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साठ साल से कानूनी लड़ाई लड़ते हाशिम अंसारी

-रामदत्त त्रिपाठी (अयोध्या से)

हमें फॉलो करें साठ साल से कानूनी लड़ाई लड़ते हाशिम अंसारी
, गुरुवार, 16 सितम्बर 2010 (13:50 IST)
BBC
'मैं फैसले का भी इंतजार कर रहा हूँ और मौत का भी, लेकिन यह चाहता हूँ मौत से पहले फैसला देख लूँ।' ये शब्द हैं 90 साल के बुजुर्ग हाशिम अंसारी के, जो मेरे कानों में बराबर गूंज रहे हैं।

साठ साल से बाबरी मस्जिद की कानूनी लड़ाई लड़ रहे 90 वर्षीय हाशिम गजब के जीवट के आदमी हैं। लेकिन उनके चेहरे पर झुर्रियों के साथ-साथ ऐसी मायूसी मैंने बीस वर्षों में पहली बार देखी। कारण पूछने पर वो कहते हैं, 'कुछ मायूसी है हालात को देखते हुए। जो मुखालिफ पार्टियाँ चैलेंज कर रही हैं, उससे मायूसी है और हुकूमत कोई एक्शन नहीं लेती।'

हाशिम अयोध्या के उन कुछ चुनिंदा बचे हुए लोगों में से हैं जो लगातार 60 वर्षों से अपने धर्म और बाबरी मस्जिद के लिए संविधान और कानून के दायरे में रहते हुए अदालती लड़ाई लड़ रहे हैं।

'हिंदुओं से भाईचारा, खानपान'
स्थानीय हिंदू साधु-संतों से उनके रिश्ते कभी खराब नहीं हुए। मैं जब भी उनके घर गया, हमेशा अड़ोस-पड़ोस के हिंदू युवक चचा-चचा कहते हुए उनसे बतियाते हुए मिले।

हाशिम कहते हैं, 'मैं सन 49 से मुकदमे कि पैरवी कर रहा हूँ, लेकिन आज तक किसी हिंदू ने हमको एक लफ्ज गलत नहीं कहा। हमारा उनसे भाईचारा है। वो हमको दावत देते हैं। मैं उनके यहाँ सपरिवार दावत खाने जाता हूँ।'

विवादित स्थल के दूसरे प्रमुख दावेदारों में निर्मोही अखाड़ा के राम केवल दास और दिगंबर अखाड़ा के राम चंद्र परमहंस से हाशिम की अंत तक गहरी दोस्ती रही। परमहंस और हाशिम तो अक्सर एक ही रिक्शे या कार में बैठकर मुकदमे की पैरवी के लिए अदालत जाते थे और साथ ही चाय-नाश्ता करते थे। उनके ये दोनों दोस्त अब जीवित नहीं रहे। मुकदमे के एक और वादी भगवान सिंह विशारद भी नहीं रहे।

हाशिम के समकालीन लोगों में निर्मोही अखाड़ा की ओर से मुकदमे के मुख्य पैरोकार महंत भास्कर दास जीवित हैं।

दंगाइयों का हमला, स्थानीय हिंदुओं ने बचाया :
अयोध्या अवध की मिली-जुली गंगा जमुनी तहजीब का केंद्र रहा है। हाशिम इसी संस्कृति में पले बढे़ जहाँ मुहर्रम के जुलूस पर हिंदू फूल बरसाते हैं और नवरात्रि के जुलूस पर मुसलमान फूलों की बारिश करते हैं।

हाशिम पिछले साल हज के लिए मक्का गए थे तो कई जगह उन्हें भाषण देने के लिए बुलाया गया। हाशिम ने वहाँ लोगों को बताया कि हिंदुस्तान में मुसलमानों को कितनी आजादी है और वे कई मुस्लिम मुल्कों से बेहतर हैं।

हाशिम का परिवार कई पीढ़ियों से अयोध्या में रह रहा है। वो 1921 में पैदा हुए, 11 साल की उम्र में सन् 1932 में उनके पिता का देहांत हो गया। दर्जा दो तक पढ़ाई की। फिर सिलाई यानी दर्जी का कम करने लगे। यहीं पड़ोस में फैजाबाद में उनकी शादी हुई। उनके बच्चे हैं। एक बेटा और एक बेटी। उनके परिवार की आमदनी का कोई खास जरिया नहीं है।

छह दिसंबर, 1992 के बलवे में बाहर से आए दंगाइयों ने उनका घर जला दिया, पर अयोध्या के हिंदुओं ने उन्हें और उनके परिवार को बचाया। जो कुछ मुआवजा मिला उससे हाशिम ने अपने छोटे से घर को दोबारा बनवाया और एक पुरानी अम्बेसडर कार खरीदी।

