ऋषिकेश मुखर्जी से अमिताभ बच्चन का परिचय अब्बास साहब ने ही कराया था। वे उन्हें लेकर ऋषिदा की बांद्रा स्थित खोली पर गए थे। कहा था- 'यह मेरे परिचित हरिवंशराय बच्चन का लड़का है। इसने मेरी फिल्म ‘सात हिन्दुस्तानी' में बहुत अच्छा काम किया है। यह काम की तलाश में है। इसे अपनी किसी फिल्म में काम जरूर दीजिए।' उन दिनों ऋषिकेश मुखर्जी 'आनंद' बनाने की सोच रहे थे। इस कहानी को उन्होंने राजेंद्रकुमार से लेकर जेमिनी के एस.एस. वासन तक को सुनाया था। तब सभी ने कहा था- इसमें रोमांस नहीं है। हीरो के सामने कोई हीरोइन नहीं है। किशोर कुमार और शशिकपूर से भी उन्होंने संपर्क किया था, पर बात बनी नहीं। तभी राजेश खन्ना इस फिल्म में काम करने के लिए अचानक तैयार हो गए। अब उन्हें डॉक्टर की भूमिका के लिए किसी अभिनेता की जरूरत थी और ऐसे में अब्बास साहब अमिताभ को लेकर उनके पास पहुँचे थे। इसके बाद उन्होंने 'सात हिन्दुस्तानी' फिल्म भी देख डाली और इस नतीजे पर पहुँचे कि बाबू मोशाय की अंतर्मुखी भूमिका के लिए अमिताभ का जन्म हुआ है। आनंद की सफलता
'आनंद' और 'परवाना' फिल्मों में काम करने के बदले अमिताभ को तीस-तीस हजार रुपए का पारिश्रमिक मिला था, इसलिए अमिताभ अनवर अली के फ्लैट को छो़ड़कर जुहू-पार्ले स्कीम में नार्थ-साउथ रोड पर सात नंबर के मकान में रहने लगे। 'आनंद' फिल्म ने सफलता के झंडे गाड़ दिए थे। इसमें अमिताभ बच्चन ने तब के सुपर स्टार राजेश खन्ना के समक्ष जानदार अभिनय करके खासी लोकप्रियता हासिल कर ली थी।
हालाँकि सफलता की मंजिल अभी दूर थी। इस बीच अमिताभ को फिल्मों में 'साइड रोल' ही मिल रहे थे। शुरू की एक दर्जन फिल्में पूरी होने तक अमिताभ जीरो ही थे। इनमें 'आनंद' के अलावा एकमात्र 'बॉम्बे टू गोवा' फिल्म ही ऐसी थी, जिसमें अमिताभ के नटखट रोल को दर्शकों ने चाव से देखा था। मेहमूद और एन.सी. सिप्पी इसके निर्माता थे। अनवर के कहने पर मेहमूद अमिताभ से मिलें।
मेहमूद ने अमिताभ से सिर्फ इतना ही पूछा था कि नाचना आता है या नहीं, और अमिताभ का जवाब था, थोड़ा-थोड़ा मगर सीख लूँगा। मेहमूद ने ताजमहल होटल के डांसिंगफ्लोअर पर बैंड की ताल पर अमिताभ को नचाकर देखा और 'ओके' कर दिया। 1972 में प्रदर्शित यह फिल्म फर्स्ट-रन में तो ज्यादा नहीं चली थी, लेकिन बाद में यह जब-जब भी चली, इसने निर्माताओं की झोली को लबालब भरा।
सुपरहिट जंजीर - सुपरहिट अमिताभ
'जंजीर' (1973) के सुपरहिट होने के पहले तक अमिताभ ने जिन एक दर्जन फिल्मों में काम किया, उनमें 'बॉम्बे टू गोवा'/ परवाना/ आनंद/ रेशमा और शेरा तथा 'सात हिंदुस्तानी' के अलावा प्यार की कहानी/ बंसी-बिरजू/ एक नजर/ संजोग/ रास्ते का पत्थर/ गहरी चाल और बँधे हाथ नामक फिल्में भी थीं, जो बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह पिट गईं।
फिल्म इंडस्ट्री में अमिताभ को 'अपशकुनी' हीरो माना जाने लगा। डेढ़-दो वर्षों के इस काल को अमिताभ अपने फिल्मी करियर का खराब समय मानते हैं। लेकिन विफलता के इसी काल में सफलता के बीज भी छुपे थे। रामनाथन की 'बॉम्बे टू गोवा' फिल्म में अमिताभ का काम देखकर ही प्रकाश मेहरा और सलीम जावेद ने 'जंजीर' के लिए अमिताभ को चुना था। इस समय तक अजिताभ भी मुंबई लौटकर अमिताभ के सेक्रेटरी कम बिजनेस मैनेजर का काम देखने लगे थे।
