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स्पेशल 26 - फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

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बैनर : वाइड फ्रेम्स फिल्म्स, वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स, ए फ्राइडे फिल्मवर्क्स
निर्माता : शीतल भाटिया, कुमार मंगत पाठक
निर्देशक : नीरज पांडे
संगीत : एमएम क्रीम, हिमेश रेशमिय
कलाकार : अक्षय कुमार, काजल अग्रवाल, मनोज बाजपेयी, अनुपम खेर, जिम्मी शेरगिल, राजेश शर्मा, दिव्या दत्ता
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 22 मिनट 32 सेकंड

ए वेडनेसडे जैसी जबरदस्त फिल्म से चौंकाने वाले निर्देशक नीरज पांडे की अगली फिल्म ‘स्पेशल 26’ अस्सी के दशक में घटी कुछ ठगी की घटनाओं पर आधारित है। उस दौर में संचार के साधन इतने सशक्त नहीं थे, लिहाजा इस तरह की घटनाओं को अंजाम देना आसान बात थी।

काला धन जमा करने वाले नेताओं और व्यापारियों के यहां कुछ लोगों का एक गैंग नकली सीबीआई ऑफिसर या इनकम टैक्स ऑफिसर बन छापा मारता है और नकद-गहने जब्त कर लेता है। बात इसलिए बाहर नहीं आती थी क्योंकि शिकार खुद अपराधी हैं। वे मन मसोसकर रह जाते हैं। इन चालाक अपराधियों को ‘स्पेशल 26’ में हीरो बनाकर पेश किया है क्योंकि वे एक तरह से रॉबिनहुड की तरह हैं जो अमीरों को लूटते थे, ये बात और है कि वे गरीबों में ये पैसा बांटते नहीं थे।

स्पेशल 26 एक ऐसी थ्रिलर मूवी है, जिसमें हिंसा का कोई स्थान नहीं है। यहां चोर और पुलिस दिमागी चालों से एक-दूसरे का सामना करते हैं। फिल्म के पहले हिस्से में नकली ऑफिसरों के दो किस्से दिखाए गए हैं कि किस तरह से ये अपना काम करते हैं। उनकी बॉडी लैंग्वेंज, चेहरे के भाव, कागजी कार्रवाई और अकड़ बिलकुल असली पुलिस ऑफिसरों की तरह होती है।

फिल्म में रोचकता तब बढ़ जाती है जब वसीम नामक असली और ईमानदार सीबीआई ऑफिसर इन्हें पकड़ने के लिए पीछे लग जाता है। चूंकि नकली सीबीआई के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं है इसलिए वह इन्हें रंगे हाथ पकड़ने की फिराक है।

वसीम को इनके अगले कदम का पता चल जाता है जब ये मुंबई की एक प्रसिद्ध ज्वैलरी शॉप पर छापा मारने वाले होते हैं। वसीम कामयाब होता है या अजय (अक्षय कुमार) की गैंग, इसका पता एक लंबे क्लाइमैक्स के बाद पता चलता है।

नीरज पांडे का प्रस्तुतिकरण बताता है कि उन्होंने इस दिशा में काफी काम किया है। उन्होंने न केवल सरकारी ऑफिसर्स के कामकाज करने के तरीके को सूक्ष्मता के साथ पेश किया है बल्कि 1987 का दौर भी लाजवाब तरीके से पेश किया है। इसका श्रेय आर्ट डायरेक्टर को भी जाता है।

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नंबर घुमाने वाले और कॉर्डलेस फोन, बड़े ब्रीफकेस, फिएट-एम्बेसेडर और एम्पाला कार, लेम्ब्रेटा स्कूटर, करंसी नोट, समाचार पत्र और पत्रिकाएं, फिल्मों के पोस्टर्स, विमल सूटिंग शर्टिंग और थ्रिल कोल्ड ड्रिंक के विज्ञापन विश्वसनीयता को बढ़ाते हैं।

नीरज ने कहानी को ज्यादा उलझाने के बजाय सीधे तरीके से कहा है। चोर-पुलिस के इस खेल को रोचकता के साथ पेश किया है और इंटरवल के बाद तो फिल्म सीट पर बैठे रहने के लिए मजबूर कर देती है। क्लाइमेक्स में एक ट्विस्ट दिया है, जो अच्छा तो लगता है, लेकिन कहानी को थोड़ा कमजोर करता है।

फिल्म में हीरोइन नहीं भी होती तो कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन अक्षय कुमार जैसे स्टार के कारण हीरोइन रखना शायद मजबूरी हो। यह काम अधूरे मन से किया गया है। अक्षय और काजल की लव स्टोरी में भी थ्रिल पैदा करने की कोशिश की गई है, लेकिन यह ट्रेक उतना प्रभावी नहीं बन पाया है। इसी तरह गानों की भी कोई जरूरत नहीं थी। अक्षय कुमार का किरदार ठगी क्यों करता है, इसका कारण नहीं भी बताया जाता तो खास फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उसके साथियों का भी इतिहास नहीं बताया गया है।

फिल्म के संवाद और कुछ सीन उल्लेखनीय हैं। एक ईमानदार ऑफिसर अपने बॉस से पैसे बढ़ाने की बात करते हुए कहता है कि अब उसे घर का खर्च उठाने में परेशानी आ रही है, यदि पैसा नहीं बढ़ा तो वह रिश्वत लेना शुरू कर देगा। इस सीन को हास्य के पुट के साथ पेश किया गया है, लेकिन इसका असर गहरा है। इसी तरह अक्षय और अनुपम खेर का इंटरव्यू लेने वाले सीन मनोरंजक है। अनुपम खेर के ढेर सारे बच्चें रहते हैं और इसके पीछे वे ये तर्क देते हैं कि उनकी जवानी के समय टीवी नहीं था। संभव है भारत की जनसंख्या ज्यादा होने का यह कारण भी हो।

एक्टिंग के मामले में यह फिल्म सशक्त है। अक्षय कुमार ने अपना काम पूरी संजीदगी के साथ किया है। एक रौबदार और आत्मविश्वास से भरे ऑफिसर के रूप में वे बेहद जमे हैं। ओह माय गॉड के बाद स्पेशल 26 में अभिनय कर अक्षय ने बता दिया है कि वे मसाला फिल्मों के साथ-साथ लीक से हटकर बनने वाली फिल्मों के लिए भी तैयार हैं।

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अनुपम खेर ने लंबे समय बाद यादगार अभिनय किया है। नकली ऑफिसर के रूप में वे बेहद रौबदार नजर आते हैं, लेकिन दूसरे पल ही वे डरपोक बन जाते हैं। पूरी फिल्म में उन्हें यह खौफ सताता रहता है कि कहीं वे पकड़े न जाए। इस भय को उन्होंने बेहतरीन तरीके से पेश किया है।

मनोज बायपेयी की फिल्म में एंट्री होते ही फिल्म का स्तर बढ़ जाता है। एक कड़क और ईमानदार पुलिस ऑफिसर के रूप में मनोज का अभिनय देखने लायक है। काजल अग्रवाल का काम ठीक है। राजेश शर्मा, किशोर कदम और दिव्या दत्ता को कम मौका मिला है, लेकिन ये सब अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।

स्पेशल 26 कई कारणों से देखने लायक है।

रेटिंग : 3.5/5

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