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एक फिल्म बनाना, मसाला मार के

हमें फॉलो करें एक फिल्म बनाना, मसाला मार के
- अनहद

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मुंबई में दो तरह की फिल्में बनती हैं। पहली प्रपोजल पर और दूसरी स्क्रिप्ट पर। स्क्रिप्ट का मतलब तो आप समझते ही हैं कि एक कहानी, एक पटकथा होती है, जिसके लिए कलाकार ढूँढे जाते हैं। दूसरी तरह की फिल्में प्रपोजल की कही जाती हैं। प्रपोजल यानी लाभ कमाने के लिए प्रोड्यूसर का प्लान। प्लान ऐसे बनता है कि यार अक्षय का बड़ा मार्केट चल रहा है, अक्षय को साइन कर लो। कैटरीना का भी बाजार गर्म है, उसे भी ले लो। कॉमेडी में परेश रावल बहुत चल रहा है, परेश से डेट ले लो, आइटम सांग में राखी सावंत सस्ते में डांस कर देगी। संगीत रहमान का डाल दो, गीत जावेद अख्तर के फँसा दो। हाँ, चलो अब बजट बनाओ कितना हो रहा है। डायरेक्टर तो घर का है, शूटिंग दो महीने में खत्म कर लेंगे। ठीक है स्विट्जरलैंड में भी दो गाने फिल्मा लेंगे...।

तो इस तरह का प्रपोजल बन जाने के बाद ऐसी कहानी की तलाश शुरू होती है, जिसमें इन सब कलाकारों का गुजर हो। कहानी के साथ कॉमेडी सिक्वेंस लिखवाए जाते हैं। जाहिर है ऐसी फिल्में वितरक हाथों-हाथ खरीद लेते हैं और दर्शक भी सितारों के कारण फिल्म देखने चले जाते हैं। अगर आप पारखी हैं, तो बता सकते हैं कि कौनसी फिल्म स्क्रिप्ट के आधार पर बनी है और कौनसी फिल्म बस प्रपोजल है। मिसाल के तौर पर "हेराफेरी" स्क्रिप्ट आधारित फिल्म है, जबकि "फिर हेराफेरी" प्रपोजल है। "गोलमाल" स्क्रिप्ट के आधार पर बनी है, जबकि "गोलमाल रिटर्न्स" प्रपोजल है। कभी-कभी कुछ काम गलती से भी अच्छे हो जाते हैं। सिंग इज किंग भी प्रपोजल फिल्म थी, जो हिट हो गई। भूल-भुलैया प्रपोजल फिल्म थी और हिट रही।

प्रपोजल फिल्मों में कहानी को कोड़े मार-मार कर चलाया जाता है। फिल्म की गति इतनी तेज रखी जाती है कि दर्शक को कुछ समझ ही न आए और ढाई घंटे का वक्त पूरा हो जाए। स्क्रिप्ट आधारित फिल्म में कहानी दर्शकों के दिल में गहरे उतरती है। फिल्म "इकबाल" को क्या भूला जा सकता है? मगर सुभाष घई की ही बनाई फिल्म "गुड बॉय बैड बॉय" प्रपोजल फिल्म थी। यह भी कहना होगा कि इंडस्ट्री में प्रपोजल पर फिल्में ज्यादा बनती हैं। सिर्फ नामी निर्देशक ही स्क्रिप्ट पर मेहनत करते हैं। मजे की बात यह है कि व्यावसायिक सफलता का फिर भी कोई फॉर्मूला नहीं है। बहुत मेहनत से बनाई फिल्में पिट जाती हैं। उदाहरण "साँवरिया" है।

इस समय इन सारी बातों का संदर्भ यह है कि "चाँदनी चौक टू चाइना" भी प्रपोजल पर बनी फिल्म है। अमिताभ जब इस फिल्म को देखने आ रहे थे तो अक्षय ने उनसे कहा कि कृपया आप दिमाग घर पर ही रखकर आना। यही गुजारिश दर्शकों से भी की जानी चाहिए कि "चाँदनी चौक..." देखने से पहले दिमाग को फ्रिज में रखकर जाएँ और फुल्ली फालतू फिल्म देखने के लिए अपने आपको तैयार कर लें। बकवास का भी अपना एक मजा है और जब बकवास ही हो रही हो, तो भव्य होनी चाहिए, जैसी "चाँदनी चौक..." के होने की आशंका है।

(नईदुनिया)


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