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एक था टाइगर : फिल्म समीक्षा

हमें फॉलो करें एक था टाइगर : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

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बैनर : यशराज फिल्म्स
निर्माता : आदित्य चोपड़ा
निर्देशक : कबीर खान
संगीत : सोहेल सेन
कलाकार : सलमान खान, कैटरीना कैफ, गिरीश कर्नाड, रणवीर शौरी
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 16 रील
1.5/5

‘तुम्हारे हाथ देख कर नहीं लगता कि तुम राइटर हो। जगह-जगह से कटे-फटे हैं। लगता है कि पहलवान हो।‘ टाइगर के हाथ देख जोया बोलती है। उड़ते परिंदे के पर गिनने की काबिलियत रखने वाला यह रॉ-एजेंट जोया की बारीक नजर पर गौर नहीं करता है क्योंकि वह जोया के प्यार में डूबा हुआ है और प्यार में आदमी अंधा हो जाता है। वह तब भी जोया को एक सामान्य लड़की ही समझता है जबकि सिनेमा हॉल में बैठा एक सामान्य दर्शक भी जोया की हरकतों को देख अंदाजा लगा लेता है कि जोया वो नहीं है जो दिखाई दे रही है।

डबलिन में टाइगर एक वैज्ञानिक पर नजर रखने आया है। शक है कि वह वैज्ञानिक कुछ जानकारियां दुश्मन मुल्क को दे रहा है। इसी सिलसिले में वह उसकी केयरटेकर जोया को अपने प्यार के जाल में फंसाता है, लेकिन खुद फंस जाता है।
टाइगर और जोया की लव स्टोरी पर खूब फुटेज खर्च किए हैं, लेकिन डबलिन की ठंड का असर इस लव स्टोरी पर दिखाई देता है। एकदम बर्फ की तरह ठंडी लगती है। कोई गरमाहट दोनों के प्यार में नजर नहीं आती।

प्यार के चक्कर में उस वैज्ञानिक को टाइगर और जोया के साथ-साथ फिल्म के निर्देशक और लेखक भी भूल जाते हैं। जिस मिशन पर टाइगर निकला था और इंटरवल तक का समय उस प्रसंग को दिया गया है उसे इस तरह भूला देना हैरानी वाली बात है।

इंटरवल के ठीक पहले दर्शकों को चौंकाया जाता है, लेकिन दर्शक समझ जाते हैं कि होना जाना कुछ नहीं है सिर्फ चौंकाने के लिए यह किया गया है। असली बात सबको पता रहती है।

टाइगर फर्ज और प्यार के बीच फंस जाता है। उसे अपने बॉस की बात याद आती है जिसकी उम्र 60 के आसपास है, लेकिन अब तक उसकी शादी नहीं हुई है, वे फरमाते हैं कि फर्ज और प्यार के बीच में से उन्होंने फर्ज चुना और इसी अफसोस के साथ रोजाना नौकरी पर जाते हैं। दर्शकों को अफसोस इस बात पर होता है कि इतना ही अफसोस है तो यह नौकरी चुनी ही क्यों?

अपने बॉस की गलती टाइगर नहीं दोहराता। वह प्यार को चुनता है और भाग निकलता है (भागता क्यों है, ये बताया नहीं जा सकता वरना फिल्म देखने का मजा किरकिरा हो सकता है)। रॉ और आईएसआई एजेंट उसके पीछे हैं, लेकिन सारे निकम्मे लगते हैं क्योंकि इस्तांबुल, क्यूबा, लंदन, केपटाउन में वह घूमता रहता है, लेकिन कोई उसे पकड़ नहीं पाता। क्यूबा की सड़कों पर वह गुंडे को मार डालता है। सीक्रेट एजेंट के बारे में कोई सीक्रेट नहीं रहता, लेकिन उसका बाल बांका नहीं होता।

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हद तो तब होती है जब टाइगर और जोया क्यूबा से हवाई जहाज ले उड़ते हैं। पता नहीं किस देश में वे लेंडिंग करते हैं और पकड़े नहीं जाते। अब हर देश में तो कानून और व्यवस्था हमारे देश जैसी नहीं होती है और जिसके पीछे रॉ-आईएसआई हो उसका यूं बच निकलना हजम नहीं होता।

