एक रात पत्नी के तानों से परेशान होकर एडेनवाला अपनी पत्नी और सुभाष के सामने आत्महत्या कर लेते हैं, लेकिन उसके पूर्व अपनी पत्नी को वे चुनौती दे जाते हैं कि वह उनकी आत्महत्या को हत्या साबित करे तभी उसे 24 करोड़ रुपए की राशि मिल सकती है।सुभाष मौके का फायदा उठाना चाहता है। वह मिसेस एडेनवाला को समझाता है कि कम जोखिम, कम फायदा बिजनेस होता है। ज्यादा जोखिम, ज्यादा फायदा जुआ होता है और कम जोखिम और ज्यादा फायदा एक मौका होता है जो जिंदगी में कभी-कभी आता है। दोनों मिल जाते हैं और एक योजना बनाते हैं जिसके जरिए मिस्टर एडेनवाला की आत्महत्या को हत्या साबित किया जा सके। आदमी योजना क्या बनाता है और होता कुछ और है। कई चीजें ऐसी घटित हो जाती हैं जिनके बारे में वह सोचता भी नहीं है। यही बात मिसेस एडेनवाला और सुभाष के साथ भी होती है। फिल्म की खास बात यह है कि इसमें ज्यादा कुछ छिपाया नहीं गया है। अपराधी और पुलिस के हर कदम दर्शक से वाकिफ रहता है। इसलिए रोचकता बनी रहती है। पटकथा कसी हुई है, लेकिन ऐसे लम्हें कम हैं जो दर्शकों को रोमांच से भर दें। फिल्म में कुछ और कमियाँ भी हैं। नेहा धूपिया की मौत वाला प्रसंग कमजोर है। नसीर का परेश के नाम सारी दौलत कर जाने के पीछे भी कोई ठोस वजह नजर नहीं आती। नि:संदेह परेश रावल ने अच्छा अभिनय किया है, लेकिन उनकी जगह यह किरदार कोई युवा अभिनेता निभाता तो फिल्म की कमर्शियल वैल्यू बढ़ जाती। परेश की उम्र इस किरदार से ज्यादा है। शायद परेश इस नाटक से शुरू से जुड़े हुए हैं, इस वजह से उन्हें लिया गया है।
शराबी और सफलता देख चुके इंसान के रूप में नसीरुद्दीन शाह ने बेहतरीन अभिनय किया है। उनकी तकलीफ को दर्शक महसूस करता है। अभिनय के महारथियों के बीच में रहकर नेहा धूपिया के अभिनय में भी सुधार आ गया।
ओमपुरी जैसे अभिनेता की प्रतिभा के साथ यह फिल्म न्याय नहीं कर पाती। उनका रोल सबसे कमजोर है। बोमन ईरानी ठीक हैं। थ्रिलर फिल्म में गाना नहीं हो तो बेहतर होता है, इसलिए फिल्म में गाना नहीं है। इस फिल्म को जबर्दस्त तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन एक बार देखी जा सकती है।
रेटिंग : 3/5
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