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अगर ठान लोगे तो कुछ भी असंभव नहीं

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, शुक्रवार, 8 जून 2012 (16:19 IST)
सन्‌ 1972 के म्यूनिख ओलिम्पिक में शामिल 22 वर्षीय अमेरिकी तैराक मार्क स्पिट्ज इस लक्ष्य के साथ आया था कि इस बार तो वह अपने हमवतन डॉन स्कोलेंडर द्वारा 1964 के टोकियो ओलिम्पिक की तैराकी स्पर्धाओं और धावक जेसी ओवंस द्वारा 1936 के बर्लिन ओलिम्पिक में एक ही ओलिम्पिक में हासिल 4-4 स्वर्ण पदकों के रिकॉर्ड को तोड़कर ही रहेगा।

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इसी सपने के साथ वह 1968 के मेक्सिको सिटी ओलिम्पिक में भी उतरा था। तब उसने 6 स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचने के दावे किए थे, लेकिन वह टीम स्पर्धाओं के 2 स्वर्ण पदकों के अलावा एक रजत और एक कांस्य पदक ही जीत सका। लेकिन वह अपना सपना बरकरार रखते हुए अगले ओलिम्पिक की तैयारियों में जुट गया। चार साल बाद वह पूरी तैयारी के साथ म्यूनिख ओलिम्पिक में उतरा।

इस बीच उसने तैराकी में कई विश्व रिकॉर्ड बनाए, जिससे उसे 'मार्क द शार्क' कहा जाने लगा। इधर ओलिम्पिक शुरू हुआ, उधर मार्क की झोली में एक के बाद एक स्वर्ण पदक आने लगे। इसके बाद 4 सितंबर 1972 को 4×100 मीटर की मेडले रिले स्पर्धा में तीसरे नंबर के तैराक के रूप में जीतते हुए एक ही ओलिम्पिक में सात स्वर्ण पदक जीतने का नया विश्व रिकॉर्ड बना डाला।

उसने सभी स्पर्धाओं में नए विश्व रिकॉर्ड भी बनाए। उसकी जीत को एक अजूबे की तरह देखा गया और यह कहा जाने लगा कि अब यह रिकॉर्ड टूटना असंभव है।

कहते हैं असंभव शब्द तो आलसियों के शब्दकोश में ही मिलता है। साहसी और धैर्यवान लोग तो असंभव के बारे में सोचते भी नहीं, न ही उन्हें यह शब्द सुनाई देता है। उनके सामने आते ही 'अ' अक्षर साइलेंट जो हो जाता है। वैसे भी असंभव के लिए अंग्रेज़ी शब्द इम्पॉसिबल खुद कहता है कि 'आई एम पॉसिबल।' जुनूनी लोग इसे इसी रूप में लेकर असंभव चीजों को अपने जज्बे से संभव करते जाते हैं।

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