सन् 1972 की जुलाई में जंजीर की शूटिंग शुरू हुई। प्रकाश मेहरा निर्देशक के साथ ही इसके निर्माता भी थे। 'जंजीर' के लिए उन्होंने धर्मेन्द्र के समक्ष पार्टनरशिप का प्रस्ताव रखा था, पर वे राजी नहीं हुए। अभिनेता प्राण के पुत्र रोनी ने, जो अमिताभ का मित्र था, मेहरा के समक्ष फिल्म में अमिताभ को लेने का सुझाव दिया। तब तक अमिताभ से प्रकाश मेहरा की कोई जान-पहचान नहीं थी, बस 'हलो-हाय' के संबंध थे।
रोनी का प्रस्ताव जब मेहरा ने जावेद को बताया तो जावेद ने कहा कि आपने तो मेरे मुँह की बात छीन ली। जावेद ने कहा कि 'बॉम्बे टू गोवा' फिल्म देख लो। फिल्म को देखने के बाद प्रकाश मेहरा ने कहा- मुझे ऐसे ही हीरो की तलाश थी।
'जंजीर' के लिए प्रकाश मेहरा ने देव आनंद और राजकुमार से भी चर्चा की थी, लेकिन वे तैयार नहीं हुए थे, जबकि यह फिल्म अमिताभ बच्चन के लिए नियति का एक वरदान साबित हुई। इस फिल्म में जया भादुड़ी उनकी नायिका थीं, जिनके साथ वे 'बंसी-बिरजू' और 'एक नगर' फिल्में भी कर चुके थे। दोनों के बीच रोमांस भी चल रहा था।
'जंजीर' में अमिताभ ने पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका की थी। पुलिस की वर्दी में वे जँचेंगे या नहीं, प्रकाश मेहरा को शक था। तब सलीम जावेद ने कहा था कि इस रोल के लिए अमिताभ बच्चन से अच्छी कोई चॉइस हो ही नहीं सकती। इस बात का विश्वास मेहरा को फिल्म की पहले दिन की शूटिंग के दौरान ही हो गया।
हुआ यूँ कि पुलिस चौकी के इस दृश्य में खान के रूप में प्राण साहब आते हैं और इंस्पेक्टर अमिताभ के सामने रखी कुर्सी पर बैठने लगते हैं। प्राण को बैठने का अवसर भी न देते हुए अमिताभ कुर्सी को धकेलकर संवाद बोलते हैं- 'ये पुलिस स्टेशन है, तुम्हारे बाप का घर नहीं...।'
शॉट देने के बाद प्राण प्रकाश मेहरा को हाथ पकड़कर एक ओर ले जाते हैं और कहते हैं- प्रकाश, अभिनय तो में कई वर्षों से करता आ रहा हूँ, पर ऐसा जबर्दस्त अनुभव मुझे कभी नहीं हुआ। मैं तुम्हें आज ही बता देता हूँ कि हिन्दी-सिनेमा को एक बड़ा भारी एक्टर मिल गया है। दीवार पर लिखी इबारत मुझे साफ नजर आ रही है। शायद ये 'ग्रेटेस्ट स्टार' होगा।
'जंजीर' की सफलता के बाद प्राण, सलीम जावेद और प्रकाश मेहरा धन्य-धन्य हो गए। इस बीच अमिताभ माता-पिता को भी बंबई ले आए थे, क्योंकि राज्यसभा में डॉ. बच्चन का कार्यकाल पूरा हो चुका था और बंटी (अजिताभ) भी शिपिंग की ट्रेनिंग के लिए शॉ वॉलेस कंपनी की तरफ से एक साल के लिए जर्मनी गए थे।
जया से भी अमिताभ ने वादा कर रखा था कि 'जंजीर' के हिट होने पर वे छुट्टी मनाने के लिए विदेश जाएँगे। डॉक्टर बच्चन ने फरमान जारी किया कि विदेश जाना हो तो शादी करने के बाद जाओ। यह जून 1973 की बात है। अमिताभ की उम्र तीस साल की हो चुकी थी। दो दिन के शॉर्ट नोटिस पर यह विवाह संपन्न हो गया। शादी के दूसरे ही दिन जया और अमिताभ तीन सप्ताह की लंदन यात्रा के लिए चले गए। इसके बाद की घटनाएँ और अमिताभ का करियर सब ताजा इतिहास है, जिससे आप परिचित हैं।