क्लाइमेक्स के पहले फिल्म थोड़ी गति पकड़ती है। कुछ शानदार तालियां और सीटियां बजाने लायक एक्शन सीन देखने को मिलते हैं। उम्मीद बंधती है कि टाइगर की दहाड़ अब जोरदार होगी, लेकिन अचानक फिल्म खत्म हो जाती है।

ये कोई आर्ट फिल्म नहीं है, जिसका अंत दर्शकों पर छोड़ दिया जाता है। यह सुपरस्टार सलमान खान की फिल्म है, जिसमें दर्शक शुरुआत से लेकर ठोस अंत तक देखना चाहते हैं, लेकिन अंत सभी को निराश करता है।

(फिल्म समीक्षा का शेष भाग पढ़ने के लिए अगले पेज पर क्लिक करें)


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चलिए, लॉजिक की बात छोड़ देते हैं। बात जब लार्जर देन लाइफ सुपरस्टार सलमान खान की फिल्म की हो तो दिमाग को हम घर पर रख कर आते हैं। हमें तो सिर्फ सलमान और उसकी सारी हरकतें देखना होती हैं। वह डांस करे, कॉमेडी करे, गुंडों को पीट-पीट कर अधमरा कर दे, जबरदस्त डायलॉग बोले, स्लो मोशन में स्टाइलिश लुक दे, तो ही हमारे पैसे वसूल हो जाते हैं। लेकिन अफसोस की बात यह है कि यहां पर भी फिल्म अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरती।

जो ‍गलती कुछ सप्ताह पहले ‘जिस्म 2’ में पूजा भट्ट ने की थी, वही कबीर खान ने की। वे अपने स्टार की खासियत का लाभ नहीं उठा पाए। ‘काबुल एक्सप्रेस’ और ‘न्यूयॉर्क’ जैसी उद्देश्यपूर्ण फिल्म बनाने के बाद कबीर खान इस सुपरस्टार को ठीक से संभाल नहीं पाए। वे कशमकश में फंसे रहे। न उद्देश्यपरक फिल्म बना पाए और न ही कमर्शियल फिल्म।

सलमान को साइन करते ही ‍कहानी लिखने वाले आदित्य चोपड़ा और निर्देशक कबीर खान की आंखें चौंधिया गई। सलमान का स्टारडम इतना विशाल है कि उसके तले उन्हें कुछ भी नहीं दिखाई दिया और नतीजे में ‘एक था टाइगर’ जैसी फिल्म सामने आई।

‘माशाल्लाह’ जैसा सुपरहिट गाना यदि फिल्म के अंत में टाइटल के साथ दिखाया जाए तो सिर ही पीटा जा सकता है। इस हिट गाने को तो बिना किसी सिचुएशन के भी डाल दिया जाता तो भी किसी को आपत्ति नहीं होती।

फिल्म की खासियत है कुछ एक्शन सीन। आयरलैंड में ट्रॉम वाला सीन और अंत में क्यूबा में फिल्माया गया एक लंबा चेज़ सीन जिसमें टाइगर और जोया के पीछे कई लोग लगे हैं, अंतरराष्ट्रीय स्तर के हैं।

सलमान खान ने अपना रोल अच्छे से निभाया है, लेकिन वे सारी हरकतें कम की हैं जिन्हें देखने के लिए दर्शक टिकट खरीदते हैं। कैटरीना कैफ खूबसूरत लगीं और उनका अभिनय ठीक कहा जा सकता है। गिरीश कर्नाड और रोशन सेठ जैसे कलाकार लंबे समय बाद इस फिल्म के जरिये देखने को मिले। इनके अलावा रणवीर शौरी ने भी अपना किरदार अच्छे से निभाया है।

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आधा खाना खा चुके इंसान के आगे से प्लेट हटा ली जाए तो उसे जैसा महसूस होगा वैसा ‘एक था टाइगर’ देखने के बाद महसूस होता है। अधूरापन लगता है। फिल्म के प्रति जो क्रेज है उसे देख यह फिल्म सुपरहिट भी हो सकती है, लेकिन सलमान के फैंस भी महसूस करेंगे कि भाई की यह फिल्म वो मजा नहीं देती जिसकी अपेक्षा लेकर वे भाई के नाम पर टिकट खरीदते हैं।

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