Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

भेजा फ्राय 2 : फिल्म समीक्षा

हमें फॉलो करें भेजा फ्राय 2 : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

PR
निर्माता : मुकुल देओरा
निर्देशक : सागर बेल्लारी
संगीत : इश्क बेक्टर, स्नेहा खानवलकर, सागर देसाई
कलाकार : विनय पाठक, मिनिषा लांबा, अमोल गुप्ते, केके मेनन, सुरेश मेनन
सेंसर सर्टिफिकेट : यू/ए * 14 रील * 2 घंटे 9 मिनट
रेटिंग : 3/5


‘भेजा फ्राय 2’ के किरदार भारत भूषण जैसे संगीत प्रेमी आपको अपने आसपास मिल जाएँगे। हिंदी सिनेमा के संगीत पर लिखने वालों से ज्यादा ज्ञान इनके पास रहता है। यह गाना कौन सी फिल्म का है, किसने लिखा है, किसने संगीत दिया है, मुँहजबानी इन्हें याद रहता है।

भारत भूषण तो हेमंत कुमार, बर्मन दा और मन्ना डे जैसे महान संगीतकारों का इतना दीवाना है कि अपने ब्रीफकेस का कोड, बैंक अकाउंट का नंबर और एटीएम कार्ड का पिन नंबर इनके जन्मदिन या पुण्यति‍थि की तारीखों के आधार पर रखता है।

एक निर्जन टापू पर जब वह अपने साथी के साथ अकेला फँस जाता है तो रेत पर ‘हेल्प’ लिखने के बजाय एक पुराना हिट गाना ‘अकेले हैं चले आओ जहाँ हो’ लिखता है। कैसी भी परिस्थिति हो बजाय घबराने के सिचुएशन के मुताबिक उसे गाने सूझते रहते हैं।

webdunia
PR
उच्च वर्ग के लोग उसकी शुद्ध हिंदी, जिंदगी के प्रति उसके सकारात्मक दृष्टिकोण और मध्यमवर्गीय मूल्यों का मजाक उड़ाता है, लेकिन इससे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता वह कभी बुरा नहीं मानता। उसे अपने बचपन के किस्से और पिताजी की सीखें याद हैं। इसी बचपन को उसने अब तक सहेज रखा है और उसकी यही मासूमियत को निर्देशक ने बार-बार उभारा है।

भेजा फ्राय में एक और दिलचस्प किरदार है रघु बर्मन का। उसे रेडियो से, आरडी बर्मन से प्यार है। टीवी चैनलों की भरमार और अनचाही खबरों के हमलों से घबरा कर वह एक टापू में जा बसता है ताकि अकेला रहकर अपने साथ वक्त बिता सके। रेडियो पर गाने सुन सके। कुछ ऐसे ही किरदारों के कारण ‘भेजा फ्राय 2’ देखते समय अच्छी लगती है।

निश्चित रूप से भेजा फ्राय का यह सीक्वल पिछली फिल्म की तुलना में उन्नीस है, लेकिन मनोरंजक है। फिल्म थोड़ा धैर्य माँगती है। जैसे ही कैरेक्टर स्थापित होते हैं और उनकी हरकतों को आप पकड़ लेते हैं, फिल्म मजा देने लगती है।

भेजा फ्राय के संवाद बेहद उम्दा थे और ठहाका लगाने के लगातार मौके अवसर आते रहते थे। सीक्वल का स्क्रीनप्ले इस लिहाज से कमजोर है। कई जगह फिल्म खींची हुई लगती है। मुस्कराने के दो अवसरों में दूरी है और संवादों में भी वैसी बात नहीं है। लेकिन दिलचस्प कैरेक्टर्स होने की वजह से फिल्म में रूचि बनी रहती है।

निर्देशक सागर बेल्लारी ने उच्चवर्गीय और मध्यमवर्गीय मूल्यों के द्वंद्व को अच्‍छी तरह पेश किया है। फिल्म में एक दृश्य है जिसमें बिज़नेस टायकून एक लड़की को बिस्तर पर ले जाने की कोशिश करता है। जब लड़की मना कर देती है तो वह उसे ‘बहनजी टाइप’ नाम देता है। मानो बहनजी टाइप होना गुनाह हो गया है।

webdunia
PR
एक और दृश्य है जिसमें भारत भूषण स्विमिंग पूल में डूबता रहता है और सारे सूट-बूटधारी उसकी बचने की कोशिश का मजा लेते हैं बजाय उसे बचाने के।

भारत भूषण के किरदार को विनय पाठक से बेहतर शायद ही कोई निभा सकता था। ऐसा लगता है कि जैसे वे इस रोल के लिए ही बने हो। थोड़ी-सी ओवर एक्टिंग खेल बिगाड़ सकती थी, लेकिन विनय ने वो सीमा पार नहीं की।

के के मेनन पिछली फिल्म के रजत कपूर जैसा प्रभाव नहीं जगा पाए। सुरेश मेनन और मिनिषा लांबा ने अपना काम अच्छे से किया है। अमोल गुप्ते एक बार फिर बतौर अभिनेता अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi