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लता मंगेशकर ने क्यों नहीं की शादी?

- लता मंगेशकर (पार्श्वगायिका)

हमें फॉलो करें लता मंगेशकर ने क्यों नहीं की शादी?
, शुक्रवार, 24 मई 2013 (11:10 IST)
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दरअसल घर के सभी सदस्यों की जिम्मेदारी मुझ पर थी। ऐसे में कई बार शादी का ख्‍याल आता भी तो उस पर अमल नहीं कर सकती थी। बेहद कम उम्र में ही मैं काम करने लगी थी। बहुत ज्यादा काम मेरे पास रहता था।

सोचा कि पहले सभी छोटे भाई-बहनों को व्यवस्थित कर दूं। फिर कुछ सोचा जाएगा। फिर बहन की शादी हो गई। बच्चे हो गए। तो उन्हें संभालने की जिम्मेदारी आ गई और इस तरह से वक्त निकलता चला गया।

किशोर दा से वो पहली मुलाकाता : 40 के दशक में जब मैंने फिल्मों में गाना शुरू ही किया था। तब मैं अपने घर से लोकल पकड़कर मलाड जाती थी। वहां से उतरकर स्टूडियो बॉम्बे टॉकीज पैदल जाती। रास्ते में किशोर दा भी मिलते लेकिन मैं उनको और वो मुझे नहीं पहचानते थे।

किशोर दा मेरी तरफ देखते रहते। कभी हंसते। कभी अपने हाथ में पकड़ी छड़ी घुमाते रहते। मुझे उनकी हरकतें अजीब सी लगतीं। मैं उस वक्त खेमचंद प्रकाश की एक फिल्म में गाना गा रही थी। एक दिन किशोर दा भी मेरे पीछे-पीछे स्टूडियो पहुंच गए।

मैंने खेमचंद जी से शिकायत की। 'चाचा। ये लड़का मेरा पीछा करता रहता है। मुझे देखकर हंसता है।' तब उन्होंने कहा, 'अरे, ये तो अपने अशोक कुमार का छोटा भाई किशोर है।' फिर उन्होंने मेरी और किशोर दा की मुलाकात करवाई और हमने उस फिल्म में साथ में पहली बार गाना गाया।

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मोहम्मद रफी से झगड़ा : 60 के दशक में मैं अपनी फिल्मों में गाना गाने के लिए रॉयल्टी लेना शुरू कर चुकी थी, लेकिन मुझे लगता कि सभी गायकों को रॉयल्टी मिले तो अच्छा होगा।

मैंने, मुकेश भैया ने और तलत महमूद ने एसोसिएशन बनाई और रिकॉर्डिंग कंपनी एचएमवी और प्रोड्यूसर्स से मांग की कि गायकों को गानों के लिए रॉयल्टी मिलनी चाहिए। लेकिन हमारी मांग पर कोई सुनवाई नहीं हुई।

तो हमने एचएमवी के लिए रिकॉर्ड करना ही बंद कर दिया। तब कुछ निर्माताओं और रिकॉर्डिंग कंपनी ने मोहम्मद रफी को समझाया कि ये गायक क्यों झगड़े पर उतारू हैं। गाने के लिए जब पैसा मिलता है तो रॉयल्टी क्यों मांगी जा रही है।

रफी भैया बड़े भोले थे। उन्होंने कहा, 'मुझे रॉयल्टी नहीं चाहिए।' उनके इस कदम से हम सभी गायकों की मुहिम को धक्का पहुंचा।

मुकेश भैया ने मुझसे कहा, 'लता दीदी। रफी साहब को बुलाकर आज ही सारा मामला सुलझा लिया जाए।' हम सबने रफी जी से मुलाकात की। सबने रफी साहब को समझाया। तो वो गुस्से में आ गए।

मेरी तरफ देखकर बोले, 'मुझे क्या समझा रहे हो। ये जो महारानी बैठी है। इसी से बात करो।' तो मैंने भी गुस्से में कह दिया, 'आपने मुझे सही समझा। मैं महारानी ही हूं।'

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तो उन्होंने मुझसे कहा, 'मैं तुम्हारे साथ गाने ही नहीं गाऊंगा।' मैंने भी पलट कर कह दिया, 'आप ये तकलीफ मत करिए। मैं ही नहीं गाऊंगी आपके साथ।'

फिर मैंने कई संगीतकारों को फोन करके कह दिया कि मैं आइंदा रफी साहब के साथ गाने नहीं गाऊंगी। इस तरह से हमारा तीन साढ़े तीन साल तक झगड़ा चला।

पसंदीदा अभिनेत्रियां : उस दौर की सभी अभिनेत्रियों से मेरी अच्छी दोस्ती थी। नरगिस दत्त, मीना कुमारी, वहीदा रहमान, साधना, सायरा बानो सभी से मेरी नजदीकियां थीं। दिलीप साहब मुझे अपनी छोटी बहन मानते हैं।

नई अभिनेत्रियों में मुझे काजोल और रानी मुखर्जी पसंद हैं। मज़रूह सुल्तानपुरी जी की पत्नी से मेरी काफी अच्छी दोस्ती थीं। मैं उनके घर अक्सर जाती रहती थी। वो बड़ा अच्छा खाना बनाती थीं। उन्होंने मुझे काफी चीज़ें बनाना सिखाईं। मैं उन्हें अपनी गुरू मानती हूं।

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याद आता है वो पुराना जमाना : हम लोगों ने जब काम शुरू किया तो काफी मुश्किल दौर था। एक जगह से दूसरी जगह रिकॉर्डिंग के लिए भागना। बारिश में भीगते हुए, धूप में तपते हुए इधर उधर जाना। लेकिन जो काम करते थे, उसमें बड़ी संतुष्टि मिलती थी।

बहुत मेहनत के साथ जो गाने गाते थे उन्हें सुनकर बड़ा अच्छा लगता।

मुकेश भैया जैसे लोग बड़े याद आते हैं। इतने सज्जन थे वो कि पूछिए मत। और किशोर दा, वो तो कमाल थे। उनके किस्से सुनाने बैठूंगी तो आप हंसते-हंसते पेट पकड़ लेंगे।

सच में, बड़ा याद आता है वो जमाना।

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