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ये जवानी है दीवानी - मूवी रिव्यू

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बाइस वर्ष की उम्र तक पढ़ाई। 25 में नौकरी। 26 में छोकरी। 30 में बच्चें। 60 में रिटायरमेंट। ऐसी जिंदगी ‘ये जवानी है दीवानी’ का हीरो बनी (रणबीर कपूर) नहीं जीना चाहता है। उसे हिप्पी स्टाइल में जिंदगी जीना पसंद है। दुनिया का कोई कोना वो छोड़ना नहीं चाहता। शादी वह जरूरी नहीं समझता। उसका मानना है कि आदमी जिंदगी भर दाल-चांवल खाकर कैसे गुजारा कर सकता है?

वैसे भी आजकल फिल्मों में दिखाए जाने वाले ज्यादातर हीरो/हीरोइनों को शादी पर विश्वास नहीं है। पिछले सप्ताह रिलीज हुई ‘इश्क इन पेरिस’ के हीरो का भी यही सोचना था। बनी की सोच आज के युवाओं की शादी के प्रति सोच को दिखाती है। हालांकि भारत में ऐसी सोच वाले युवा बहुत कम हैं, जिनका प्यार/शादी पर यकीन नहीं है। जो हैं, उनमें से भी ज्यादातर में इतना साहस नहीं है कि वे धारा के विपरीत तैर सकें।

खैर, फिल्म की हीरोइन नैना (दीपिका पादुकोण) का मिजाज और सोच बनी से विपरीत है। वह पढ़ाकू है, इसलिए उसे लुक में ज्यादा स्मार्ट नहीं दिखाया गया है। वह बोल्ड नहीं है। मस्ती करने से घबराती है। पढ़ाकू को थोड़ा दब्बू दिखाना फिल्म वालों की पुरानी आदत है। नैना को शौक नहीं है कि वह दुनिया घूमे। वह एक कमरे में भी जिंदगी काट सकती है क्योंकि उसे अपनों के बीच रहना पसंद है।

विपरीत मिजाज वालों के इस द्वंद्व और बनी का बंजारा जिंदगी की तरफदारी करने को अयान मुखर्जी ने अपनी फिल्म में दिखाया है। फिल्म बनी की आधुनिक सोच से शुरू होती है, लेकिन समाप्त होते तक बनी भी प्यार कर बैठता है और शादी के लिए तैयार हो जाता है।

यहां पर अयान कुछ नया नहीं सोच पाए और परंपरागत शैली में अपनी कहानी का उन्होंने समापन किया। शायद भारतीय दर्शकों की मानसिकता और बॉक्स ऑफिस की मांग को ध्यान में रखकर उन्हें ऐसा करना पड़ा हो क्योंकि कपड़ों या चमचमाते मॉल्स से ही भले ही भारतीय आधुनिक लगते हो, लेकिन सोच के मामले में ठेठ देसी हैं। हीरो-हीरोइन का मिलन ही उनके लिए फिल्म का सही अंत है।

‘ये जवानी है दीवानी’ शुरुआत में थोड़ी लड़खड़ाती है। फिल्म शुरू होते ही माधुरी दीक्षित का गाना बिना सिचुएशन के टपक पड़ता है और फिल्म की कहानी से इसका कोई संबंध नहीं है। माधुरी अपनी वही पुरानी अदाओं को दोहराती नजर आती हैं, जो अब उन पर जमती नहीं है। इसके बाद कहानी इंटरवल तक मनाली में घूमती रहती है।

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मनाली की सड़कों पर हास्य के पुट के साथ एक लंबा एक्शन सीक्वेंस रखा गया है जो बेहद बचकाना है। शुरुआती कुछ झटकों के बाद फिल्म में धीरे-धीरे पकड़ आ जाती है क्योंकि बनी और नैना के बीच कुछ उम्दा दृश्यों के साथ-साथ उनके दोस्तों की कॉमेडी भी लगातार चलती रहती है। फिर आता है एक छोटा-सा ट्विस्ट। बनी शिकागो चला जाता है।

