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वक्त के साथ अपनी कीमत बढ़ाइए

वेबदुनिया डेस्क

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, शुक्रवार, 1 जून 2012 (15:10 IST)
जिंदगी की तरक्की का रास्ता शरीर और दिल से होकर उतना नहीं गुजरता जितना कि दिमाग से होकर गुजरता है। हमारा दिल हमारे जीने के काम आता है। जिंदगी में रस घोलने का काम हमारा दिल करता है, लेकिन जब जिंदगी में आगे बढ़ने की बात आती है, कुछ नया कर डालने की बात आती है तो उस समय हम सभी को अपने दिमाग का ही साथ लेना पड़ता है।

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एक प्रयोग करते हुए आप अपने आसपास के सामान्य से सामान्य उस व्यक्ति को देखिए, जिस पर आपको दया आ रही है। आप उस व्यक्ति को देखिए, जिसके बारे में आपको लगता है कि इसे यह काम न करके कोई दूसरा बड़ा और अच्छा काम करना चाहिए। आप उसे पिछले दस साल से ऐसा ही करता हुआ देख रहे हैं और विश्वास कीजिए कि आने वाले दस सालों तक वह वैसा ही करता रहेगा।

अब आप इसके काम करने के तौर-तरीके को देखने और समझने की कोशिश कीजिए। आप पाएंगे कि इस आदमी ने अपने दिमाग को बंद करके अपने-आपको एक मशीन में तब्दील कर दिया है। उसे जो काम दे दिया गया है वह कोल्हू के बैल की तरह लगातार उस काम को करता जा रहा है। दुर्भाग्य यह है कि उसने सोचना ही बंद कर दिया है और यहां तक सोचना बंद कर दिया है कि वह जो काम कर रहा है, उसी के बारे में पूरी तरह नहीं सोच रहा है। दुर्भाग्य यह है कि उसे अपने काम के बारे में जानकारी नहीं है और उस काम के बारे में जानकारी नहीं है, जिसको वह दिन में न जाने कितनी-कितनी बार कर रहा है।

एक भोजनालय के बैरे से जब पूछा गया कि आज खाने में क्या है तो अपवाद स्वरूप ही कोई इसका उत्तर एक बार में दे पाया। बैरा का अधिकतर यही जवाब होता कि पूछकर बताता हूं।

आप सोच कर देखिए कि वह बैरा इससे पहले न जाने कितने लोगों को भोजन की थाली लाकर दे चुका है। भोजन की थाली में रखी गई कटोरियों में सब्जियां भरी हुई होती हैं और वे कटोरियां खुली होती हैं न कि ढंकी हुई। वह भोजन करने वालों को भोजन करते हुए भी देख रहा है। इसके बावजूद वह उत्तर नहीं दे पा रहा है। सोचिए कि ऐसा क्यों है?

उत्तर बहुत साफ है। उत्तर यह है कि उसकी आंखें तो खुली हैं, लेकिन उसने अपने दिमाग को बंद कर रखा है। वह देख तो सब कुछ रहा है, लेकिन उसने अपने देखे हुए दृश्यों को अपने दिमाग में प्रवेश करने की इजाजत नहीं दे रखी है। या फिर यह भी हो सकता है कि उसमें इतना आत्मविश्वास ही नहीं है कि 'मैं जो कुछ भी कहूंगा, वह सच ही होगा'।

यदि यह सच है जो कि सच ही है, तो आप बताइए कि तो फिर क्या ऐसे आदमी को, जिसने एक जवान बैरे के रूप में होटल में काम करना शुरू किया था, एक बूढ़े बैरे के रूप में क्यों नहीं रिटायर हो जाना चाहिए। क्या इस बूढ़े बैरे पर हमें दया करना चाहिए?

कहने का मतलब केवल यही है कि केवल बीतता हुआ समय आपको तरक्की नहीं दे सकता। इसका अर्थ यह है कि केवल किया जाने वाला काम ही आपको तरक्की नहीं दे सकता। आपकी तरक्की तभी होगी, जब आप अपनी कीमत को बढ़ाएंगे और आपकी यह कीमत तब बढ़ेगी, जब आप अपने दिमाग को खुला रखकर उसमें नई-नई बातों को प्रवेश करने की इजाजत देंगे।

तो अगर आपने भी अपने आसपास की चीजों से, अपने रोज़ के कामों से सीख लेना बंद का दिया है अपने दिमाग को खोलिए और देखिए कि ज्ञान चारों तरफ बिखरा पड़ा है। इसे समेटिए और अपनी कीमत बढ़ाइए।

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