बेटा मोहम्मद इकबाल इसे टैक्सी के तौर पर चलाते हैं, वह अक्सर हिंदू तीर्थयात्रियों को इसी टैक्सी में अयोध्या के मंदिरों के दर्शन कराते हैं। हाशिम एक बात बड़े गर्व से कहते हैं, 'हमने बाबरी मस्जिद की पैरवी जरूर की, लेकिन राजनीति फायदा उठाने के लिए नही।'

उनके एक साथी बताते हैं कि छह दिसंबर, 1992 के बाद एक बड़े नेता ने उनको दो करोड़ रुपए और पेट्रोल पम्प देने की पेशकश की तो हाशिम ने न केवल ठुकरा दिया बल्कि उस संदेशवाहक को दौड़ा दिया।

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सादगी का रहन-सहन : हाशिम अंसारी और उनके परिवार का रहन-रहन नहीं बदला। उनके छोटे से कमरे में दो तखत पड़े हैं। यही उनका ड्राइंग रूम है और यही बेड रूम। दीवार पर बाबरी मस्जिद की पुरानी तस्वीर टंगी है और घर के बाहर अंग्रेज़ी में बाबरी मस्जिद पुनर्निमाण समिति का बोर्ड।

मैं पहुँचा तो हो हाशिम जांघिया पहने लेटे थे। जल्दी-जल्दी लुंगी और कुरता पहना, सिर पर सफेद टोपी लगाई और बातचीत के लिए तैयार हुए। वर्ष 90 साल की उम्र में भी उनकी याददाश्त दुरुस्त है। वर्ष 1934 का बलवा भी उन्हें याद है, जब हिंदू वैरागी संन्यासियों ने बाबरी मस्जिद पर हमला बोला था।

वो बताते हैं कि ब्रिटिश हुकूमत ने सामूहिक जुर्माना लगाकर मस्जिद की मरम्मत कराई और जो लोग मारे गए उनके परिवारों को मुआवजा भी दिया। सन 1949 में जब विवादित मस्जिद के अंदर मूर्तियाँ रखी गई, उस समय प्रशासन ने शांति व्यवस्था के लिए जिन लोगों को गिरफ्तार किया, उनमें हाशिम भी शामिल थे।

हाशिम कहते हैं, 'चूँकि मैं सोशल (मेलजोल रखने वाला) हूँ इसलिए लोगों ने मुझसे मुकदमा करने को कहा और इस तरह मैं बाबरी मस्जिद का पैरोकार हो गया।'

'हर हाल में अमन'
बाद में 1961 में जब सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मुकदमा किया तो उसमे भी हाशिम एक मुद्दई बने। पुलिस प्रशासन की सूची में नाम होने की वजह से 1975 की इमरजेंसी में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और आठ महीने तक बरेली सेंट्रल जेल में रखे गए।

यह भी एक वजह हो सकती है कि हाशिम ने कांग्रेस को कभी माफ नही किया। बाबरी मस्जिद मामले में हर क़दम पर वह कांग्रेस को दोषी मानते हैं। हाशिम सभी पार्टियों के मुस्मिल नेताओं के भी आलोचक हैं। बातचीत में हाशिम बार-बार जोर देते हैं, 'हर हालत में हम अमन चाहते हैं, मस्जिद तो बाद की बात है।'

हाशिम कहते हैं, 'अगर हम मुकदमा जीत गए तो भी मस्जिद निर्माण तब तक नहीं शुरू करेंगे, जब तक कि हिंदू बहुसंख्यक हमारे साथ नहीं आ जाते।'

हाशिम अब अपनी निजी सुरक्षा को लेकर भी चिंतित हैं। उनका कहना है कि मुझे अयोध्या नहीं बाहर के लोगों से खतरा है, जो माहौल बिगाड़ने के लिए कुछ भी कर सकते हैं ताकि मुसलमान डर जाएँ। हाशिम को शिकायत है कि पहले उनकी सुरक्षा में तैनात तीनों सिपाहियों के पास हथियार थे। अब उत्तर प्रदेश सरकार ने दो हथियार वापस ले लिए हैं। एक हथियार है जिससे तीनों सिपाही बारी-बारी से आठ-आठ घंटे डयूटी देते हैं।

हाशिम को आश्वस्त करने के लिए स्थानीय पुलिस अफसरों ने उनके घर के बगल ही पुलिस पिकेट तैनात कर दी है। इसके बावजूद हाशिम के चेहरे पर चिंता के भाव हैं। हाशिम पहले कभी इतना चिंतित नहीं दिखे। चलते-चलते बार-बार कहते हैं- 'हाल खबर लेते रहिए।'

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