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जन्नत 2 : फिल्म समीक्षा

हमें फॉलो करें जन्नत 2 : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

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बैनर : फॉक्स स्टार स्टुडियो, विशेष फिल्म्स
निर्माता : महेश भट्ट
निर्देशक : कुणाल देशमुख
संगीत : प्रीतम चक्रवर्ती
कलाकार : इमरान हाशमी, ईशा गुप्ता, रणदीप हुडा, मनीष चौधरी
सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 2 घंटे 18 मिनट
रेटिंग : 2/5

हिंदी‍ फिल्मों में अवैध हथियार के कारोबार का विषय नया है। इस सब्जेक्ट में इतना दम है कि इस पर एक अच्छी-खासी कमर्शियल फिल्म बन सकती है, लेकिन ‘जन्नत 2’ में इसके साथ न्याय नहीं हो सका। कमजोर कहानी और स्क्रिप्ट के कारण जन्नत 2 एक आम रूटीन फिल्म की तरह सामने आती है।

जन्नत से जन्नत 2 का कोई लेना देना नहीं है। सिर्फ नाम को भुनाने की कोशिश की गई है। वैसे भी इन दिनों महेश भट्ट अपनी हर हिट फिल्म के दूसरे और तीसरे भाग को बना रहे हैं। दो-चार बार जन्नत शब्द का जिक्र बेवजह रखा गया और फिल्म के नाम को जस्टिफाई करने की कोशिश की गई है।

सोनू दिल्ली (इमरान हाशमी) को यह नहीं पता कि उसका नाम सोनू किसने रखा है, लेकिन दोस्तों ने उसे केकेसी की उपाधि दे रखी है। केकेसी यानी कुत्ती कमीनी चीज। टमाटर-आलू की तरह वह अवैध पिस्तौल, हथियार बेचकर गुजारा करता है।

एसीपी प्रताप रघुवंशी (रणदीप हुडा) की बीवी को ऐसे ही एक अवैध पिस्तौल से मार दिया गया था, तभी से वह इन हथियार बनाने वालों को सलाखों के पीछे करना चाहता है। सोनू उसे एक ऐसा जरिया नजर आता है जिसके सहारे वह उन तक पहुंच सकता है।

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जाह्नवी तोमर (ईशा गुप्ता) नामक एक डॉक्टर को सोनू दिल दे बैठता है। सोनू की असलियत से जाह्नवी अंजान है। प्रताप इसी का फायदा उठाते हुए सोनू को ब्लेकमेलिंग करता है और सोनू उसका मुखबिर बन जाता है। किस तरह से प्रताप अपने मिशन में कामयाब होता है यह फिल्म का सार है।

महेश भट्ट और मुकेश भट्ट एक जैसी फिल्में लगातार बनाते आ रहे हैं। हीरो गलत काम करता है। हीरोइन को दिल दे बैठता है और फिर सुधरने की कोशिश करता है। एक महीने पहले उनके द्वारा बनाई गई ‘ब्लड मनी’ में भी यही था और ‘जन्नत 2’ में भी ऐसी ही स्क्रिप्ट लिखी गई है। बस अपराध की दुनिया बदलती रहती है। ब्लड मनी में हीरे थे तो जन्नत 2 में तमंचे और बंदूक आ गई।

फिल्म की पृष्ठभू‍मि में दिल्ली शहर है। शुरुआत में सोनू को हरियाणवी अंदाज में हिंदी बोलते हुए दिखाया गया है, लेकिन बाद में इस ओर ध्यान नहीं दिया गया। शुरुआती रील में सोनू और जाह्नवी की प्रेम कहानी दिखाई गई है जो ज्यादा अपील नहीं करती।

जाह्नवी को डॉक्टर बताया गया है, लेकिन वह शादी करने के पहले इतना पता लगाने की कोशिश भी नहीं करती कि सोनू क्या काम करता है। सोनू कहता है कि उसकी कटपीस बेचने की दुकान है और वह मान लेती है। जबकि सोनू की बॉडी लैंग्वेज, रहन-सहन और बोल-चाल से उसका सड़कछाप आदमी होना झलकता है। जाह्नवी अपने पिता से क्यों नफरत करती है, ये भी नहीं बताया गया है।

जाह्नवी को चाहने के बाद सोनू अपराध की दुनिया छोड़ना चाहता है। कुत्ती-कमीनी-चीज प्यार करने के बाद अचानक क्यों बदल जाती है ये बात ठीक से पेश नहीं की गई है। सोनू और एसीपी के बीच के सीन मजेदार हैं, लेकिन एक सीमा के बाद उनमें दोहराव नजर आता है।

एसीपी मुख्य अपराधी के सामने होने के बावजूद उसे पकड़ने में पता नहीं क्यों इतनी देर लगाता है। क्लाइमेक्स में पुलिस के बड़े अधिकारी और विलेन की सांठगांठ वाली बात फिजूल लगती है। फिल्म के किरदार बात-बात में गालियां बकते हैं और ये गालियां जबरन ठूंसी हुई हैं।

एक रूटीन कहानी को निर्देशक कुणाल देशमुख ने रोचक अंदाज में पेश किया है जिसके कारण फिल्म में बोरियत नहीं फटकती। यदि वे स्क्रिप्ट की खामियों पर भी ध्यान देते तो फिल्म का स्तर कहीं ऊंचा होता। प्रीतम का संगीत अच्छा है, लेकिन गानों के लिए अच्छी सिचुएशन नहीं बनाई गई है।

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इमरान हाशमी ने सोनू दिल्ली का किरदार अच्छे से निभाया है और ढेर सारी ऐसी लाइनें बोली हैं जिस पर सिंगल स्क्रीन में फिल्म देखने वाले और युवा दर्शक तालियां पीटेंगे। रणदीप हुडा ने पूरी फिल्म में एक जैसा एक्सप्रेशन रखा है, लेकिन उनका किरदार ही कुछ ऐसा लिखा गया है कि यह अच्छा लगता है। ईशा गु्प्ता को अभिनय के बहुत सारे पाठ सीखना होंगे। मनीष चौधरी विलेन के रूप में अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाए।

फिल्म का बजट टाइट रखा गया है और यह बात कई बार नजर आती है। बॉबी सिंह की सिनेमाटोग्राफी उम्दा है और उन्होंने दरगाह वाला चेजिंग सीन अच्छे से फिल्माया है। कुल मिलाकर जन्नत 2 एक औसत फिल्म है।

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