आठ वर्ष बाद बनी और नैना अपने दोस्त की शादी में मिलते हैं। पृष्ठभूमि में शादी चलती है और यही पर बनी को अहसास होता है कि वह नैना से प्यार करने लगा है। इंटरवल के बाद का यह पूरा ड्रामा ‘बैंड बाजा बारात’ की याद दिलाता है। उस फिल्म में भी एक शादी के दौरान हीरो को महसूस होता है कि वह हीरोइन को प्यार करने लगा है।

अयान मुखर्जी की लिखी कहानी में यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि आगे क्या होना वाला है, इसके बावजूद फिल्म इसलिए अपील करती है क्योंकि प्रस्तुतिकरण ताजगी भरा है और युवाओं की पसंद के अनुरूप है।

जहां तक निर्देशन का सवाल है तो अयान शुरुआत के अलावा बीच में भी कुछ जगह ‍डगमगाते हैं। कुछ दृश्यों को बेवजह रखा गया है और इन्हें हटाकर फिल्म की लंबाई को कम किया जा सकता है।

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दूसरी ओर कई ऐसे दृश्य भी अयान ने लिखे हैं, जैसे- नैना का बोरिंग लड़की से फन लविंग गर्ल बनना, मन ही मन बनी को प्यार करना, बनी को यह अहसास होना कि वह नैना को चाहने लगा है, बनी और उसके पिता के दृश्य, जो दिल को छूते हैं। चारों दोस्तों की मस्ती हंसाती है। बनी और नैना का कैरेक्टराइजेशन उम्दा है। पहली फ्रेम से ही उनकी हर बात अच्छी लगती है। इनके अलावा उनके दोस्तों के किरदार भी उल्लेखनीय हैं।

रणबीर और दीपिका की केमिस्ट्री इस फिल्म की जान है। दोनों एक-दूसरे के साथ बेहद सहज नजर आते हैं। एक मस्त और बिंदास लड़के के किरदार को रणबीर ने बखूबी निभाया है। दीपिका पादुकोण का किरदार मुंह से कम और चेहरे के भावों से ज्यादा बोलता है। ऐसा रोल निभाना मुश्किल होता है, लेकिन दीपिका इस चैलेंज पर खरी उतरती हैं।

कल्कि को जितने भी दृश्य मिले हैं उनमें वह जबदरस्त हैं। आदित्य रॉय कपूर ने उनका साथ अच्छे से निभाया है। फारुख शेख चंद सीन में नजर आते हैं और अपना प्रभाव छोड़ जाते हैं।

प्रीतम का संगीत और बैकग्राउंड म्युजिक इस फिल्म का प्लस पाइंट है। बलम पिचकारी, बदतमीज दिल, कबीरा, सुभानअल्लाह हिट हो चुके हैं। बदतमीज दिल में रणबीर का डांस देखने लायक है। फिल्म के संवाद आम जिंदगी में जैसे बाते करते हैं, वैसे हैं। बीच-बीच में ‘वक्त बीतता है और हम खर्च होते हैं’ जैसे कुछ उम्दा संवाद भी सुनने को मिलते हैं।

कुल मिलाकर ‘ये जवानी है दीवानी’ उस बात को पुख्ता करती है कि आज का युवा कितना ही आधुनिक होने का दावा करे, प्यार और शादी पर उसका विश्वास अभी भी कायम है। यह बात फिल्मेमौज-मस्ती के साथ मनोरंजक अंदाज में कही गई है।

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बैनर : धर्मा प्रोडक्शन्स, यूटीवी मोशन पिक्चर्स
निर्माता: करण जौहर
निर्देशक : अयान मुखर्जी
संगीत : प्रीतम चक्रवर्ती
कलाकार : रणबीर कपूर, दीपिका पादुकोण, कल्कि कोएचलिन, आदित्य रॉय कपूर, कुणाल रॉय कपूर, फारुख शेख, तन्वी आजमी, माधुरी दीक्षित

सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 41 मिनट
रेटिंग : 3/5

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