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अलादीन : फिल्म समीक्षा

हमें फॉलो करें अलादीन : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

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निर्माता : इरोज़ इंटरनेशनल, बाउंड स्क्रिप्ट पिक्चर्स
निर्देशक : सुजॉय घोष
संगीत : विशाल शेखर
कलाकार : अमिताभ बच्चन, संजय दत्त, रितेश देशमुख, जैकलीन फर्नांडिस
* यू * 8 रील * दो घंटे 13 मिनट
रेटिंग : 2/5

सालों पुरानी अलादीन और जिन्न की कहानी को निर्देशक सुजॉय घोष वर्तमान में खींच लाए हैं। इस कहानी में उन्होंने अपनी कल्पना मिला दी और नई कहानी तैयार कर दी। लेकिन चार साल तक इस फिल्म पर मेहनत करने वाले सुजॉय यह तय नहीं कर पाए कि ये फिल्म वे किस दर्शक वर्ग को ध्यान में रखकर बना रहे हैं। बच्चों और वयस्कों दोनों को खुश करने में संतुलन बिगड़ गया। दूसरी बात जो ‘अलादीन’ के खिलाफ जाती है वो है इसकी अवधि। 133 मिनट जो उन्होंने अपनी बात कहने में लगाए हैं, उसे वे 90 मिनट में भी कह सकते थे, बशर्ते वे गानों और लंबे क्लायमैक्स का मोह छोड़ देते।

ख्वाहिश नगर में रहने वाले अलादीन (रितेश देशमुख) को स्कूल से लेकर कॉलेज तक पढ़ने वाले उसके क्लासमेट्स चिढ़ाते हैं ‘अलादीन, अलादीन, कहाँ है तेरा जिन्न’। उसे लैम्प (चिराग) देकर रगड़ने को देते हैं ताकि जिन्न सामने आए। लेकिन कभी उसके साथ चमत्कार नहीं होता।

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अपने साथ पढ़ने वाली जस्मिन (जैकलीन फर्नांडिस) को अलादीन मन ही मन चाहता है। अलादीन के जन्मदिन सभी दोस्तों की तरह जस्मिन भी उसे उपहार में लैंप देती है, जिसे रगड़ने पर सूट-बूट पहना, उम्रदराज और हिंग्लिश बोलने वाला जिनी सामने आ जाता है।

वह अलादीन की तीन ख्वाहिशें पूरी करने के लिए कटिबद्ध है, ताकि रिटायर होकर लैम्प की गुलामी से आजाद हो। लेकिन अलादीन अपनी बेवकूफी से दो ख्वाहिशें बरबाद कर देता है। यहाँ तक फिल्म मनोरंजक है। बाँधे रखती है।

बात बिगड़ना तब शुरू होती है जब अलादीन तीसरी ख्वाहिश सामने रखता है। वह चाहता है कि जस्मिन उसे चाहने लगे, लेकिन जादू की मदद के बिना। जिन्न अपने तरीके से उसकी मदद करता है। अलादीन होंठ हिलाता है और पीछे से जिन गाता है।

रिंग मास्टर के रूप में जब संजय दत्त के रोल को महत्व दिया जाता है तो फिल्म में बोरियत का प्रतिशत बढ़ जाता है। रिंग मास्टर कौन है, क्या है, उसका मकसद क्या है, इसको लेकर जो बातें फिल्म में बताई गई हैं वो स्पष्ट नहीं हो पाती। न बच्चे समझ पाते हैं और न बड़े।

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अमिताभ बच्चन और संजय दत्त से ओवर ‍एक्टिंग करवाई गई है, जिससे उनके किरदारों का प्रभाव कम हो गया है। रितेश देशमुख ने अपना काम बखूबी निभाया है। खूबसूरत जैकलीन फर्नांडिस को करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं था। विक्टर बैनर्जी, रत्ना पाठक शाह और मीता वशिष्ठ जैसे उम्दा कलाकारों के साथ न्याय नहीं किया गया है।

संगीत की बात की जाए तो कुछ गाने अच्छे हैं और कुछ बेहद साधारण। विजुएल इफेक्ट्स और फिल्मांकन उम्दा है।

कुल मिलाकर ‘अलादीन’ ऐसी फिल्म है जो बच्चे या बड़े में से किसी का भी दिल नहीं जीत पाती।

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