, उससे उलट मोहन भागवत का मानना है कि हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना तब तक साकार नहीं हो सकती जब तक राजनीति और राजनीतिक नेता उसकी अगुआई नहीं करते। इससे साफ है कि संघ और भारतीय जनता पार्टी में जो फर्क था वो अब मिट चुका है।

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संघ और पार्टी का भेद? : मीडिया में ये चर्चा जरूर चलती रहती है कि आरएसएस का बीजेपी पर कितना प्रभाव है? अगर बीजेपी की सरकार बनती है तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की उसमें क्या भूमिका रहेगी? लेकिन इसका हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है। इसे समझने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार के कार्यकाल को देखना होगा।

अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार छह साल तक चली थी। तब वाजपेयी और आडवाणी ने सोच-समझकर एक रणनीति के अनुसार संघ को सरकार से दूर रखा। इसे अलग-अलग जामा पहनाने की कोशिश भी खूब हुई जिसमें गठबंधन की मजबूरी का सबसे ज्यादा हवाला दिया गया।

लेकिन वाजपेयी और आडवाणी का मानना था कि संघ को अपना काम करना चाहिए और सरकार और पार्टी को अपना काम करना चाहिए। इस दौरान बहुत सारी चीजें ऐसी हुईं जिनका कोई प्रमाण देना संभव नहीं है, लेकिन इसकी तस्दीक अलग तरीके से हो सकती है।

मसलन, संघ मुख्यालय, नागपुर में आरएसएस के बहुत सारे सूत्र बताएंगे कि वाजपेयी-आडवाणी ने रज्जू भैया को सर संघचालक की गद्दी से नहीं उतरने के लिए मनाया क्योंकि रज्जू भैया के बाद संघ कि जिम्मेदारी केएस सुदर्शन को मिलनी थी, जो कट्टरवादी थे।

मोदी की रणनीति अगले पन्ने पर...


मोदी की रणनीति : वाजपेयी और आडवाणी ने संघ को राजनीति से दूर रखने के लिए काफी मजबूत रणनीति अपनाई थी। अब वो रणनीति नहीं है, अब संघ और पार्टी एक हैं। ऐसे में यह कहना कि बीजेपी की सरकार पर संघ का क्या प्रभाव होगा, एक तरह से बेमानी ही है। अब संघ और पार्टी दोनों एक ही हो चुके हैं, अलग-अलग रुपों में ही सही।
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इससे राजनीति निश्चित तौर पर प्रभावित होगी। आरएसएस का गोलवलकर वाला मॉडल हो या सावरकर वाला मॉडल, दोनों ही गैर लोकतांत्रिक हैं। जनतंत्र में दोनों की आस्था नहीं है। उनकी आस्था इसलिए नहीं है क्योंकि वे लोकतंत्र के दोनों मॉडल, चाहे वो रिपब्लिकन मॉडल हो या फिर डेमोक्रेटिक मॉडल दोनों को विदेशी मानते हैं और उसे अपनी संस्कृति का हिस्सा नहीं मानते।

एक सवाल यह जरूर उठता है कि क्या मोदी भी वाजपेयी और आडवाणी की तरह सरकार से संघ को दूर रखने का कोई उपाय तलाशेंगे। यह भविष्य तय करेगा। मेरे ख्याल से राजनीतिक विश्लेषक को ज्योतिषी का काम नहीं करना चाहिए। दुर्भाग्य यह है कि हमारे राजनीति विश्लेषक कभी-कभी ज्योतिषी हो जाते हैं।

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हिंदू राष्ट्र का सपना : हमें यह ध्यान रखना होगा कि 2025 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 साल पूरे हो रहे हैं। लोगों को अचरज भले हो लेकिन एक बड़ा सच यह है कि संघ वाले नरेंद्र मोदी के सरकार बनने की संभावना और हिंदू राष्ट्र साकार होने का सपना साथ-साथ देख रहे हैं।

संघ वालों की राय में अगर दस साल मोदी रह जाएं तो 2025 में जब संघ के 100 साल पूरे होंगे तबतक भारत का हिंदू राष्ट्र बनना संभव हो जाना चाहिए।

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