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सफलता के साथ चलते हैं सब

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दीपक असीम

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सेलिब्रेटीज़ के साथ यही दिक्कत है। उनके बॉडीगार्ड्‌स उन्हें हर खतरे से बचा सकते हैं, पर खुशामद करने वालों से नहीं। जब अटलबिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तो बहुत बड़े कवि थे। विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री थे, तो वे चित्रकार भी थे। अब विप्र सिंह के चित्र और वाजपेयी की कविताएँ कहाँ हैं? अब क्यों नहीं कोई गायक वाजपेयी की कविताएँ गाता?

जब आदमी सफलता के शिखर पर होता है, तो उसके हर मामूली काम को चाटुकार महान से कम नहीं आँकते। मिसाल के तौर पर सलमान खान की कहानी जिस पर अति घटिया फिल्म "वीर" बनी थी।

मुंबई में अच्छी से अच्छी स्क्रिप्ट लेकर लोग भटकते हैं। उनकी स्क्रिप्ट कोई सुनने को तैयार नहीं रहता। अगर सलमान खान सितारा नहीं होते और यह घटिया कहानी किसी को सुनाते तो क्या होता? धक्के मारकर और अपमानित करके उन्हें दफ्तर से बाहर निकाल दिया जाता, मगर सलमान खान के चाटुकारों ने "वीर" की तिबासी कहानी सुनकर ऐसा सिर धुना होगा, जैसे इतनी अनोखी कहानी वे पहली बार सुन रहे हैं, सो इस पर फिल्म भी बनी और बनकर पिट गई।

सलमान खान की पेंटिंग पर भी बहुत लोग फिदा रहते हैं, मगर हकीकत यह है कि उनकी पेंटिंग बहुत ही सामान्य-सी है। फाइन आर्ट कॉलेज में पहले साल के लड़के-लड़कियाँ सलमान खान से अच्छे पेंटर होते हैं।

पिछले दिनों एक टीवी चैनल पर आकर सलमान खान ने पेंटिंग बनाई थी। पेंटिंग बहुत सामान्य ही थी। अच्छी तो उसे हरगिज नहीं कहा जा सकता। फिर मॉडर्न आर्ट ने पेंटिंग को उतना ही सरल बना दिया है जितना अतुकांत कवियों ने कविता को। कुछ भी लिख दीजिए और हो गई कविता।

कैनवास पर थोड़े-से रंग छितरा दीजिए और हो गया चित्र। निकालते रहिए मतलब अगर आपके भेजे में गूदा है तो...। मगर सलमान खान की पेंटिंग उनका नाम लिए बगैर यदि कला दीर्घा में रख दी जाए तो उसे कौन खरीदेगा? समीक्षक उस पर क्या कहेंगे? तटस्थ समीक्षा के सामने उनकी पेंटिंग का भी वही हाल होगा, जो फिल्म "वीर" का हुआ था।

सलमान के खुशामदियों ने अब एक नई प्रतिभा उनमें ढूँढ निकाली है। वो है धुन बनाने की। एक फिल्म में सलमान खान की बनाई धुन पर आधारित गाना आ रहा है। सलमान अगर इतने ही अच्छे संगीतकार हैं, तो "दबंग पार्ट टू" का म्यूजिक वे ही क्यों नहीं देते?

सफल लोगों के साथ यही दिक्कत होती है। लोग हमेशा उनकी तारीफ करते हैं। कभी उनके सामने सच नहीं बोलते, लिहाजा सफल लोग सलमान की तरह ऑलराउंडर हो जाते हैं। वे तब तक ऑलराउंडर रहते हैं, जब तक सफल रहते हैं। असफलता की आँधी तमाम जाले साफ कर देती है।

सलमान खान अगर चाहें तो इस वक्त वे आर्किटेक्ट भी हो सकते हैं, ज्वेलरी डिजाइनर भी हो सकते हैं, फिल्म भी डायरेक्ट कर सकते हैं और हवाई जहाज भी उड़ा सकते हैं। यह बात और है कि जब वे हवाई जहाज उड़ाएँगे तो एक भी खुशामदिया उनके साथ विमान में बैठने वाला नहीं है।

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