Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

कदम बढ़ाने से ही पूरा होगा चाँद पर जाने जैसा सपना

हमें फॉलो करें कदम बढ़ाने से ही पूरा होगा चाँद पर जाने जैसा सपना

मनीष शर्मा

ND
अंतरिक्ष यान अपोलो-11 से अलग होकर चंद्रयान ईगल 20 जुलाई 1969 को चंद्रमा की सतह पर उतर गया। उसमें सवार नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन ने दो घंटे तक यान की समस्त प्रणालियों की गहनता से जाँच की। इस बीच दुनियाभर के करोड़ों लोग दाँतों तले अँगुली दबाकर चंद्रमा पर पड़ने वाले मानव के पहले कदम का इंतजार कर रहे थे।

कुछ देर बाद नील ने यान की सीढ़ियाँ उतरकर जैसे ही पहला कदम चंद्रमा की धरती पर रखा, पूरी दुनिया में खुशी की लहर दौड़ गई। वहाँ उतरते ही आर्मस्ट्रांग बोले- देट्स वन स्मॉल स्टेप फॉर मैन, वन जायन्ट लीप फॉर मैनकाइंड। यानी यह मानव के लिए एक छोटा-सा कदम है, मानवता की एक बड़ी छलाँग है। उन्होंने अगला कदम बढ़ाकर पीछे देखा तो उनके पहले कदम का निशान चंद्रमा की धरती पर बन चुका था।

यह पदचिह्न अमिट था, क्योंकि चंद्रमा पर न तो वर्षा है और न ही वायु, जो उसे मिटा सके। इसके बाद चहलकदमी करते हुए वे वहाँ का नजारा लेने लगे। यान के इर्द-गिर्द दस-दस फुट ऊँची चट्टानें थीं। लगभग डेढ़ मील दूर एक ऊँची पहाड़ी नजर आ रही थी। पहाड़ के ऊपर आकाश में एक मटर के दाने जैसी नीले रंग की खूबसूरत-सी चीज ने उनका ध्यान आकर्षित किया। पहले वे समझ नहीं पाए कि वह क्या है। अचानक उनकी बत्ती जली। वह पृथ्वी थी।
  अंतरिक्ष यान अपोलो-11 से अलग होकर चंद्रयान ईगल 20 जुलाई 1969 को चंद्रमा की सतह पर उतर गया। उसमें सवार नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन ने दो घंटे तक यान की समस्त प्रणालियों की गहनता से जाँच की।      


उन्होंने अपना अँगूठा उठाकर उसकी ओर किया और एक आँख बंद करके देखने लगे। उन्होंने देखा कि पृथ्वी अँगूठे की आड़ में छिप गई है। उन्होंने अँगूठा नीचे किया। पृथ्वी उसके ऊपर थी। पहले तो इससे उन्हें बहुत गर्व हुआ, लेकिन अचानक उन्हें ब्रह्मांड में अपने छोटेपन का अहसास होने लगा।

दोस्तो, कौन कहना है कि तारे तोड़कर नहीं लाए जा सकते। चाँद की सैर कपोलकल्पना नहीं है। नील आर्मस्ट्रांग ने जब अपना कदम चाँद की धरती पर रखा होगा तो मनुष्य के मन में ऐसी ही बातें आई होंगी, क्योंकि सदियों से मनुष्य चाँद पर सैर के सपने देखता आया था, लेकिन वह उसे असंभव भी मानता था।

आर्मस्ट्रांग का चाँद पर पहला कदम उस सपने के हकीकत में बदलने और असंभव को संभव बनाने जैसा था। इससे हर व्यक्ति को लगा कि जैसे वह खुद ही चंद्रमा पर घूम आया हो। साथ ही इससे यह बात पुख्ता हुई कि खुली आँखों से देखे गए हर सपने को पूरा किया जा सकता है।

इसलिए यदि आपने भी चाँद पर जाने जैसा कोई बड़ा सपना देखा है, तो उसे पूरा करने की दिशा में पूरे आत्मविश्वास से कदम बढ़ाएँ। रास्ते की रुकावटों के बारे में सोचकर कदमों को थमने न दें।

बहुत से कठिन लगने वाले कामों को जब आप करना शुरू कर देते हैं, तो वे खुद ब खुद सरल होते जाते हैं, क्योंकि कदम बढ़ाने वालों को ईश्वर जो राह सुझाता जाता है। वैसे भी हर बढ़ता कदम हमें नया तजुर्बा देकर जाता है, जिसके सहारे हम अजूबा भी करके दिखा सकते हैं, दिखाते हैं, दिखाते आए हैं, दिखाते रहेंगे। पहले चाँद फतह किया था, अब मंगल की तैयारी है।

हर नई उपलब्धि हमें यह सिखाती है कि अनहोनी नाम की कोई चीज होती नहीं। वह तो होनी ही होती है, जिसे हम अनहोनी मानते हैं। इसलिए परिस्थितियों से घबराए बिना आगे बढ़ते रहें। तब आपके कदम उखड़ेंगे नहीं, बल्कि सफलता आगे बढ़कर आपके कदम चूमेगी।

और अंत में, आज नील आर्मस्ट्रांग का जन्मदिन है। वे मुख्यतः एक पायलट थे। विमान उड़ाने में उन्हें बहुत मजा आता था। अमेरिका-कोरिया युद्ध के दौरान वे लड़ाकू विमानों के पायलट थे। उन्होंने एक बार कहा था कि हर व्यक्ति के पास एक निश्चित संख्या में हृदय की धड़कनें होती हैं, मैं भागने में उन्हें बर्बाद नहीं करना चाहता। वैसे भी एक पायलट को पैदल चलने में कोई विशेष मजा नहीं आता। उन्हें उड़ना पसंद है। उनकी इस बात में दम है, क्योंकि जो उड़ना जानते हैं, उड़ सकते हैं, उन्हें चलने में क्यों मजा आएगा।

इसलिए यदि कदम बढ़ाने में आपका दम निकलता है, तो उड़ना सीख लें। उड़कर भी दूरियों को नापा जा सकता है। वह भी ज्यादा जल्दी और ज्यादा आसानी से। आप हमारे कहने का आशय समझ गए होंगे। तो लगाएँ कोई लंबी छलाँग। अरे भई, ज्यादा ऊँचे मत उड़ो। अभी तुम उड़ने के काबिल नहीं हुए हो।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi