Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

घर का सिनेमा

हमें फॉलो करें घर का सिनेमा
- अनहद

PR
बड़जात्या परिवार की फिल्मों का गणित भी समझने लायक है। अगर आपने गौर किया हो तो उनकी फिल्में एक साथ बहुत सारे सिनेमाघरों में नहीं लगतीं। हर शहर में एक सिनेमाघर या तो बड़जात्या परिवार के रिश्तेदार का है या मित्र का। उसी सिनेमाघर में उनकी फिल्म लगती है।

उनका भरोसा इस बात में नहीं कि शुरुआती दिनों की आवक से मुनाफा निकालकर बरी हो जाया जाए, बल्कि वो लोग बड़ी तरकीब से अपनी फिल्म को हिट कराते हैं। राजश्री बैनर की साख है और उनके अपने प्रतिबद्ध दर्शक हैं। ये दर्शक तो राजश्री की हर फिल्म देखते ही हैं।

फिल्म एक सिनेमाघर में लंबे समय तक चलती रहे तो कई फायदे होते हैं। सबसे पहले तो प्रतिबद्ध दर्शक कभी वक्त निकालकर फिल्म देखने चले जाते हैं, सो लगे-बंधे गाहक टूटते नहीं। फिर देर तक फिल्म लगी रहने से यह इंप्रेशन बनता है कि इतने वक्त से फिल्म शहर में चल रही है (सिल्वर जुबली, गोल्डन जुबली), सो ज़रूर अच्छी होगी।

फिर इस बैनर की फिल्मों में कुछ न कुछ तो ऐसा होता ही है, जो सबको पसंद आए। गीत-संगीत, संस्कार, उपदेश... बच्चे अगर माँ-बाप से कहें कि वो राजश्री बैनर की फिल्म देखने जा रहे हैं तो माँ-बाप मना नहीं करते, उलटे टिकट के पैसे देते हैं और इंटरवल में आलूवड़ा खाने के अलग से।

अन्य लोगों के लिए फिल्म बनाना जुआ है और राजश्री के लिए तयशुदा फायदे वाला व्यापार। इसी फिल्म को लीजिए क्या नाम है इसका... हाँ याद आया- एक विवाह ऐसा भी। सोनू सूद और ईशा कोप्पीकर की कीमत ही क्या होगी?

ईशा कोप्पीकर की तो राजश्री ने इमेज ही बदल डाली है। बकाया ज़रूरी खर्च भी जोड़ लिया जाए तो यह फिल्म बमुश्किल डेढ़ करोड़ की है। रवींद्र जैन एक के साथ दो फ्री वाला पैकेज हैं। अगर आप कहो तो वो गा भी लेते हैं और गीत भी खुद ही लिख लेते हैं। ये बात और कि गीतों पर भजन होने का शुबहा होता है, पर काम तो चल ही जाता है।

डायरेक्टर भी घर का होता है, विषय भी घर का, कहानी भी घर की, सिनेमाहॉल भी घर के, सब कुछ घर ही घर का। अगर बड़जात्या परिवार भी अपनी फिल्में दूसरों की तरह प्रदर्शित करें तो समझ ही नहीं पड़े कि फिल्म कब आई और कब चली गई।

"एक विवाह ऐसा भी" मामूली फिल्म बताई जा रही है। इसमें तो "विवाह" जैसी भी बात नहीं है। मगर फिल्म फायदे में हैं और चलेगी भी। अन्य लोगों को राजश्री से फिल्म चलाना सीखना चाहिए। राजश्री की फिल्में खरगोश और कछुए की कहानी की याद दिलाती हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi