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प्लेयर्स : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

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बैनर : स्टुडियो 18, बर्मनवाला पार्टनर्स
निर्देशक : अब्बास-मस्तान
संगीत : प्रीतम चक्रवर्ती
कलाकार : अभिषेक बच्चन, बिपाशा बसु, सोनम कपूर, बॉबी देओल, नील नितिन मुकेश, ओमी वैद्य, सिकंदर खेर, विनोद खन्ना
सेंसर सर्टिफिकेट : यू/ए * 20 रील * 2 घंटे 48 मिनट
रेटिंग : 1/5

दो सप्ताह पूर्व डॉन 2 और इस सप्ताह रिलीज हुई ‘प्लेयर्स’ में काफी कुछ समानता है। डॉन नोट छापने की प्लेट्स चुराने के लिए टीम बनाता है। कामयाब होता है, लेकिन ऐन वक्त पर उसके साथी गद्दारी करते हैं।

इस सप्ताह रिलीज हुई ‘प्लेयर्स’ में दस हजार करोड़ रुपये का सोना चुराना है, जो ट्रेन द्वारा रशिया से रोमानिया ले जाया जा रहा है। एक टीम बनाई जाती है, जिसमें जादूगर है, कम्प्यूटर का जानकार है, एक विस्फोट विशेषज्ञ है। यह टीम भी कामयाब होती है और उसके तुरंत बाद ही एक साथी गद्दारी करता है।

निर्देशक का काम होता है कि अविश्वसनीय कहानी को विश्वसनीय बनाना। डॉन 2 के निर्देशक फरहान अख्तर कुछ हद तक इसमें कामयाब रहे, लेकिन ‘प्लेयर्स’ के निर्देशक अब्बास-मुस्तान इस मामले में बुरी तरह फ्लॉप रहे।

पहली से आखिरी फ्रेम तक स्क्रीन पर जो चलता रहता है वो कही से भी विश्वसनीय नहीं लगता। थ्रिलर फिल्म बनाने में माहिर अब्बास-मस्तान की यह सबसे बुरी फिल्मों में से एक है। चोरी-छिपे हॉलीवुड फिल्मों से प्रेरणा लेकर जब तक उन्होंने फिल्में बनाईं, उनका काम बेहतर रहा। पहली बार ‘द इटालियन जॉब’ के अधिकार खरीदकर इसका हिंदी संस्करण बनाया तो मामला बुरी तरह गड़बड़ा गया।

भारतीय दर्शकों का ध्यान रखते हुए इमोशन्स डाले गए, विलेन के अड़डे पर हीरोइन का सेक्सी गाना रखा गया, अनाथों के लिए स्कूल खोलने का सपना देखा गया, लेकिन इनके लिए पर्याप्त सिचुएशन नहीं बन पाने से ये सब बड़े ही नाटकीय लगते हैं।

चार्ली (अभिषेक बच्चन) को उसका एक दोस्त एक सीडी भेजता है, जिसमें रशिया से रोमानिया ले जाने वाले सोने, जिसकी कीमत दस हजार करोड़ रुपये है, का प्लान है। चार्ली के बस का यह काम नहीं है। अपने गुरु विक्टर (विनोद खन्ना) की मदद से वह एक टीम बनाता है जो इस चोरी को अंजाम देती है। सोना चुराने के बाद टीम के एक मेंबर का लालच जाग जाता है और वह गद्दारी करते हुए खुद सोना ले भागता है। अब चार्ली और उसकी टीम के बचे हुए सदस्य उससे अपना सोना वापस लाते हैं।

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कहानी बेहतरीन हैं और इस पर मसालेदार फिल्म बनने की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन रोहित जुगराज और सुदीप शर्मा ने इतना खराब स्क्रीनप्ले लिखा है कि हैरत होती है फिल्म के निर्माता और निर्देशकों पर कि वे कैसे इस पर करोड़ों रुपये लगाने के लिए राजी हो गए।

स्क्रीनप्ले अपनी सहूलियत के हिसाब से लिखा गया है। चार्ली और उसकी टीम जो चाहती है, जब चाहती है, बिना किसी मुश्किल के उन्हें वो चीज हासिल हो जाती है। दस हजार करोड़ रुपये का सोना वे इतनी आसानी से चुरा लेते हैं जैसे ये बच्चों का काम हो। ट्रेन से चोरी वाला सीक्वेंस बहुत ही खूबसूरती से फिल्माया गया है, लेकिन अविश्वसनीय होने के कारण यह प्रभावी नहीं लगता।

इसके बाद कई ट्विस्ट और टर्न्स डाले गए हैं जो बहुत बनावटी हैं। दर्शकों को चौंकाने की कई असफल कोशिशें की गई हैं, लेकिन इस लंबे और उबाऊ ड्रामे में इंटरवल तक आते-आते दर्शक अपनी रूचि खो बैठता है। फिल्म का क्लाइमेक्स भी निराश करता है।

नया कुछ करने की कोशिश में निर्देशक अब्बास-मस्तान अपने काम में बुरी तरह असफल रहे हैं। स्क्रिप्ट की खामियों की ओर उन्होंने ध्यान नहीं दिया और न ही अपने कलाकारों से वे ठीक से काम ले पाएं। उनका कहना है कि इस फिल्म को एडिट करने में छ: महीने का वक्त लगा तो ये सच माना जाना चाहिए।

असल में उनके शूट किए गए हिस्से को ‍‍एडिट करने के चक्कर में एडिटर भी चकरा गया होगा। एडिट करने के बाद भी फाइनल प्रिंट 20 रील के साथ तैयार हुआ है। फिल्म के कुछ कैरेक्टर्स को ठीक से डेवलप नहीं किया गया है। अभिषेक, बिपाशा को चाहते हैं या सोनम को ठीक से स्पष्ट नहीं है। बॉबी देओल का किरदार भी ठीक से नहीं लिखा गया है। रशिया से लूटा गया टनों वजनी सोना न्यूजीलैंड कैसे ले जाया गया इसका जवाब भी नहीं मिलता।

फिल्म में फ्लॉप कलाकारों का जमावड़ा है। ऐसे कलाकार हैं जिनके पास न स्टार वैल्यू है और न ही प्रतिभा, जिससे फिल्म देखने में और बुरी लगती है। अभिषेक बच्चन पूरी फिल्म में एक ही एक्सप्रेशन लिए घूमते रहे। बतौर टीम लीडर उनमें कोई उत्साह नहीं दिखा तो टीम में जोश कैसे नजर आता।

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बॉबी देओल का भी यही हाल रहा और उनका रोल आधा-अधूरा-सा है। उनकी बेटी और उनका ट्रेक ठूंसा हुआ है। सिकंदर खेर और सोनम कपूर निराश करते हैं। ओमी वैद्य जरूर कुछ जगह अपने संवादों से हंसाते हैं। बिपाशा बसु की सेक्स अपील का अच्छा उपयोग किया गया और उनका अभिनय औसत है। विनोद खन्ना थक चुके हैं। उनका और सोनम वाला ट्रेक बेहद उबाऊ है। इन सबके बीच नील नितिन मुकेश का काम अच्छा है।

कुल मिलाकर प्लेयर्स का हाल भारतीय क्रिकेट टीम के प्लेयर्स की तरह है, जो खेल के दौरान शुरू से ही हथियार डाल देते हैं।

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